Showing posts with label डिवीजन बेंच. Show all posts
Showing posts with label डिवीजन बेंच. Show all posts

Mar 29, 2011

सेंट्रल ट्रिब्यूनल का आदेश निरस्त

केंद्र शासन की अधिसूचना के विरुद्ध जारी कस्टम एक्साइज एंड सर्विस टैक्स ट्रिब्यूनल द्वारा जारी शो काज और रिकवरी आदेश को बिलासपुर हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया है।

लघु एवं मध्यम उद्योग को मदद देने के उद्देश्य से डीम क्रेडिट पर अनुदान देने के संबंध में केंद्र शासन ने अधिसूचना जारी की है। इसके तहत लघु एवं मध्यम उद्योगों को बगैर दस्तावेज के रॉ मटेरियल के आधार पर न्यूनतम 75 लाख रुपए से अधिकतम 2 करोड़ रुपए तक डी क्रेडिट दिया जाता है। इस आदेश के खिलाफ कस्टम एक्साइज एंड सर्विस टैक्स टिब्यूनल टैक्स अपीलाट ट्रिब्यूनल (सीईएसटीएटी) ने क्रेडिट प्राप्त करने वाली कंपनियों के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए रिकवरी आदेश जारी कर दिया। इसे शालीमार इस्पात उद्योग व अन्य ने अधिवक्ता रमाकांत मिश्रा के माध्यम से याचिका दायर कर चुनौती दी। याचिका में कहा गया कि केंद्र शासन की अधिसूचना के विरुद्ध कस्टम एक्साइज एंड सर्विस टैक्स ट्रिब्युनल टैक्स अपीलाट ट्रिब्यूनल (सीईएसटीएटी) द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस और रिकवरी आदेश नियम विरुद्ध है। केंद्र शासन की ओर से अधिवक्ता भीष्म किंगर ने पक्ष रखा। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की जस्टिस धीरेन्द्र मिश्रा और रंगनाथ चंद्राकर की डिवीजन बेंच ने कस्टम एक्साइज एंड सर्विस टैक्स टिब्यूनल टैक्स अपीलाट ट्रिब्यूनल (सीईएसटीएटी) के आदेश पर रोक लगा दी है!

Jul 8, 2010

मेजर पेनाल्टी के लिए जांच जरूरी : कर्मचारी की याचिका पर हाईकोर्ट की युगलपीठ का निर्णय

बिलासपुर हाईकोर्ट के जस्टिस आईएम कुद्दुसी एवं जस्टिस एनके अग्रवाल की युगलपीठ ने किसी भी कर्मचारी पर मेजर पेनाल्टी लगाने से पहले विभागीय जांच को जरूरी बताया है।

छत्तीसगढ़ स्टेट वेयर हाउस कार्पोरेशन की सूरजपुर शाखा में जूनियर टेक्नीशियन के पद पर आरएस नयन कार्यरत हैं। अनियमितता के मामले में १३ जनवरी २००६ को उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। उन्होंने १५ जनवरी को अपना जवाब प्रस्तुत किया। इसके बाद २७ अप्रैल को कार्पोरेशन के प्रबंध संचालक ने उनकी तीन वेतनवृद्धि रोकने का आदेश दिया। उन्होंने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। याचिका पर सुनवाई के दौरान तत्कालीन चीफ जस्टिस एसआर नायक एवं जस्टिस वीके श्रीवास्तव की युगलपीठ ने प्रबंध संचालक के आदेश पर स्थगनादेश पारित किया। अंतिम निर्णय के लिए हाईकोर्ट में याचिका लंबित थी। इस प्रकरण में १७ जून २०१० को जस्टिस आईएम कुद्दुसी एवं जस्टिस एनके अग्रवाल की युगलपीठ में अंतिम सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए सीनियर अधिवक्ता प्रशांत जायसवाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ स्टेट वेयर हाउस कार्पोरेशन स्टॉफ रेग्यूलेशन १९६२ के अनुसार अनियमितता पाए जाने पर कार्पोरेशन को कार्रवाई करने का अधिकार है, किन्तु रेग्युलेशन के खंड २२ में इस शस्ती को दो भागों में बांटा गया है। पहले भाग में मेजर पेनाल्टी तथा दूसरे में माइनर पेनाल्टी को रखा गया है। कर्मचारी की तीन वेतनवृद्धि रोकना मेजर पेनाल्टी है। इसके लिए विभागीय जांच जरूरी है, लेकिन कर्मचारी को सिर्र्फ नोटिस दिया गया था। उन्होंने अपने तर्क में उच्चतम न्यायालय के तीन जजों द्वारा कुलवंत सिंह गिल विरुद्ध शासन के प्रकरण में पारित आदेश का हवाला दिया, जिसमें मेजर पेनाल्टी के लिए विभागीय जांच को जरूरी बताया गया है। मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस आईएम कुद्दुसी व जस्टिस एनके अग्रवाल की युगलपीठ ने बिना विभागीय जांच के तीन वेतनवृद्धि रोकने के आदेश को खारिज कर दिया है।


आरंभ में पढें : -

Jun 25, 2010

प्रदेश में दंत चिकित्सा के क्षेत्र में एमडीएस कोर्स लिए काउंसिलिंग का आदेश

बिलासपुर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने छत्तीसगढ़ डेंटल कॉलेज राजनांदगांव में राज्य सरकार कोटे से एमडीएस कोर्स की दो नई सीटों के लिए काउंसिलिंग कराने के निर्देश दिए हैं। काउंसिलिंग ३० जून तक की जानी है। याचिका पर २८ जून को पुनः सुनवाई होगी।

दंत चिकित्सा के क्षेत्र में एमडीएस कोर्स स्नातकोत्तर संचालित करने वाला प्रदेश में छत्तीसगढ़ डेंटल कॉलेज राजनांदगांव एक मात्र है। केंद्र सरकार व डेंटल कौंसिल ऑफ इंडिया से मान्यता प्राप्त कर वर्ष २००९-२०१० से ४ सीटों के साथ एमडीएस कोर्स प्रारंभ किया गया है। सभी कॉलेजों में एमडीएस कोर्स में प्रवेश के लिए डीसीआई ने एमडीएस रेगुलेशन २००७ नियम बनाया है। नियम के अनुसार एमडीएस की आधी सीट राज्य सरकार के अधीन होती है। आधी सीट प्रबंधन के पास रहती है। राज्य सरकार प्री-पीजी परीक्षा आयोजित कर काउंसिलिंग के माध्यम से सीट को भरती है। वर्ष २००९ में दो सीटों को राज्य सरकार ने भरी। २०१० में उक्त सीट को भरने १४ मई को विज्ञापन प्रकाशित कराया गया। उस समय तक कॉलेज के पास एमडीएस की ४ सीटें ही उपलब्ध थीं। २५ मई को परीक्षा आयोजित कर २६ मई को परिणाम की घोषणा की गई। परीक्षा में याचिकाकर्ता डॉ. श्वेता सिंह अनुसूचित जनजाति वर्ग में प्रथम स्थान पर तथा संयुक्त मेरिट में ११वें स्थान पर रहीं। राज्य सरकार ने २७ मई को काउंसिलिंग कर दो विद्यार्थियों को प्रवेश दिया। अगले दिन केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ डेंटल कॉलेज राजनांदगांव में एमडीएस की ४ सीटें बढ़ा दीं। इसकी सूचना राज्य सरकार को ७ जून को मिली। वहीं, डीसीआई द्वारा पूर्व निर्धारित प्रवेश की अंतिम तिथि ३१ मई निकल गई थी। संचालक चिकित्सा शिक्षा ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर मार्गदर्शन मांगा, लेकिन वहां से कोई मार्गदर्शन नहीं मिल पाया था।

इसी बीच सर्वोच्च न्यायालय ने एक आदेश पारित कर स्नातकोत्तर प्रवेश के लिए अंतिम तिथि ३० जून तय कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के तहत राज्य सरकार को बढ़ी हुई दो सीटों के लिए काउंसिलिंग करनी थी, पर इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया जा रहा था। इस बीच प्रबंधन ने काउंसिलिंग कर दो सीटों में प्रवेश दे दिया और राज्य सरकार कोटे की सीटों को भी अपना मानते हुए काउंसिलिंग की तैयारी में है। इस बात को लेकर याचिकाकर्ता डॉ. श्वेता सिंह ने अधिवक्ता जितेंद्र पाली, वरुण शर्मा के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता अजजा कोटे में प्रथम स्थान पर है। इस कारण उक्त सीट में चयन के योग्य है। याचिका पर जस्टिस आईएम कुद्दुसी व जस्टिस एनके अग्रवाल की युगलपीठ ने सुनवाई करते हुए शासकीय अधिवक्ता को उचित निर्देश लेने एवं राज्य सरकार को काउंसिलिंग सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार ३० जून से पहले पूरी करने के निर्देश दिए हैं।

कलेक्टर को सेवा समाप्त करने का कोई अधिकार नहीं : शिक्षाकर्मी को करें बहाल

गलत अनुभव प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने के आरोप में सेवा समाप्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए बिलासपुर हाईकोर्ट ने शिक्षाकर्मी को सेवा में बहाल करने और रुके हुए वेतन का भुगतान करने का आदेश दिया है।

दुर्ग जिले के नवागढ़ ब्लॉक के संबलपुर में शिक्षाकर्मी वर्ग ३ के पद पर २० जुलाई २००७ को उत्तर कुमार यादव की नियुक्ति हुई। इसके बाद वह लगातार स्कूल में बच्चों को पढ़ाता रहा। ७ माह बाद १६ फरवरी २००८ को दुर्ग कलेक्टर ने गलत अनुभव प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने पर उसकी सेवा समाप्त करने का आदेश दिया। इसके खिलाफ उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसे सिंगल बेंच ने खरिज कर दिया। इस पर उसने अधिवक्ता दिनेश तिवारी के माध्यम से डिवीजन बेंच में रिट अपील पेश की। इसमें कहा गया कि वह एकल शिक्षक वाले स्कूल में कार्यरत्‌ रहा। वहां उसे रिलीफ करने कोई तैयार नहीं था। इसके कारण अनुभव प्रमाणपत्र में पांच अधिकारियों के हस्ताक्षर कराए गए। उसकी नियुक्ति जनपद पंचायत नवागढ़ ने की है। इस आधार पर कलेक्टर को सेवा समाप्त करने का कोई अधिकार नहीं है।

जस्टिस आईएम कुद्दुसी एवं जस्टिस प्रशांत मिश्रा की युगलपीठ में बुधवार को अपील पर सुनवाई हुई। उन्होंने याचिकाकर्ता को पुनः बहाल करने तथा रुके हुए वेतन का लाभ देने का आदेश दिया है।

Jun 23, 2010

एक चुनाव याचिका पर हो रही ७ साल से सुनवाई

बिलासपुर हाईकोर्ट में एक चुनाव याचिका पर पिछले सात साल से सुनवाई हो रही है। जिस वक्त यह याचिका दायर की गई थी, विधानसभा का वह कार्यकाल कब का खत्म हो चुका है। दूसरे कार्यकाल को लगभग डेढ़ वर्ष भी पूरे होने जा रहा है। डिवीजन बेंच ने एक बार फिर सुनवाई की तिथि बढ़ा दी है। अब याचिका पर सुनवाई १२ जुलाई को होगी।

सन्‌ २००३ के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने नंदकुमार साय को अपना उम्मीदवार बनाया था। कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी उम्मीदवार थे। विधानसभा चुनाव में २० हजार से अधिक मतों से पराजित होने के बाद श्री साय ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर उनकी जाति को चुनौती दी। याचिकाकर्ता ने कहा था कि श्री जोगी गैर आदिवासी हैं। मरवाही विधानसभा की सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रखी गई है। आदिवासी विकास परिषद के निर्णय का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि परिषद के अनुसार श्री जोगी आदिवासी नहीं है। लिहाजा उनके निर्वाचन को शून्य घोषित किया जाए। मंगलवार को इस मामले की सुनवाई जस्टिस आईएम कुद्दुसी व जस्टिस नवलकिशोर अग्रवाल की डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने चुनाव याचिका पर सुनवाई के लिए १२ जुलाई की तिथि निर्धारित की है। यहां यह बताना लाजिमी है कि श्री साय द्वारा विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद श्री जोगी के खिलाफ चुनाव याचिका दायर की थी। पिछले ७ साल से इस याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हो रही है। इस दौरान एक और विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो गया। सन्‌ २००३ में भी श्री जोगी मरवाही विधानसभा सीट से विधायक निर्वाचित हुए थे। वर्तमान कार्यकाल में भी वे इसी सीट से विधायक हैं। हालांकि श्री साय द्वारा दायर इस याचिका की विधानसभा चुनाव के निर्वाचन को शून्य घोषित करने जैसी मांग की कोई औचित्य नहीं है, पर इस याचिका पर हाईकोर्ट द्वारा दिए जाने वाले फैसले के दूरगामी राजनीतिक परिणाम सामने आएंगे। श्री जोगी के जाति को लेकर विवाद की स्थिति बनी हुई है। हाईकोर्ट में चुनाव याचिका के अलावा भाजपा नेता संतकुमार नेताम द्वारा उनकी जाति को सीधे तौर पर चुनौती देते हुए हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया गया है। श्री जोगी के जाति संबंधी मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है।

Jun 20, 2010

छग खनिज नियम को चुनौती देने वाली याचिका खारिज

बिलासपुर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सुनवाई करते हुए छग खनिज नियम २००९ को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ता ने खनिज विभाग द्वारा जारी किए गए नोटिस के बाद नियम को चुनौती दी थी।

मामला राजनादगांव का है। यहां की निवासी व खदान तथा क्रेशर संचालिका पुष्पलता ओसवाल को खनिज विभाग ने छग खनिज नियम २००९ (खनन, परिवहन तथा भंडारण) का हवाला देते हुए खदान के बाहर खनिज का भंडारण और परिवहन करने की स्थिति में लाइसेंस लेने की अनिवार्यता रख दी थी। नोटिस में कहा गया था कि लीज वाली जमीन के बाद परिवहन व भंडारण करने की स्थिति में छग खनिज नियम प्रभावशील होगा। लिहाजा दूसरा लाइसेंस की जरूरत पड़ेगी। खनिज विभाग के नोटिस के बाद याचिकाकर्ता ने नियम को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया था कि उसका क्रेशर लीज एरिया में लगा हुआ है। खनिज का भंडारण व परिवहन भी वह लीज सीमा के भीतर ही कर रही है। उसे दूसरी परमिट की जरूरत नहीं है। इस मामले की सुनवाई शुक्रवार को जस्टिस आईएम कुद्दुसी व जस्टिस प्रशांत मिश्रा की डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने छग खनिज नियम को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है।

Apr 8, 2010

कोर्ट में दायर याचिका निकली फर्जी : १० वर्षों के न्यायालयीन इतिहास में यह पहला मामला

नक्‍सल क्षेत्र दंतेवाड़ा जिले के एर्राबोर थाने का मामला
छत्तीसगढ हाईकोर्ट के १० वर्षों के न्यायालयीन इतिहास में यह पहला मामला है जब याचिकाकर्ता ने कोर्ट में उपस्थित होकर किसी तरह की याचिका दायर करने से ही इनकार कर दिया। जिस याचिका पर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में सुनवाई हो रही है उसमें एर्राबोर पुलिस पर आरोप लगाया है कि उसके पिता व बहन को गायब कर दिया गया है। पिछले सात महीने से इस याचिका पर डिवीजन बेंच में सुनवाई चल रही थी।

  • कोर्ट में आया अनुवादक

सिन्ना चूंकि हिंदी न तो बोल पाता है और न ही समझ पाता है। वह गोडी बोली बोलता और समझता है। इसे देखते हुए कोर्ट ने अनुवादक की व्यवस्था करने के निर्देश शासन को दिए थे। लिहाजा, अनुवादक के माध्यम से कोर्ट ने अपना सवाल किया। इस दौरान उन्होंने इस तरह का खुलासा किया।
यह चर्चित मामला दंतेवाड़ा जिले के एर्राबोर थाने की लेदरा ग्राम पंचायत के ग्राम दरभागुड़ा का है। यहां के निवासी विंगोसिन्ना ने १८ सितंबर २००९ को अपने वकील के जरिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। याचिका में पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा था कि अप्रैल-मई २००८ को उसके पिता वेकोदुल्ला व बहन वेको बजरे को पुलिस बलात्‌ उठाकर ले गई। याचिकाकर्ता ने कहा कि जिस वक्त पुलिस वहां पहुंची तो उसके परिवार के अन्य सदस्य जंगल की ओर भाग गए। लिहाजा, पुलिस उसे पकड़ नहीं पाई। याचिका में पिता व बहन को पुलिस के चंगुल से छुड़ाने के लिए पुलिस महानिदेशक व पुलिस अधीक्षक से शिकायत करने पर कोई कार्रवाई नहीं करने का आरोप भी लगाया गया है। इस मामले की सुनवाई डिवीजन बेंच में चल रही थी। इसी बीच १ फरवरी २०१० को याचिकाकर्ता के वकील ने हाईकोर्ट में इस बात की जानकारी दी कि याचिकाकर्ता से उसका कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है।

  • चेतना परिषद पर लगाया आरोप

सिन्ना ने आदिवासी चेतना परिषद के पदाधिकारियों पर आरोप लगाते हुए कहा कि उसके अलावा कई और आदिवासियों को चेतना परिषद के पदाधिकारी दो बार बिलासपुर लेकर आए थे। इसी दौरान कई दस्तावेजों पर उसके हस्ताक्षर लिए गए थे। किस बात के लिए हस्ताक्षर लिए गए थे इसकी जानकारी उसे नहीं है।
वकील की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता की खोजबीन करने व कोर्ट में उपस्थित करने के लिए शासन को नोटिस जारी किया था। डिवीजन बेंच के निर्देश के बाद पुलिस ने २३ मार्च २०१० को याचिकाकर्ता विंगोसिन्ना को डिवीजन बेंच के समक्ष पेश किया। याचिकाकर्ता के वकील ने अपने मुवक्किल के रूप में उसकी पहचान की। डिवीजन बेंच द्वारा पूछताछ के दौरान याचिककर्ता ने कोर्ट के समक्ष सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा कि उसने किसी तरह की कोई याचिका हाईकोर्ट में दायर ही नहीं की है। और न ही पुलिस पर किसी तरह का आरोप लगाया है। विंगोसिन्ना ने इस बात की जानकारी कोर्ट को दी कि उसके पिता व बहन पिछले कुछ दिनों से गायब हैं। इस पर जस्टिस धीरेंद्र मिश्रा व जस्टिस आरएन चंद्राकर की डिवीजन बेंच ने दंतेवाड़ा एसपी को सिन्ना के पिता व बहन की खोजबीन करने के निर्देश दिए। साथ ही याचिका को निराकृत कर दिया है।

सिम्स वापस करें अधिक राशि

बिलासपुर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सिम्स प्रबंधन व राज्य शासन को पेमेंट सीट के रूप में विद्यार्थियों से ज्यादा वसूल की गई फीस को वापस करने का फरमान जारी किया है। डिवीजन बेंच के फैसले से एमबीबीएस २००३-०४ बेच के विद्यार्थियों को बड़ी राहत मिली है। सिम्स प्रबंधन ने पेमेंट सीट में प्रवेश देने के एवज में प्रति छात्र १ लाख ४० रूपए वसूले थे।

वर्ष २००३-०४ बेच के राजेश अग्रवाल, रिंपल बच्चू, आनंद भट्टर सहित अन्य ने वकील कनक तिवारी,जितेंद्र पाली व मतीन सिद्दीकी के जरिए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि गुヒ घासीदास यूनिवर्सिटी ने बिलासपुर में छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान (सिम्स) के नाम से मेडिकल कॉलेज का संचालन प्रारंभ किया। तब १०० सीटें निर्धारित की गई थीं। वर्ष २००३ में छग शासन ने छग चिकित्सा तथा दंत चिकित्सा स्नातक प्रवेश नियम पारित किया। प्रवेश नियम ४ के अनुसार कुल सीटों की १५ प्रतिशत सीटें आल इंडिया परीक्षाओं से आए विद्यार्थियों के लिए तथा ३ फीसदी सीटें केंद्रीय कोटा की है। शेष ८२ सीटों का आबंटन पेमेंट तथा फ्री के रूप में किया गया था। शासन के निर्देशों को धता बताते हुए यूनिवर्सिटी ने ५० प्रतिशत सीटों को पेमेंट व ५० प्रतिशत सीट को फ्री घोषित कर दिया। फ्री सीटों में से ७ को आल इंडिया तथा १ को केंद्रीय कोटा की सीट निर्धारित कर दी गर्ठ। याचिकाकर्ताओं ने शासन के निर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि सिम्स को इस बात के निर्देश दिए गए थे कि २००३ में पेमेंट सीट में प्रवेश लिए १० विद्यार्थियों को आरक्षण नियमों का पालन करते हुए फ्री सीट में प्रवेश की सुविधा दी जाए। इसके बाद भी सिम्स ने याचिकाकर्ताओं को मेरिट में होने के बाद भी फ्री के बजाय पेमेंट सीट में प्रवेश दे दिया। साथ ही सिम्स प्रबंधन ने याचिकाकर्ता छात्रों को भारी भरकम फीस जमा करने का आदेश भी जारी कर दिया। हाईकोर्ट ने प्रकरण की प्रारंभिक सुनवाई के बाद छात्रहित में ५० फीसदी फीस जमा करने के निर्देश सिम्स प्रबंधन को दिए थे। सिंगल बेंच के आदेश को चुनौती देते हुए यूनिवर्सिटी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। इसी बीच १ दिसंबर २००७ को राज्य शासन ने सिम्स का अधिग्रहण कर लिया। ३० मार्च २००९ को संचालक चिकित्सा शिक्षा ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र प्रस्तुत कर आल इंडिया कोटा व केंद्रीय कोटा की सभी सीटों को फ्री सीट करने का खुलासा किया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता छात्रों ने हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में गुहार लगाई थी। इस मामले की सुनवाई जस्टिस धीरेंद्र मिश्रा व जस्टिस आरएन चंद्राकर की डिवीजन में सुनवाई हुई। डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता छात्रों से पेमेंट सीट के रूप में वसूली गई फीस को वापस करने का फरमान सिम्स प्रबंधन व शासन को जारी किया है।

Apr 7, 2010

तीर-धनुष से हत्या, सजा बरकरार - हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रखा यथावत

पिता के साथ मारपीट करने की वजह पूछने गए पुत्र की तीर-धनुष से हत्या करने वाली आदिवासी महिला की अपील को छत्‍तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने खारिज कर दिया है।

याचिकाकर्ता महिला ने निचली अदालत द्वारा दी गई उम्रकैद की सजा को चुनाती दी थी। मामला बस्तर जिले के ग्राम गिरौली का है। १९ मई सन्‌ १९९३ को पूणेम आउडा डग्गा गुड़िया किसी बात से नाराज होकर श्रीमती उरसा बंडी के घर गई। वहां उरसा नहीं मिली। उरसा व उसका बेटा मंगू किसी काम से बाहर गए हुए थे। घर पर उरसा का पति था। पूणेम को उसने बताया कि पत्नी व बेटा बाहर गए हुए हैं। इस पर पूणेम ने उरसा के पति की ही पिटाई कर दी। उरसा व मंगू जब घर आए, तब पति ने पूणेम द्वारा जबरिया बिना किसी कारण के मारपीट करने की बात बताई। इस पर उरसा अपने बेटे मंगू को लेकर पूणेम के घर गई। मारपीट करने की वजह पूछने के बाद मां-बेटे जब लौट रहे थे, तब पूणेम ने तीर-धनुष से मंगू पर अचानक हमला कर दिया। इससे मंगू को बचने का मौका भी नहीं मिला। तीर उसके पेट पर जाकर घुस गया। तीर के हमले से खून से लथपथ मंगू को अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां ६ दिनों के इलाज के बाद २६ मई को मंगू की मौत हो गई। इसके बाद पुलिस ने पूणेम के खिलाफ जुर्म दर्ज कर निचली अदालत में चालान पेश किया था। प्रकरण की सुनवाई के बाद अपर सत्र न्यायाधीश जगदलपुर ने पूणेम को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए पूणेम ने अपने वकील के जरिए हाईकोर्ट में अपील की थी। पिछले सोमवार को इस मामले की सुनवाई जस्टिस टीपी शर्मा व जस्टिस आरएल झंवर की डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता की अपील को खारिज करते हुए निचली अदालत द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा है।

Apr 6, 2010

कोटवार की सेवा समाप्त करने का मामला - राजनांदगांव कलेक्टर से मांगा जवाब

बिलासपुर  हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कोटवार की सेवा समाप्त करने के मामले में दायर अपील की सुनवाई करते हुए राज्य शासन व कलेक्टर राजनांदगांव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

राजनांदगांव जिला निवासी शत्रुहन ने वकील पराग कोटेचा व आनंद शुक्ला के जरिए हाईकोर्ट में अपील की है। इसमें कहा गया है कि वह कोटवार बनने के पहले गांव में पंच था। इस बीच १६ अप्रैल २००० को कोटवार बनने के लिए तहसीलदार के समक्ष आवेदनपत्र प्रस्तुत किया और १७ अप्रैल को पंच पद से इस्तीफा दे दिया। उसके आवेदन पत्र के आधार पर तहसीलदार ने ३० जून २००० को उसे कोटवार बना दिया। इस बीच गांव के हेमलाल व कृष्णकुमार ने एसडीओ से शिकायत की, जिसे खारिज कर दिया गया। इस पर शिकायतकर्ताओं ने कलेक्टर के पास अपील की। कलेक्टर ने भी मामले को खारिज कर दिया। इसके बाद मामला राजस्व मंडल पहुंचा। राजस्व मंडल ने कलेक्टर के आदेश को निरस्त करते हुए कोटवार की सेवाएं समाप्त करने का आदेश दिया। इस निर्णय के खिलाफ शत्रुहन ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई। हाईकोर्ट ने राजस्व मंडल के फैसले को सही ठहराया, लिहाजा शत्रुहन ने डिवीजन बेंच में अपील की। इस मामले की प्रारंभिक सुनवाई करते हुए डिवीजन बेंच ने राज्य शासन व कलेक्टर को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

Apr 2, 2010

बेटे को उम्रकैद मां की रिहाई : बेटे के साथ मिलकर कर शराबी पति की कर दी थी हत्या

बेटे के साथ मिलकर शराबी पति की हत्या करने के आरोप में निचली अदालत द्वारा दी गई उम्रकैद की सजा को छ्त्तीसगढ हाईकोर्ट ने पलटते हुए आरोपी की मां को रिहा करने का आदेश दिया है। वहीं मां के साथ उम्रकैद की सजा काट रहे बेटे की सजा को बरकरार रखा गया है। मामला महासमुंद का है।

महासमुंद निवासी पुसऊ राम आदतन शराबी था। शराब पीकर हुड़दंग करना और घर के सदस्यों के साथ मारपीट तथा गाली-गलौज करना आम बात थी। 25 मार्च 2004 को पुसऊ राम शराब पीकर घर पहुंचा। किसी बात पर उसने पत्नी व बेटे की पिटाई कर दी। रात में बीच-बचाव करने पर विवाद शांत हुआ। दूसरे दिन 26 मार्च को वह फिर शराब पीकर घर आया और हुड़दंग करने लगा। रोज-रोज की मारपीट और प्रताड़ना से तंग आकर पत्नी मनमीत ने अपने बेटे रोहित के साथ मिलकर पति हत्या करने की ठानी और घटना को उसी रात अंजाम दे दिया। 

मामले की सुनवाई के बाद सत्र न्यायाधीश महासमुंद ने पत्नी व बेटे को उम्रकैद की सजा सुनाई। मां के साथ उम्रकैद की सजा काट रहे बेटे रोहित ने अपने वकील के जरिए निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील की। सोमवार को इस मामले की सुनवाई जस्टिस टीपी शर्मा व जस्टिस आरएल झंवर की डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने पत्नी मनमीत की उम्रकैद की सजा को खत्म करते हुए उसे रिहा करने का आदेश दिया। इसके साथ ही निचली अदालत द्वारा रोहित को दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखते हुए अपील खारिज कर दी गई।

My Blog List