बिलासपुर हाईकोर्ट के जस्टिस आईएम कुद्दुसी एवं जस्टिस एनके अग्रवाल की युगलपीठ ने किसी भी कर्मचारी पर मेजर पेनाल्टी लगाने से पहले विभागीय जांच को जरूरी बताया है।
छत्तीसगढ़ स्टेट वेयर हाउस कार्पोरेशन की सूरजपुर शाखा में जूनियर टेक्नीशियन के पद पर आरएस नयन कार्यरत हैं। अनियमितता के मामले में १३ जनवरी २००६ को उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। उन्होंने १५ जनवरी को अपना जवाब प्रस्तुत किया। इसके बाद २७ अप्रैल को कार्पोरेशन के प्रबंध संचालक ने उनकी तीन वेतनवृद्धि रोकने का आदेश दिया। उन्होंने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। याचिका पर सुनवाई के दौरान तत्कालीन चीफ जस्टिस एसआर नायक एवं जस्टिस वीके श्रीवास्तव की युगलपीठ ने प्रबंध संचालक के आदेश पर स्थगनादेश पारित किया। अंतिम निर्णय के लिए हाईकोर्ट में याचिका लंबित थी। इस प्रकरण में १७ जून २०१० को जस्टिस आईएम कुद्दुसी एवं जस्टिस एनके अग्रवाल की युगलपीठ में अंतिम सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए सीनियर अधिवक्ता प्रशांत जायसवाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ स्टेट वेयर हाउस कार्पोरेशन स्टॉफ रेग्यूलेशन १९६२ के अनुसार अनियमितता पाए जाने पर कार्पोरेशन को कार्रवाई करने का अधिकार है, किन्तु रेग्युलेशन के खंड २२ में इस शस्ती को दो भागों में बांटा गया है। पहले भाग में मेजर पेनाल्टी तथा दूसरे में माइनर पेनाल्टी को रखा गया है। कर्मचारी की तीन वेतनवृद्धि रोकना मेजर पेनाल्टी है। इसके लिए विभागीय जांच जरूरी है, लेकिन कर्मचारी को सिर्र्फ नोटिस दिया गया था। उन्होंने अपने तर्क में उच्चतम न्यायालय के तीन जजों द्वारा कुलवंत सिंह गिल विरुद्ध शासन के प्रकरण में पारित आदेश का हवाला दिया, जिसमें मेजर पेनाल्टी के लिए विभागीय जांच को जरूरी बताया गया है। मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस आईएम कुद्दुसी व जस्टिस एनके अग्रवाल की युगलपीठ ने बिना विभागीय जांच के तीन वेतनवृद्धि रोकने के आदेश को खारिज कर दिया है।
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