Oct 9, 2008

अनैतिक देह व्यापार निवारण कानून [आईटीपीए] में प्रस्तावित संशोधन

यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए चकलाघरों का रुख करने वाले रंगीले लोग सावधान कहीं आपको इसके लिए जेल की हवा न खानी पडे़। जी हां, देश में अनैतिक देह व्यापार निवारण कानून [आईटीपीए] में प्रस्तावित संशोधन विधेयक संसद के आगामी सत्र में यदि पारित हो जाता है तो यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए कोठों पर जाने वालों को तीन से छह महीने जेल में भी बिताना पड़ सकता है।

संबंधित प्रस्तावित संशोधन विधेयक 2006 से ही संसद में रखा गया था लेकिन देश भर के यौनकर्मियों और उनके कल्याण से जुड़े संगठनों द्वारा इसमें वर्णित नए-नए प्रावधानों पर अंगुलियां उठाए जाने के कारण सरकार ने इस पर पुनर्विचार का फैसला किया था। गृहमंत्री शिवराज पाटिल की अध्यक्षता में इससे संबंधित मंत्रियों के समूह [जीओएम] ने संबंधित संशोधन विधेयक को हरी झंडी प्रदान कर दी है, जिस पर जल्दी ही केंद्रीय मंत्रिमंडल विचार करेगा।
यदि जीओएम की रिपोर्ट पर अमल करते हुए सरकार ने संसद में रखे आईटीपीए संशोधन विधेयक को मंजूरी प्रदान करा ली तो यौन इच्छाओं की पूर्ति करते हुए वेश्याओं के कोठे से पहली बार पकड़े जाने पर गिरफ्तार व्यक्ति को तीन महीने की सजा या बीस हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकता है।

प्रस्तावित संशोधिन कानून की धारा पांच [सी] में किए गए प्रावधानों के तहत पहली बार कोठों और चकलाघरों से गिरफ्तार होने वाले व्यक्तियों को तीन माह की सजा या बीस हजार रुपये जुर्माना या दोनों हो सकता है, जबकि दूसरी बार या इससे अधिक बार गिरफ्तार किए जाने पर उन्हें छह माह के लिए जेल भेजा जा सकता है या पचास हजार रुपये का जुर्माना हो सकता है या दोनों तरह की सजा हो सकती है। हालांकि जीओएम में शामिल केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री अंबुमणि रामदास ने जीओएम की बैठक में इस धारा का यह कहते हुए विरोध किया था कि ग्राहकों के लिए जेल का प्रावधान करने के कारण यौनकर्मी भूमिगत हो जाएंगी, जिसकी वजह से एचआईवी/एड्स की रोकथाम के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों पर विपरीत असर पड़ेगा।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए चकलाघर का रुख करने वाले व्यक्तियों को गिरफ्तार नहीं किया जाता था। अबतक केवल यौनकर्मियों को ही पुलिस गिरफ्त में लेने का ही प्रावधान है। अनैतिक देह व्यापार निवारण कानून 1956 के तहत पुरुषों को तभी गिरफ्तार किया जाता रहा है, जब वे सार्वजनिक स्थानों पर यौन संबंध बना रहे हों। हालांकि यौनकर्मियों और उनके कल्याण से जुड़े संगठनों का यह तर्क है कि इससे यौनकर्मियों के समक्ष आजीविका की समस्या खड़ी हो जाएगी। जेल और जुर्माने के डर से कोठों पर ग्राहकों का आना धीरे-धीरे कम हो जाएगा और इसका सीधा असर यौनकर्मियों की रोजी-रोटी पर पड़ेगा। इन संगठनों में नई दिल्ली स्थित भारतीय पतिता उद्धार सभा [बीपीयूएस] नाज फाउंडेशन कोलकाता की संस्था दरबार महिला समन्वय समिति और अशोदया समिति शामिल हैं।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इसे इस प्रकार परिभाषित किया है- आर्थिक, सामाजिक या धार्मिक कारणों से वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाएं और लड़कियां, अनैतिक देह व्यापार से जुड़ी यौनकर्मियों की श्रेणी में रखी गई हैं। हालांकि सिब्बल और रामदॉस ने धारा पांच ए और पांच सी को अस्पष्ट करार देते हुए अपनी दलीलें जरूर पेश कीं। लेकिन जीओएम ने उनकी दलीलों को दरकिनार करते हुए इसे हरी झंडी प्रदान कर दी है।
जीओएम की दलील है कि धारा पांच ए के तहत अनैतिक देह व्यापार को नए रूप में परिभाषित करने तथा धारा पांच सी के तहत ग्राहकों के जेल भेजे जाने का प्रावधान करने से बगैर प्रतिबंध लगाए देह व्यापार पर रोक लगाई जा सकती है। हालांकि प्रस्तावित संशोधन विधेयक में धारा आठ को हटाए जाने का विभिन्न संगठनों ने स्वागत किया है। सरकार ने देह व्यापार में लिप्त महिलाओं को दलालों, एजेंटों और धोखेबाजों द्वारा दबाव या धमकी देकर गुमराह किए जाने की घटनाओं पर विराम लगाने के उद्देश्य से धारा आठ को समाप्त करने का फैसला लिया गया है। धारा आठ के हट जाने से पुलिस अब यौनकर्मियों को पकड़कर थाने नहीं ले जा सकेगी। ज्यादातर महिलाओं का इसी धारा के तहत चालान किया जाता था।

साभार - दैनिक जागरण

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