छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को नयी राजधानी प्रभावित किसान विकास समिति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य शासन, नया रायपुर विकास प्राधिकरण, कलेक्टर रायपुर, केंद्र शासन आदि को नोटिस जारी किया है साथ ही स्थगन आवेदन पर सुनवाई हेतु मामले को सुनवाई हेतु अगले सप्ताह की तिथि दी है ।
छत्तीसगढ़ शासन की बहुचर्चित तथा महत्वाकांक्षी नयी राजधानी योजना छत्तीसगढ़ राज्य बनने के साथ ही चर्चा में आ गई थी। वर्ष 2002 में ही किसानों के हितों को दरकिनार करते हुए आवास एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी आदेश के तहत रायपुर शहर के जय स्तंभ चौक को केंद्र मानकर 30 किमी की परिधि में आने वाले सभी गांवों में जमीन खरीद बिक्री पर रोक लगा दी गई । पहले राजधानी क्षेत्र फिर नया रायपुर विकास प्राधिकरण नारडा बना कर 61 गांवों की उपजाउ जमीन हथियाने हेतु नया रायपुर विकास योजना 2031 लागू की गई । 2005 में यह आदेश जारी किया की बिक्री पर रोक नारडा के पक्ष में जमीन बेचने पर लागू नहीं होगी। वर्ष 2007 में जबरिया अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की गई जिसका किसानों द्वारा विरोध किया गया। किसानों के विरोध को देखते हुए नारडा तथा राजस्व अधिकारियों ने किसानों को यह कहकर धमकाया कि हमारे कहे अनुसार जमीन नारडा को बेच दो नहीं तो अधिग्रहण करने पर कौडियों के दाम पर जमीन छीन लेंगे। सहमे किसानों ने सरकारी अधिकारियों के दबाव में औने पौने जमीन नारडा को बेच दी। जिन गांवों में विरोध ज्यादा था वहां भूअधिग्रहण कानून का बेजा इस्तमाल करते हुए धारा 4 की अधिसूचना प्रकाशित की गई तथा आपात स्थिति होने के प्रावधानों का डंडा दिखाते हुए किसानों को यह कहा गया कि अब तो भूमि सरकार की हो गई है अब भी नारडा को बेच दो नहीं तो जमीन गई समझो।
जिन किसानों ने जमीन बेचने में ही भलाई समझी उनकी जमीनों को अधिग्रहण क्षेत्र से बाहर कर नारडा ने खरीद ली। किसान ठगे गए । नारडा जमीन हथियाने में इस तरह मशगूल रहा कि कई गांवों में आज तक भूअधिग्रहण के अवार्ड तक पारित नहीं हुआ और भू अर्जन की धमकी के आधार पर जमीन हथियाने का धंधा जारी है। गांव के गांव उजड़ गए हैं जो आधे बचे हैं उनकी निस्तार भूमि तक नारडा ने नहीं छोड़ी है और भूमि हुडको के पास बंधक बना कर अमीरों के आशियाने बनाए जाने की योजना जारी है। कई किसानों की भूमि अधिग्रहण किए बिना ही निर्माण कार्य कर लिया गया है। लुभावनी पुनर्वास नीति दिखा कर किसानों को ठगा गया है। जमीन खो देने के बाद जब किसानों ने बदले में पुर्नवास हेतु जमीन मांगी तो नारडा ने टका सा जवाद दे दिया कि भूमि के बदले भूमि देने की कोई योजना नहीं है।
किसान सपरिवार गांव छोड़कर शहरों में मजदूरी करने को बाध्य हो गए हैं। वेदांता जैसे धनी समूहों को 1 रूपए की दर पर भूमि आबंटित की गई है किसानों के सैकड़ों अभ्यावेदनों पर सरकारी धूल पड़ी हुई है। पांच सितारा होटल, गोल्फ कोर्स, थीम टाउनशिप जैसे अमीरों के शौक पूरे करने के लिए महानदी के निकटवर्ती सर्वाधिक उपजाउ क्षेत्र को लगभग नष्ट कर दिया गया है। पर्यावरण नियमों को ताक पर रखकर बिना उचित पर्यावरण सहमति लिए योजना को तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है जिससे खेती योग्य भूमि की कमी होने की संभावना है।
किसानों ने सभी तरफ से दरवाजे बंद देखकर माननीय उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता श्री कनक तिवारी, अधिवक्ता जितेंद्र पाली तथा वरूण शर्मा के माध्यम से याचिका प्रस्तुत की जिसकी सुनवाई करते हुए माननीय न्यायमूर्ति श्री सतीश अग्निहोत्री जी की एकल पीठ ने संज्ञान लेते हुए सभी प्रतिवादियों से जवाब प्रस्तुत करने को कहा है। साथ ही अंतरिम आदेश की सुनवाई हेतु मामले को अगले सप्ताह लगाने का आदेश पारित किया है।