Apr 7, 2010

तीर-धनुष से हत्या, सजा बरकरार - हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रखा यथावत

पिता के साथ मारपीट करने की वजह पूछने गए पुत्र की तीर-धनुष से हत्या करने वाली आदिवासी महिला की अपील को छत्‍तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने खारिज कर दिया है।

याचिकाकर्ता महिला ने निचली अदालत द्वारा दी गई उम्रकैद की सजा को चुनाती दी थी। मामला बस्तर जिले के ग्राम गिरौली का है। १९ मई सन्‌ १९९३ को पूणेम आउडा डग्गा गुड़िया किसी बात से नाराज होकर श्रीमती उरसा बंडी के घर गई। वहां उरसा नहीं मिली। उरसा व उसका बेटा मंगू किसी काम से बाहर गए हुए थे। घर पर उरसा का पति था। पूणेम को उसने बताया कि पत्नी व बेटा बाहर गए हुए हैं। इस पर पूणेम ने उरसा के पति की ही पिटाई कर दी। उरसा व मंगू जब घर आए, तब पति ने पूणेम द्वारा जबरिया बिना किसी कारण के मारपीट करने की बात बताई। इस पर उरसा अपने बेटे मंगू को लेकर पूणेम के घर गई। मारपीट करने की वजह पूछने के बाद मां-बेटे जब लौट रहे थे, तब पूणेम ने तीर-धनुष से मंगू पर अचानक हमला कर दिया। इससे मंगू को बचने का मौका भी नहीं मिला। तीर उसके पेट पर जाकर घुस गया। तीर के हमले से खून से लथपथ मंगू को अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां ६ दिनों के इलाज के बाद २६ मई को मंगू की मौत हो गई। इसके बाद पुलिस ने पूणेम के खिलाफ जुर्म दर्ज कर निचली अदालत में चालान पेश किया था। प्रकरण की सुनवाई के बाद अपर सत्र न्यायाधीश जगदलपुर ने पूणेम को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए पूणेम ने अपने वकील के जरिए हाईकोर्ट में अपील की थी। पिछले सोमवार को इस मामले की सुनवाई जस्टिस टीपी शर्मा व जस्टिस आरएल झंवर की डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता की अपील को खारिज करते हुए निचली अदालत द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा है।

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