Apr 8, 2010

कोर्ट में दायर याचिका निकली फर्जी : १० वर्षों के न्यायालयीन इतिहास में यह पहला मामला

नक्‍सल क्षेत्र दंतेवाड़ा जिले के एर्राबोर थाने का मामला
छत्तीसगढ हाईकोर्ट के १० वर्षों के न्यायालयीन इतिहास में यह पहला मामला है जब याचिकाकर्ता ने कोर्ट में उपस्थित होकर किसी तरह की याचिका दायर करने से ही इनकार कर दिया। जिस याचिका पर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में सुनवाई हो रही है उसमें एर्राबोर पुलिस पर आरोप लगाया है कि उसके पिता व बहन को गायब कर दिया गया है। पिछले सात महीने से इस याचिका पर डिवीजन बेंच में सुनवाई चल रही थी।

  • कोर्ट में आया अनुवादक

सिन्ना चूंकि हिंदी न तो बोल पाता है और न ही समझ पाता है। वह गोडी बोली बोलता और समझता है। इसे देखते हुए कोर्ट ने अनुवादक की व्यवस्था करने के निर्देश शासन को दिए थे। लिहाजा, अनुवादक के माध्यम से कोर्ट ने अपना सवाल किया। इस दौरान उन्होंने इस तरह का खुलासा किया।
यह चर्चित मामला दंतेवाड़ा जिले के एर्राबोर थाने की लेदरा ग्राम पंचायत के ग्राम दरभागुड़ा का है। यहां के निवासी विंगोसिन्ना ने १८ सितंबर २००९ को अपने वकील के जरिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। याचिका में पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा था कि अप्रैल-मई २००८ को उसके पिता वेकोदुल्ला व बहन वेको बजरे को पुलिस बलात्‌ उठाकर ले गई। याचिकाकर्ता ने कहा कि जिस वक्त पुलिस वहां पहुंची तो उसके परिवार के अन्य सदस्य जंगल की ओर भाग गए। लिहाजा, पुलिस उसे पकड़ नहीं पाई। याचिका में पिता व बहन को पुलिस के चंगुल से छुड़ाने के लिए पुलिस महानिदेशक व पुलिस अधीक्षक से शिकायत करने पर कोई कार्रवाई नहीं करने का आरोप भी लगाया गया है। इस मामले की सुनवाई डिवीजन बेंच में चल रही थी। इसी बीच १ फरवरी २०१० को याचिकाकर्ता के वकील ने हाईकोर्ट में इस बात की जानकारी दी कि याचिकाकर्ता से उसका कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है।

  • चेतना परिषद पर लगाया आरोप

सिन्ना ने आदिवासी चेतना परिषद के पदाधिकारियों पर आरोप लगाते हुए कहा कि उसके अलावा कई और आदिवासियों को चेतना परिषद के पदाधिकारी दो बार बिलासपुर लेकर आए थे। इसी दौरान कई दस्तावेजों पर उसके हस्ताक्षर लिए गए थे। किस बात के लिए हस्ताक्षर लिए गए थे इसकी जानकारी उसे नहीं है।
वकील की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता की खोजबीन करने व कोर्ट में उपस्थित करने के लिए शासन को नोटिस जारी किया था। डिवीजन बेंच के निर्देश के बाद पुलिस ने २३ मार्च २०१० को याचिकाकर्ता विंगोसिन्ना को डिवीजन बेंच के समक्ष पेश किया। याचिकाकर्ता के वकील ने अपने मुवक्किल के रूप में उसकी पहचान की। डिवीजन बेंच द्वारा पूछताछ के दौरान याचिककर्ता ने कोर्ट के समक्ष सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा कि उसने किसी तरह की कोई याचिका हाईकोर्ट में दायर ही नहीं की है। और न ही पुलिस पर किसी तरह का आरोप लगाया है। विंगोसिन्ना ने इस बात की जानकारी कोर्ट को दी कि उसके पिता व बहन पिछले कुछ दिनों से गायब हैं। इस पर जस्टिस धीरेंद्र मिश्रा व जस्टिस आरएन चंद्राकर की डिवीजन बेंच ने दंतेवाड़ा एसपी को सिन्ना के पिता व बहन की खोजबीन करने के निर्देश दिए। साथ ही याचिका को निराकृत कर दिया है।

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