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Mar 27, 2010

पीएससी 2008 मे उम्र सीमा का निर्धारण सही : बिलासपुर हाईकोर्ट

मुख्य परीक्षा रोक का आदेश यथावत

बिलासपुर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में पीएससी 2008 की याचिका को खारिज करते हुए आयु सीमा के निर्धारण को सही ठहराया है। पीएससी ने स्थानीय प्रतियोगियों को आयु सीमा में 7 साल की छूट दी है, जिसे डिवीजन बेंच ने वैध माना है। दूसरे राज्यों के प्रतियोगियों ने इस निर्णय को भेदभावपूर्ण बताते हुए हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

पीएससी 2008 की प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर की गईं। सिंगल बेंच ने प्रकरण में नियमों को चुनौती देने का हवाला देते हुए याचिका को डिवीजन बेंच में रिफर कर दिया था। इस प्रकरण की सुनवाई जस्टिस धीरेंद्र मिश्रा व जस्टिस रंगनाथ चंद्राकर की बेंच में चल रही थी। डिवीजन बेंच ने करीब दो माह पहले मामले में फैसला सुरक्षित रखा लिया था। हाईकोर्ट ने इस बहुप्रतीक्षित प्रकरण में गुरुवार को आदेश जारी कर दिया है। कोर्ट ने राज्य शासन द्वारा निर्धारित आयु सीमा को सही ठहराते हुए याचिका को खारिज कर दिया है। 

विदित  हो कि उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद निवासी हेमानंदमणि त्रिपाठी सहित अन्य ने आयु सीमा निर्धारण के प्रावधान को चुनौती दी थी। इसमें कहा गया है कि पीएससी ने राज्य के बाहरी प्रतियोगियों को आयु सीमा में छूट नहीं दी है, जबकि स्थानीय प्रतियोगियों को छूट दी गई है। प्रारंभिक परीक्षा में चयनित होने के बाद भी उन्हें आयु के कारण मुख्य परीक्षा से वंचित होना पड़ रहा है। पीएससी के प्रावधान के अनुसार आयु सीमा 30 वर्ष निर्धारित है, लेकिन स्थानीय प्रतियोगियों को आयु सीमा में 7 वर्ष छूट दी गई है। शासन व पीएससी के इस निर्णय से संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 का उल्लंघन हो रहा है। 

पीएससी व शासन ने याचिकाकर्ताओं द्वारा आयु सीमा के निर्धारण पर आपत्ति करने को भी गलत ठहराया है। पीएससी की तरफ से कहा गया कि प्रदेश के स्थानीय प्रतियोगियों को प्राथमिकता देते हुए आयु सीमा 45 वर्ष नियत की गई है। राज्य शासन को अपने राज्य के मूल निवासियों के हित में निर्णय लेने का अधिकार है। साथ ही पीएससी परीक्षा के लिए नियम बनाने के लिए राज्य शासन को अधिकार प्राप्त है। वहीं चयनित प्रतियोगी चंद्रभान सिंह जादोन व मिथलेश ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उनके वकील मतीन सिद्घिकी का कहना था कि पीएससी ने विज्ञापन जारी करते समय ही यह स्पष्ट कर दिया था कि आयु सीमा में छूट सिर्फ राज्य के मूल निवासियों को ही दिया जाएगा। अब पीएससी ने परीक्षा लेने के बाद परिणाम भी जारी कर दिया है। ऐसे में रिजल्ट आने के बाद याचिका दायर करना उचित नहीं है।

Jan 22, 2010

पीएससी मामले में फैसला सुरक्षित

पीएससी की 2008 में हुई परीक्षा में आयु सीमा को चुनौती देते हुए दायर याचिका पर हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया है। उत्तरप्रदेश के छात्र ने याचिका में पीएससी पर आयु सीमा के मामले में भेदभाव का आरोप लगाते हुए सकरुलर रद्द करने की मांग की थी। कोर्ट ने दोनों पक्षों से लिखित में तर्क मांगा है। जानकारी के अनुसार इलाहाबाद उत्तरप्रदेश के हेमानंद मणि त्रिपाठी एवं अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि छत्तीसगढ़ पीएससी ने प्रारंभिक परीक्षा के बाद उन्हें यह कहते हुए अयोग्य घोषित कर दिया था कि उनकी उम्र 30 वर्ष से अधिक हो चुकी है।

याचिकाकर्ता ने इसे पक्षपात बताते हुए कहा कि दूसरे राज्य के प्रतियोगियों को परीक्षा से वंचित रखा जा रहा है, जबकि छत्तीसगढ़ के प्रतियोगियों को 8 वर्ष की अतिरिक्त छूट दी गई थी। इस मामले में पीएससी की ओर से संजय के. अग्रवाल ने जवाब पेश किया कि वर्ष 2008 की परीक्षा में 7 हजार परीक्षार्थी शामिल हुए थे, जिनमें से 1500 दूसरे राज्यों से थे। परीक्षा में शामिल होने से किसी भी राज्य के प्रतियोगियों को रोका नहीं गया था। परीक्षा में चयनित प्रतियोगियों की ओर से अधिवक्ता मतीन सिद्दीकी ने तर्क रखा कि हर राज्य अपने बेरोजगारों की बेहतरी के लिए कुछ न कुछ कदम उठाता है। मध्यप्रदेश में भी ऐसे कई प्रावधान होंगे, जिनमें दूसरे राज्यों के उम्मीदवार पूरा नहीं कर पाते होंगे।

याचिकाकर्ताओं ने आयु सीमा संबंधित सकरुलर रद्द करने की मांग भी रखी थी। इसपर शासन ने तर्क रखा है कि इससे उन प्रतियोगियों को कोई फायदा नहीं होगा। मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस धीरेंद्र मिश्रा व जस्टिस रंगनाथ चंद्राकर की डिवीजन बेंच ने फैसला सुरक्षित कर लिया है।

Sep 19, 2009

छत्‍तीसगढ पीएससी के पुराने मामलों की सुनवाई बढ़ी

छत्‍तीसगढ पीएससी के पुराने मामलों की सुनवाई कल शुक्रवार को हाईकोर्ट में हुई। इस दौरान एक याचिकाकर्ता की ओर से समय मांगने पर सुनवाई चार सप्ताह के लिए बढ़ा दी गई। वर्ष 2003 व 2005 में हुई पीएससी परीक्षा में गड़बड़ी को लेकर भी पूर्व में कई याचिकाएं दायर की गईं हैं। इनमें भी पीएससी की परीक्षा प्रणाली, आरक्षण, गलत उत्तरों के आधार पर परिणाम घोषित करने सहित कई मुद्दे उठाकर परीक्षा निरस्त कर नए सिरे से चयन प्रक्रिया शुरू करने की मांग की गई है।

इनमें याचिकाकर्ता वर्षा डोंगरे, चमनलाल सिन्हा सहित एक जनहित याचिका भी दायर की गई है। जनहित याचिका में वर्ष 2005 की परीक्षा को पूरी तरह अवैध बताते हुए इसे निरस्त करने की मांग की गई है। याचिका में बताया गया है कि 2005 की पूरी परीक्षा ही गलत तरीके से ली गई। इसमें किसी नियम का पालन नहीं किया गया। इस दौरान अध्यक्ष को हटाया गया, पीएससी के कई अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर भी हुई।

इसलिए इस परीक्षा के बाद हुई नियुक्तियों को वैध नहीं ठहराया जा सकता। ये सभी मामले आज चीफ जस्टिस राजीव गुप्ता, जस्टिस एसके सिन्हा की डिविजन बेंच में सुनवाई के लिए प्रस्तुत हुए। जनहित याचिका दायर करने वाले वकील द्वारा समय मांगने पर सभी मामलों की सुनवाई बढ़ा दी गई। गौरतलब है कि वर्ष 2008 की पीएससी परीक्षा की मुख्य परीक्षा हाईकोर्ट ने पहले ही आगामी आदेश तक स्थगित करते हुए अगली सुनवाई 7 अक्टूबर को तय की है।

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