पीएससी की 2008 में हुई परीक्षा में आयु सीमा को चुनौती देते हुए दायर याचिका पर हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया है। उत्तरप्रदेश के छात्र ने याचिका में पीएससी पर आयु सीमा के मामले में भेदभाव का आरोप लगाते हुए सकरुलर रद्द करने की मांग की थी। कोर्ट ने दोनों पक्षों से लिखित में तर्क मांगा है। जानकारी के अनुसार इलाहाबाद उत्तरप्रदेश के हेमानंद मणि त्रिपाठी एवं अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि छत्तीसगढ़ पीएससी ने प्रारंभिक परीक्षा के बाद उन्हें यह कहते हुए अयोग्य घोषित कर दिया था कि उनकी उम्र 30 वर्ष से अधिक हो चुकी है।
याचिकाकर्ता ने इसे पक्षपात बताते हुए कहा कि दूसरे राज्य के प्रतियोगियों को परीक्षा से वंचित रखा जा रहा है, जबकि छत्तीसगढ़ के प्रतियोगियों को 8 वर्ष की अतिरिक्त छूट दी गई थी। इस मामले में पीएससी की ओर से संजय के. अग्रवाल ने जवाब पेश किया कि वर्ष 2008 की परीक्षा में 7 हजार परीक्षार्थी शामिल हुए थे, जिनमें से 1500 दूसरे राज्यों से थे। परीक्षा में शामिल होने से किसी भी राज्य के प्रतियोगियों को रोका नहीं गया था। परीक्षा में चयनित प्रतियोगियों की ओर से अधिवक्ता मतीन सिद्दीकी ने तर्क रखा कि हर राज्य अपने बेरोजगारों की बेहतरी के लिए कुछ न कुछ कदम उठाता है। मध्यप्रदेश में भी ऐसे कई प्रावधान होंगे, जिनमें दूसरे राज्यों के उम्मीदवार पूरा नहीं कर पाते होंगे।
याचिकाकर्ताओं ने आयु सीमा संबंधित सकरुलर रद्द करने की मांग भी रखी थी। इसपर शासन ने तर्क रखा है कि इससे उन प्रतियोगियों को कोई फायदा नहीं होगा। मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस धीरेंद्र मिश्रा व जस्टिस रंगनाथ चंद्राकर की डिवीजन बेंच ने फैसला सुरक्षित कर लिया है।