Apr 18, 2010

देना बैंक प्रबंधन ने मांगा जवाब

कैशियर को गबन के आरोप में सेवामुक्त करने के मामले में बिलासपुर हाईकोर्ट ने देना बैंक छत्तीसगढ की महासमुंद शाखा के प्रबंधक सहित अन्य अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। जानकारी के अनुसार दैना बैंक की महासमुंद शाखा में कैशियर सीताराम बेहड़ा ने २४ फरवरी २००४ को बैंक में अधिक भीड़ होने के कारण भूलवश एक ग्राहक को एक लाख २० हजार रुपए अतिरिक्त भुगतान कर दिया था। शाम को हिसाब करने के दौरान उन्हें इसकी जानकारी हुई। श्री बेहड़ा ने तुरंत शाखा प्रबंधक को सूचना दी। दूसरे दिन उन्होंने रुपए का प्रबंध कर शाखा प्रबंधक को दिया। इसके बाद अतिरिक्त रकम ले जाने वाले ग्राहक की तलाश कर उन्होंने रुपए वापस ले लिए। बावजूद इसके शाखा प्रबंधक ने उन्हें निलंबित कर विभागीय जांच कराई। मामले की रिपोर्ट थाने में भी दर्ज कराई गई। इस प्रकार कर्मचारी के खिलाफ दोहरी कार्रवाई चलने लगी। उन्होंने बैंक के उच्चाधिकारियों से निलंबन की कार्रवाई पर रोक लगाकर नौकरी में पुनः वापस लेने की अपील की, लेकिन उनके आवेदन पर कार्रवाई नहीं हुई।

समिति ने जांच पूर्ण कर उसे बर्खास्त करने की अनुशंसा की। इसके बाद वर्ष २००५ में उसे बर्खास्त कर दिया गया। मामले की अपील करने पर बर्खास्तगी के आदेश को अनिवार्य सेवानिवृत्ति में बदल दिया गया। प्रबंधन की इस कार्रवाई के खिलाफ उन्होंने अधिवक्ता जितेंद्र पाली, मतीन सिद्दकी व वरुण शर्मा के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में कहा गया कि उच्चतम न्यायालय ने अपने एक निर्णय में कहा है कि यदि किसी कर्मचारी के खिलाफ पुलिस तथा विभागीय कार्रवाई एक साथ चल रही हो तो सामान्यता विभागीय कार्रवाई रोकी जानी चाहिए। यदि न्यायालयीन आदेश आने में देरी होने की संभावना हो तो विभागीय कार्रवाई को उस स्तर तक पूर्ण करना चाहिए कि कर्मचारी न्यायालय से बरी हो तो उसे तत्काल काम पर वापस लिया जा सके।

इसी तरह यदि वह दोषी पाया जाता है तो कर्मचारी से तत्काल मुक्ति पाई जा सके। देना बैंक प्रबंधन ने इस विधिक सिद्धांत की अनदेखी कर कर्मचारी के खिलाफ मनमानी कार्रवाई की है। मामले की सुनवाई जस्टिस सतीश अग्निहोत्री की एकलपीठ में हुई। याचिकाकार्ता का तर्क सुनने के बाद जस्टिस अग्निहोत्री ने देना बैंक के शाखा प्रबंधक सहित सभी अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

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