याचिकाकर्ता रविकुमार सहित अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि २००८ में शिक्षाकर्मियों की नियुक्ति के लिए व्यावसायिक परीक्षा मंडल ने विज्ञापन जारी किया था। इसके तहत याचिकाकर्ताओं ने भी करतला जनपद पंचायत में वर्ग-तीन की नियुक्ति के लिए आवेदनपत्र जमा किए थे। परीक्षा आयोजित करने के बाद व्यापमं ने मेरिट सूची जारी की। इसके बाद रिक्त पदों को भरने के लिए प्रतीक्षा सूची भी जारी कर दी। इसमें याचिकाकर्ताओं के भी नाम थे। इस बीच याचिकाकर्ताओं ने जनपद पंचायत कार्यालय से रिक्त पदों की पूर्ति की जानकारी मांगी। इस दौरान उन्हें बताया गया कि प्रतीक्षा सूची में शामिल आवेदकों को शीघ्र ही नियुक्ति आदेश जारी किया जाएगा, लेकिन इस बीच विधानसभा और लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने के कारण प्रक्रिया में विलंब हो गई। लिहाजा राज्य शासन ने प्रतीक्षा सूची की अवधि तीन माह के लिए बढ़ाने का आदेश दिया। इसके तहत प्रतीक्षा सूची की अवधि ३० जून तय की गई। जनपद पंचायत करतला के सीईओ ने जून के अंतिम सप्ताह में काउंसिलिंग शुरू की और ३० जून को ही नियुक्ति आदेश जारी कर दिया गया। मालूम हो कि यह मामला काफी सुर्खियों में था। यहां के तत्कालीन जनपद पंचायत अध्यक्ष ने सीईओ से दबाव डालकर नियुक्ति आदेश जारी कराया था, जबकि शासन ने सभी कलेक्टर्स को आदेश जारी कर प्रतीक्षा सूची की वैधता को ३० जून २००९ तक समाप्त करने कहा था, लेकिन यहां जनपद पंचायत में शासन द्वारा आदेश जारी करने के बाद आनन-फानन में काउंसिलिंग बुलाकर नियुक्ति आदेश जारी कर दिया गया। इस बीच कलेक्टर को मामले की जानकारी हुई, तो उन्होंने ३० जून को शिक्षाकर्मियों को दिए गए नियुक्ति आदेश को ही निरस्त कर दिया। इसके बाद भी शिक्षाकर्मियों ने कार्यभार ग्रहण कर लिया। इधर, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि नियुक्ति आदेश मिलने के बाद १६ जुलाई तक सभी ने कार्यभार ग्रहण कर लिया था, लेकिन कलेक्टर ने उन्हें सुनवाई का मौका दिए बगैर ही नियुक्ति निरस्त कर दी। याचिका में कलेक्टर के आदेश को अवैधानिक बताते हुए निरस्त करने की मांग की गई है। जस्टिस सतीश अग्निहोत्री ने पंचायत सचिव, कोरबा कलेक्टर और जनपद पंचायत करतला के सीईओ को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
UK: The Supreme Court on the 'creditor duty' - its existence, content and
engagement
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