बांबे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी जमानती अपराध के सिलसिले में गिरफ्तार व्यक्ति आर्थिक तंगी के कारण जमानत दे पाने में असमर्थ हो तो उसे एक सप्ताह के भीतर निजी मुचलके पर रिहा कर दिया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 436 में हुए संशोधन में इस बात के स्पष्ट प्रावधान किए गए हैं। इसके अनुसार, यदि आरोपी एक हफ्ते के भीतर जमानतदार का बंदोबस्त कर पाने में अक्षम हो तो उसे निर्धन मानकर निजी मुचलके पर भी रिहा किया जा सकता है। कोर्ट ने यह चेतावनी भी दी है कि उसके इस निर्देश का पालन नहीं किया गया तो संबंधित जेल प्रभारी को अपनी जेब से मुआवजा भरना होगा।
क्यों दिया ऐसा फैसला : जस्टिस एफआई रिबेलो तथा आशुतोष कुंभकोणी की बेंच ने इस साल के प्रारंभ में महाराष्ट्र के येरवदा और रत्नागिरी की जेलों का दौरा करने के बाद पाया कि मामूली अपराध के सिलसिले में कई विचाराधीन कैदी जेल में इसलिए बंद हैं, क्योंकि वे अपने लिए जमानतदार नहीं जुटा सके। अब एक हत्या के मामले में आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि अकेले मुंबई के आर्थर रोड जेल के 2296 कैदियों में से 1660 कैदी जमानती अपराधों के सिलसिले में बंद हैं।
कोर्ट हैरान : जजों ने इस पर हैरानी जताते हुए कहा कि तीन साल पहले लागू सीआरपीसी की धारा 436 (संशोधित) के अनुसार, एक सप्ताह के भीतर जमानतदार न जुटा पाने पर आरोपी को निर्धन मान लिए जाने का प्रावधान है।
कोर्ट के निर्देश : कोर्ट ने महाराष्ट्र और केंद्र शासित क्षेत्र दीव, दमन और दादरा व नगर-हवेली को इस संशोधित प्रावधान को फौरन लागू करने को कहा है। इसके अलावा प्रमुख सेशंस जजों से भी कहा गया है कि वे निचली अदालतों से हर माह रिहा किए जाने वाले कैदियों के बारे में रिपोर्ट मांगें। बांबे हाईकोर्ट हर साल इस मामले की समीक्षा करेगी।
समाचार - भास्कर से साभार
MEITY to release draft DPDP rules for public consultation after Budget
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As reported by CNBC, MeitY is set to release draft rules for the Data
Protection and Privacy (DPDP) Act for public consultation immediately
following the B...
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