याचिका कर्ता मन्नूलाल देवांगन केलो परियोजना जल संसाधन विभाग से सहायक अभियंता के पद पर कार्य करते हुए वर्ष 2007 में सेवा निवृत्त हुए। जनवरी 2008 में विभाग ने याचिका कर्ता का पेंशन अदायगी आदेश जारी किया जिसके द्वारा याचिका कर्ता की पेंशन राशि से 44933 रू की वसूली किये जाने का निर्देश दिया गया ।उक्त वसूली आदेश जारी किये जाने के पूर्व याचिका कर्ता को कोई नोटिस अथवा सूचना नही दी गई और ना ही याचिकाकर्ता को कोई कारण बताया गया की वसूली क्यों की जा रही हैं। याचिकाकर्ता ने विभाग को अभ्यावेदन प्रस्तुत कर यह निवेदन किया कि इस तरह की एकतरफा वसूली अवैध है तथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय तथा माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के द्वारा ऐसी वसूलियों को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ बताया हैं। विभाग द्वारा कोई सुनवाई नही किये जाने पर याचिकाकर्ता ने अधिवक्ता जितेन्द्र पाली तथा वरुण शर्मा के माध्यम से याचिका प्रस्तुत की जिसमे माननीय उच्च न्यायालय ने राज्य शासन तथा जल संसाधन विभाग को नोटिस जारी करते हुए यह पुछा था कि लोगों को कोर्ट जाने हेतु विवष क्यो किया जा रहा है। उक्त याचिका की अंतिम सुनवाई करते हुए माननीय उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता के खिलाफ की गई वसूली को अवैध ठहराते हुए याचिकाकर्ता को सम्पूर्ण राशि लौटाये जाने का निर्देश विभाग को दिया है।
निजी डेंटल कालेज ने षासकीय कोटे के छात्रों को निकाला, हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर जवाब मांगा
याचिकाकर्ता अदिति जैन व अन्य दंत चिकित्सा में स्नातक हैं। छग डेंटल कालेज एंड
रिसर्च इंस्टीट्यूट राजनांदगांव में स्थित एक निजी डेंटल कालेज है जहां दंत चिकित्सा में स्नातक तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम पढ़ाए जाते हैं। उक्त निजी कालेज को राज्य शासन ने वर्ष 2008 में केवल एक वर्ष के लिए अल्पसंख्यक संस्था की मान्यता दी थी।
राज्य शासन ने वर्ष 2012 में दंत चिकित्सा के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम एमडीएस कोर्स में प्रवेश हेतु नियम बनाए। उक्त नियमो में राज्य शासन ने यह स्पष्ट किया कि सभी पाठ्यक्रमों में प्रवेश शासकीय नियमानुसार ही होगा। राज्य शासन के द्वारा छत्तीसगढ़ आयुश तथा स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय को प्रवेश परीक्षा करवाने हेतु अधिकृत किया। यह उल्लेखनीय है कि दंत चिकित्सा तथा उससे संबंधित पाठ्यक्रम डेंटल काउंसिल आफ इंडिया यानि डीसीआई के द्वारा नियंत्रित होते हैं जोकि केंद्र शासन की एक सशक्त संस्था है। डीसीआई ने एमडीएस पाठ्यक्रम हेतु रेगुलेशन अर्थान नियमावली 2007 जारी की है जिसके अनुसार किसी भी कालेज में दंत चिकित्सा के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में 50 प्रतिषत सीटें शासकीय कोटे से भरी जानी आवश्यक हैं। डीसीआई के दिशानिर्देशों के विपरीत कोई भी प्रवेश नहीं हो सकता।
इसी वर्ष 9 मई 2012 को राज्य शासन ने संचालक चिकित्सा शिक्षा को पत्र लिखकर स्पष्ट किया कि छग डेंटल कालेज ने कोई अल्पसंख्यक स्वरूप का प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया है तथा उक्त संस्था में 50 प्रतिषत सीटें षासकीय कोटे से भरी जाएंगी। उक्त आदेश का कोई विरोध छग डेंटल कालेज ने नहीं किया। इसी बीच दिनांक 24 मई 2012 को स्नातकोत्तर प्रवेश परीक्षा आयोजित हुई जिसमें सभी याचिकाकर्ता सम्मिलित हुए और सभी ने प्रावीण्य में स्थान प्राप्त किया। उक्त परीक्षा के पश्चात काउंसिलिंग दिनांक 30 मई को रखी गई। उसी दिन छग डेंटल कालेज ने एक प्रेस सूचना जारी करते हुए यह कहा कि माननीय छग उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय के अनुसार छग डेंटल कालेज में कोई शायकीय कोटे की सीट नहीं है तथा छात्र उनके कालेज में काउंसिलिंग से प्रवेश न लें। उक्त प्रेस नोट के जवाब में संचालक चिकित्सा शिक्षा ने तत्काल छग डेंटल कालेज को पत्र लिखकर स्पष्ट किया कि कालेज के द्वारा अपने अल्पसंख्यक होने के संबंध में कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया है इसलिए शासन को कालेज का अल्पसंख्यक संस्थान होना मान्य नहीं है और शासकीय कोटे से प्रवेश देना होगा।
याचिकाकर्ताओं ने दिनांक 30 मई 2012 को आयोजित काउंसिलिंग में छग डेंटल कालेज को प्रवेश हेतु चुना और कालेज ने सभी याचिकाकर्ताओं का प्रवेश मान्य करते हुए उनसे फीस आदि जमा करवा कर प्रवेश दे दिया। साथ ही यह पत्र भी दे दिया कि उनके कालेज में शासकीय कोटे की कोई सीट नहीं है अतः सभी याचिकाकर्ता अपनी स्वयं की जिम्मेदारी पर प्रवेश लें। सभी याचिकाकर्ता उक्त कालेज में डेढ़ महीने तक पढ़ते भी रहे। दिनांक 18 जुलाई 2012 को
राज्य शासन ने कालेज को पत्र लिखकर कहा कि आपके पास 17 सीटें हैं और आपने 22 छात्रों को प्रवेश दिया है अतः 5 सीटों के प्रवेश रद्द करें। उक्त आदेश का बहाना लेकर कालेज ने सभी याचिकाकर्ता जोकि नियमानुसार शासकीय कोटे के छात्र थे उनका प्रवेश रद्द कर दिया।
याचिकाकर्ताओं ने अधिवक्ता जितेंद्र पाली तथा वरुण शर्मा के माध्यम से माननीय उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की जिसमें माननीय उच्च न्यायालय ने राज्य शासन, डीसीआई, संचालक चिकित्सा शिक्षा तथा छग डेंटल कालेज को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
निजी डेंटल कालेज ने षासकीय कोटे के छात्रों को निकाला, हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर जवाब मांगा
याचिकाकर्ता अदिति जैन व अन्य दंत चिकित्सा में स्नातक हैं। छग डेंटल कालेज एंड
रिसर्च इंस्टीट्यूट राजनांदगांव में स्थित एक निजी डेंटल कालेज है जहां दंत चिकित्सा में स्नातक तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम पढ़ाए जाते हैं। उक्त निजी कालेज को राज्य शासन ने वर्ष 2008 में केवल एक वर्ष के लिए अल्पसंख्यक संस्था की मान्यता दी थी।
राज्य शासन ने वर्ष 2012 में दंत चिकित्सा के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम एमडीएस कोर्स में प्रवेश हेतु नियम बनाए। उक्त नियमो में राज्य शासन ने यह स्पष्ट किया कि सभी पाठ्यक्रमों में प्रवेश शासकीय नियमानुसार ही होगा। राज्य शासन के द्वारा छत्तीसगढ़ आयुश तथा स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय को प्रवेश परीक्षा करवाने हेतु अधिकृत किया। यह उल्लेखनीय है कि दंत चिकित्सा तथा उससे संबंधित पाठ्यक्रम डेंटल काउंसिल आफ इंडिया यानि डीसीआई के द्वारा नियंत्रित होते हैं जोकि केंद्र शासन की एक सशक्त संस्था है। डीसीआई ने एमडीएस पाठ्यक्रम हेतु रेगुलेशन अर्थान नियमावली 2007 जारी की है जिसके अनुसार किसी भी कालेज में दंत चिकित्सा के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में 50 प्रतिषत सीटें शासकीय कोटे से भरी जानी आवश्यक हैं। डीसीआई के दिशानिर्देशों के विपरीत कोई भी प्रवेश नहीं हो सकता।
इसी वर्ष 9 मई 2012 को राज्य शासन ने संचालक चिकित्सा शिक्षा को पत्र लिखकर स्पष्ट किया कि छग डेंटल कालेज ने कोई अल्पसंख्यक स्वरूप का प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया है तथा उक्त संस्था में 50 प्रतिषत सीटें षासकीय कोटे से भरी जाएंगी। उक्त आदेश का कोई विरोध छग डेंटल कालेज ने नहीं किया। इसी बीच दिनांक 24 मई 2012 को स्नातकोत्तर प्रवेश परीक्षा आयोजित हुई जिसमें सभी याचिकाकर्ता सम्मिलित हुए और सभी ने प्रावीण्य में स्थान प्राप्त किया। उक्त परीक्षा के पश्चात काउंसिलिंग दिनांक 30 मई को रखी गई। उसी दिन छग डेंटल कालेज ने एक प्रेस सूचना जारी करते हुए यह कहा कि माननीय छग उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय के अनुसार छग डेंटल कालेज में कोई शायकीय कोटे की सीट नहीं है तथा छात्र उनके कालेज में काउंसिलिंग से प्रवेश न लें। उक्त प्रेस नोट के जवाब में संचालक चिकित्सा शिक्षा ने तत्काल छग डेंटल कालेज को पत्र लिखकर स्पष्ट किया कि कालेज के द्वारा अपने अल्पसंख्यक होने के संबंध में कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया है इसलिए शासन को कालेज का अल्पसंख्यक संस्थान होना मान्य नहीं है और शासकीय कोटे से प्रवेश देना होगा।
याचिकाकर्ताओं ने दिनांक 30 मई 2012 को आयोजित काउंसिलिंग में छग डेंटल कालेज को प्रवेश हेतु चुना और कालेज ने सभी याचिकाकर्ताओं का प्रवेश मान्य करते हुए उनसे फीस आदि जमा करवा कर प्रवेश दे दिया। साथ ही यह पत्र भी दे दिया कि उनके कालेज में शासकीय कोटे की कोई सीट नहीं है अतः सभी याचिकाकर्ता अपनी स्वयं की जिम्मेदारी पर प्रवेश लें। सभी याचिकाकर्ता उक्त कालेज में डेढ़ महीने तक पढ़ते भी रहे। दिनांक 18 जुलाई 2012 को
राज्य शासन ने कालेज को पत्र लिखकर कहा कि आपके पास 17 सीटें हैं और आपने 22 छात्रों को प्रवेश दिया है अतः 5 सीटों के प्रवेश रद्द करें। उक्त आदेश का बहाना लेकर कालेज ने सभी याचिकाकर्ता जोकि नियमानुसार शासकीय कोटे के छात्र थे उनका प्रवेश रद्द कर दिया।
याचिकाकर्ताओं ने अधिवक्ता जितेंद्र पाली तथा वरुण शर्मा के माध्यम से माननीय उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की जिसमें माननीय उच्च न्यायालय ने राज्य शासन, डीसीआई, संचालक चिकित्सा शिक्षा तथा छग डेंटल कालेज को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।