माननीय उच्च न्यायालय छत्तीसगढ के न्यायमूर्ति श्री सतीश अग्निहोत्री जी की एकलपीठ ने वन विभाग द्वारा जारी स्थानांतरण आदेश पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश करते हुए सचिव वन विभाग, प्रधान मुख्य वन संरक्षक तथा वन संरक्षक कार्य आयोजना वनमंडल जांजगीर चांपा को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है।
याचिकाकर्ता सी.पी भारद्वाज की पोस्टिंग कार्यआयोजना जांजगीर चांपा में वर्ष 2008 में की गई थी। कार्य आयोजना का कार्य पूर्ण हो जाने पर याचिकाकर्ता का स्थानांतरण करते हुए वर्ष 2010 में सक्ती भेजा गया। याचिकाकर्ता की सेवानिवृत्ति में एक वर्ष से कम अवधि बचे होने के बावजूद दिनांक 07.01.2012 को नए स्थानांतरण आदेश जारी करते हुए पुनः कार्य आयोजना जांजगीर चांपा भेज दिया गया जिसका कार्य पूर्ण हो चुका है। उक्त स्थानांतरण आदेश में याचिकाकर्ता के अतिरिक्त 35 अन्य का भी स्थानांतरण किया गया।
अधिवक्ता जितेन्द्र पाली |
याचिकाकर्ता ने उक्त स्थानांतरण आदेश को अधिवक्ता जितेन्द्र पाली, वरुण शर्मा के माध्यम से माननीय उच्च न्यायालय में चुनौती दी। तर्क यह था कि स्थानांतरण जोकि शासकीय सेवा की एक अनिवार्य घटना है तथा नियोजक के रूप में शासन का विशेष अधिकार है स्थानांतरण नीति से नियंत्रित होता है। छत्तीसगढ़ शासन ने इस सत्र 2011-12 के लिए स्थानांतरण नीति निर्धारित की है जिसमें स्थानांतरण करने की अंतिम तिथि 15 जुलाई 2011 नियत की गई है तथा उसके पश्चात स्थानांतरण पर प्रतिबंध रखा गया है। दिनांक 08 अगस्त 2011 को एक और आदेश जारी कर राज्य शासन ने यह व्यवस्था दी है कि प्रतिबंध अवधि में अत्यंत आवश्यक परिस्थिति में प्रमुख सचिव के समन्वय में मुख्य मंत्री से अनुमति पश्चात ही स्थानांतरण किए जाने है।
याचिकाकर्ता के स्थानांतरण हेतु कोई अत्यंत आवश्यक परिस्थिति उपलब्ध नहीं है। माननीय उच्च न्यायालय ने बड़ी संख्या में स्थानांतरण को अत्यंत आवश्यक परिस्थिति हेतु दी गई सुविधा का दुरूपयोग पाते हुए याचिकाकर्ता के स्थानांतरण पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश करते हुए राज्य शासन तथा अन्य प्रतिवादियों से जवाब मांगा है। राज्य शासन द्वारा स्थानांतरण की अंतिम तिथि नियत करने के पीछे मंशा यही थी कि लोकसेवकों को अनावश्यक रूप से सत्र के बीच में होने वाले स्थानांतरणों से परेशान न होना पड़े।