माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की माननीय न्यायमूर्ति श्री सुनील कुमार सिन्हा तथा राधेश्याम शर्मा की खंडपीठ ने संविधान के अनुच्छेद 162 की व्याख्या करते हुए यह स्पष्ट किया है कि सरकार उक्त अनुच्छेद में प्राप्त शक्तियां बिना किसी विधिक आधार के नागरिकों के अधिकारों का हनन करने के लिए प्रयोग नहीं कर सकती।
याचिकाकर्ता जयंत किशोर, अर्पिता शुक्ला, पूजा तिवारी, भेवेन्द्र कुमार तथा अन्य ने माननीय उच्च न्यायालय में संचालक तकनीकी शिक्षा के परिपत्र दिनांक 12.07.2010 तथा 20.08.2010 को चुनौती दी जिसके तहत राज्य शासन ने सभी विश्वविद्यालयों को आदेश जारी किया था कि ऐसे अभ्यर्थी जिन्होंने इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा पीइटी, एआईइइइ आदि में शून्य अथवा ऋणात्मक अंक प्राप्त किए हैं उन्हें किसी बीई कोर्स में प्रवेश की पात्रता नहीं होगी। सभी याचिकाकर्ताओं ने अलग अलग निजी महाविद्यालयों में मैनेजमेंट कोटा की महंगी सीटों में उक्त परिपत्रों के जारी होने से पहले ही प्रवेश ले लिया था। स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय ने उक्त परिपत्रों के आधार पर सभी याचिकाकर्ताओं का नामांकन करने से इन्कार कर दिया। माननीय उच्च न्यायालय ने याचिका की आरंभिक सुनवाई में अंतरिम आदेश जारी करते हुए सभी याचिकाकर्ताओं को परीक्षा में बैठाने का आदेश दिया। माननीय न्यायालय के अंतरिम आदेशों के तहत सभी याचिकाकर्ता तीसरे सेमेस्टर तक पढ़ाई पूर्ण कर चुके थे।
अधिवक्ता जितेन्द्र पाली |
मामले की अंतिम सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता संदीप दुबे, मनोज परांजपे, जितेन्द्र पाली, वरूण शर्मा ने तर्क रखा कि छत्तीसगढ़ इंजीनियरिंग स्नातक पाठ्यक्रम प्रवेश नियम,2010 के नियम 2.4 1⁄4ए1⁄2 के तहत सभी निजी इंजीनियरिंग कालेजों में 15 प्रतिशत सीटें मैनेजमेंट अथवा प्रबंधन कोटा होता है। उक्त प्रबंधन कोटे में छग तथा बाहर के राज्यों के छात्र भी पीईटी अथवा एआईइइइ जैसी प्रवेश परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर प्रवेश हेतु पात्र होते हैं। उक्त प्रबंधन कोटे में प्रवेश हेतु काउंसिलिंग कालेज स्तर पर होती है। उक्त प्रवेश नियम में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि पीइटी, एआइइइइ में कितने अंक न्यूनतम होंगे। अतः संचालक तकनीकी शिक्षा का परिपत्र नियम विरूद्ध है तथा याचिकाकर्ताओं के शिक्षा के मूल अधिकारों का हनन करता है। उक्त परिपत्र सक्षम अधिकारी द्वारा जारी नही किया गया है। राज्य शासन ने अपने द्वारा जारी परिपत्रों का पुरजोर समर्थन करते हुए यह तर्क
रखा कि संविधान के अनुच्छेद 162 के अंतर्गत राज्य शासन को परिपत्र जारी करने का अधिकार है। उक्त परिपत्र शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के उद्देश्य से जारी किए गए हैं।
माननीय उच्च न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय की नजीरों पर विचार करते हुए तथा अनुच्छेद 162 की व्याख्या करते हुए यह धारित किया है कि अनुच्छेद 162 के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग केवल उन स्थानों पर हो सकता है जहां संसद अथवा विधानसभा द्वारा पारित कोई कानून उपलब्ध न हो। जहां कोई कानून उपलब्ध हो वहां उस कानून के विपरीत कोई भी परिपत्र अनुच्छेद 162 के अंतर्गत जारी नहीं किया जा सकता। राज्य शासन इस प्रकरण में कोई भी ऐसा विधिक आधार प्रस्तुत नहीं कर सका जिसके तहत परिपत्र जारी किया गया है। वर्ष 2011-12 में जारी प्रवेश नियम में न्यूनतम अंक का प्रावधान रखा गया है परंतु वर्ष 2010 में प्रवेश लिए अभ्यर्थियों पर केवल आधारहीन परिपत्र के द्वारा रोक लगाना अनुचित है तथा संविधान की मूल आस्था के खिलाफ है। इस प्रकार माननीय उच्च न्यायालय ने सभी याचिकाकर्ताओं का प्रवेश वैध ठहराया है। स्वामी विवेकानंद विवि को भी निर्देशित किया है कि याचिकाकर्ताओं का नामांकन कर उन्हें बी.ई कोर्स बिना किसी बाधा के पूर्ण कराने के आदेश जारी किए हैं।