माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में राज्य शासनसमुंद, जगदलपुर, दुर्ग आदि कार्यालयों में हुई। वर्ष 2010 में वाणिज्य कर आयुक्त ने आदेश जारी किया कि वाणिज्य कर कार्यालयों में डाक वाहकों के पद पर सीधी भर्त२े यह स्पष्ट कहा है कि सरकारी नियुक्तियों पर सबका अधिकार है और कोई भी भर्ती बिना सबको भाग लेने का मौका दिए की जाना असंवैधानिक और अवैध है।
याचिकाकर्ता वीरू यादव, गजानंद लहरे, प्रीतम नामदेव, रविकांत चेलक एन. रामू तथा अन्य कई की नियुक्ति डाक वाहक या प्रोसेस सर्वर के रूप में कलेक्टर दर पर वर्ष 2008 में वाणिज्य कर विभाग के रायपुर, महासमुंद, जगदलपुर, दुर्ग आदि कार्यालयों में हुई। वर्ष 2010 में वाणिज्य कर आयुक्त ने आदेश जारी किया कि वाणिज्य कर कार्यालयों में डाक वाहकों के पद पर सीधी भर्ती रोजगार कार्यालय से नाम मंगवाकर की जाएगी।
उपसंभागायुक्त वाणिज्य कर ने भी सीधे रोजगार कार्यालय को पत्र लिखकर नाम भेजने को कहा। याचिकाकर्ता जो कि इस आस में कि सीधी भर्ती होने पर उन्हें भी सभी की तरह खुली प्रतियोगिता में भाग लेकर नियमित भर्ती का मौका मिल पाएगा इस निर्णय से उक्त पदों पर भर्ती होने से वंचित हो गए। विभाग के उक्त कृत्य से व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं ने अधिवक्ता जितेंद्र पाली तथा वरुण शर्मा की ओर से याचिका प्रस्तुत की। माननीय उच्च न्यायालय ने याचिका स्वीकार करते हुए नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक लगा दी तथा राज्य शासन व अन्य प्रतिवादियों को जवाब प्रस्तुत करने को कहा। उक्त याचिका में राज्य शासन तथा वाणिज्यकर विभाग ने जवाब प्रस्तुत कर यह तर्क लिया कि याचिकाकर्ता दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी हैं अतः उन्हें कोई अधिकार नहीं है और रोजगार कार्यालय से नाम मंगवाने का निर्णय प्रशासकीय निर्णय है।
वर्ष 2008 में माननीय उच्च न्यायालय ने दरबार सिंह पोर्ते विरुद्ध छग शासन के फैसले में ऐसी ही स्थिति का विचारण करते हुए यह धारित किया है कि केवल रोजगार कार्यालय से नाम मंगवा लेने से खुली प्रतियोगिता की संवैधानिक आवश्कयता पूर्ण नहीं होती। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 के परिपालन में यह राज्य शासन का दायित्व है कि आमजनता को खुला निमंत्रण (विज्ञापन द्वारा) देकर भर्ती की जानी चाहिए।
उक्त मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क रखा गया कि केवल रोजगार कार्यालय से नाम मंगवाने से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 द्वारा प्रस्तावित आवश्कयताएं पूर्ण नहीं होती हैं तथा ऐसा करना शासकीय पदों पर नियुक्ति की संवैधानिक व्यवस्था तथा योजना के विरुद्ध हैं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय तथा माननीय छग उच्च न्यायालय के द्वारा भी ऐसी भर्तियों को नियम विरुद्ध बताया गया है। माननीय उच्च न्यायालय ने मामले की अंतिम सुनवाई करते हुए वाणिज्यकर आयुक्त के रोजगार कार्यालय से नाम मंगवाकर भर्ती किए जाने के आदेश दिनांक 04 जनवरी 2010 को निरस्त करते हुए नियमानुसार संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप भर्ती करने का निर्देश दिया है। उक्त आदेश के निरस्त होने के फलस्वरूप उपरोक्त आदेश के पालन में शुरू की गई भर्ती प्रक्रिया स्वयमेव निरस्त हो गई है। उक्त आदेश से अब वाणिज्य कर विभाग के रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, महासमुंद, जगदलपुर आदि सभी वृत्तों में डाकवाहकों की नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो गया है।