प्रभात कुमार, पूर्व राज्यपाल
लूट-पाट का अर्जन तभी रुकेगा जब ऐसी काली कमाई को 'कंपल्सरी एक्वायर' किया जाए। भ्रष्टाचारियों के दिमाग में कम से कम यह डर तो बैठे कि लूटने के बाद उसे जब्त करने का भी प्रावधान है। जब प्रावधान ही नहीं है, तो फिर डर किस बात का। देश में ऐसी जब्ती का कोई कानून का नहीं होना, भ्रष्टाचार को और विद्रूप करता जा रहा है।
भ्र ष्टाचार का कैंसर पूरी व्यवस्था को जकड चुका है। अपराध का मामला इतना संगीन हो चला है कि कोई विभाग इससे अछूता नहीं रहा। मैं तो एक ही शब्द में कहूंगा कि अपराधियों को फांसी पर लटका देना चाहिए। बांबे हाईकोर्ट ने सरकारी बाबुओं के भ्रष्टाचार के संदर्भ में आजीवन कारावास की बात कही। लेकिन यह सलाह सिर्फ बाबुओं के लिए ही क्यों? इस सजा के तहत वे सारे लोग आने चाहिए जो किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार करते हैं या फिर अपरोक्ष तरीके से उसे बढावा देने में मदद करते हैं। भ्रष्टाचार का आरोपी कोई भी हो, कानून सबके लिए एक है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए मौजूदा कानूनी प्रावधान नाकाफी है। दोषी पाए जाने पर सजा तो हो जाती है, लेकिन भ्रष्ट आचरण से कमाई गई संपत्ति का कुछ नहीं होता। वह तो यूं ही स्वामित्व में बनी रहती है। इस कारण आगे गलती करने में एक तरह से प्रोत्साहन मिलता है। इस प्रोत्साहन को जड से समाप्त करने का उपाय होना जरूरी है। कई सारे मामले सामने आए हैं जिसमें राजनेता, सरकारी अधिकारी, बैंकर या फिर सार्वजनिक जीवन के लोग भ्रष्ट कारनामों से संपत्ति अर्जित किए हैं। अर्जित धनराशि की मात्रा भी ऐसी कि लोग सुनते ही दांतों तले उंगली दबा लें। परिणाम भी सामने आए लेकिन उन्हें हुआ कुछ भी नहीं। लूट-पाट का अर्जन तभी रुकेगा जब ऐसी काली कमाई को 'कंपल्सरी एक्वायर' किया जाए। भ्रष्टाचारियों के दिमाग में कम से कम यह डर तो बैठे कि लूटने के बाद उसे जब्त करने का भी प्रावधान है। जब प्रावधान ही नहीं है, तो फिर डर किस बात का। देश में ऐसी जब्ती का कोई कानून का नहीं होना, भ्रष्टाचार को और विद्रूप करता जा रहा है। मौजूदा हालात को देखते हुए यह आवश्यक है कि अपराध के दंड के प्रावधान के साथ-साथ भ्रष्ट कमाई को भी जब्त करने पर कारगर कदम उठाए जाएं। संपत्ति जब्त करने का कोई कानून हाल-फिलहाल में बनते नहीं दिखता, क्योंकि सरकार में इतनी हिम्मत नहीं कि वह कोई कठोर कदम उठाए। हालांकि विधि आयोग ने इस संदर्भ में एक बिल भी सरकार को दिया है, लेकिन उस पर विचार कहां हो रहा है। सरकार को इसे प्राथमिक अहमियत देते हुए अविलंब विचार करना चाहिए।
आरंभ में पढ़ें : -
रौशनी में आदिम जिन्दगी : भाग 1
रौशनी में आदिम जिन्दगी : भाग 2
रौशनी में आदिम जिन्दगी : भाग 3
रौशनी में आदिम जिन्दगी : भाग 4