Aug 13, 2010

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मनोरोग चिकित्सकों को लाइसेंस लेने के लिए बाध्य किए जाने पर रोक लगा दी है। कोर्ट का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश मनोपचार अस्पताल पर लागू होता है।

तमिलनाडु के एक मनोपचार अस्पताल में आग लगने से वहां भर्ती २५ मरीजों की जलने से मौत हो गई। इसका कारण यह बताया गया कि मनोरोगी होने से मरीजों को जंजीर से बांध कर रखा गया था। इसके कारण वे अपना बचाव नहीं कर सके। दुर्घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिए कि राज्य में कितने मनोपचार अस्पताल व नर्सिग होम बिना लाइसेंस के संचालित हो रहे हैं, इसकी सूची बनाई जाए। इसके परिपालन में छत्तीसगढ़ शासन ने डॉक्टरों को वर्ष २००२ में मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम १९८७ के अंतर्गत लाइसेंस प्राप्त करने के निर्देश दिए। पत्र में इस बात का उल्लेख किया गया कि चिकित्सक मनोपचार संबंधी अस्पताल या नर्सिंग होम चला रहे हैं, तो लाइसेंस लेना आवश्यक होगा। शासन के इस आदेश के खिलाफ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सोनिया परिसल, डॉ. अशोक त्रिवेदी, डॉ. अरुणांशु परियल, डॉ. चंद्रकिरण दुबे, डॉ. दिलीप कुमार दास ने अधिवक्ता जितेंद्र पाली, वरुण शर्मा के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका लगाई। इसमें कहा गया कि सभी डॉक्टरों की क्लीनिक हैं, किंतु यहां मनोरोगी को इलाज के लिए भर्ती नहीं किया जाता है। इसके कारण लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं है। शासन द्वारा जबर्दस्ती लाइसेंस लेने के लिए बाध्य कर छापा मारते हुए परेशान किया जा रहा है। हाईकोर्ट से नोटिस मिलने के बाद शासन ने अपने जवाब में कहा कि उक्त आदेश सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार जारी किया गया है। जस्टिस सतीश अग्निहोत्री ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम १९८७ की धारा (क्यू) के संदर्भ को लेते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश केवल मनोपचार संबधी अस्पताल या नर्सिग होम से संबंधित है। यह मनोचिकित्सकों पर लागू नहीं होता है, जहां मरीजों को उपचार के लिए भर्ती किया जाता है, उन अस्पतालों पर यह आदेश लागू होगा।

आरंभ में पढ़ें : - एक थी नारायणी कहानी संग्रह
लेह अब यादें ही शेष हैं

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