बिलासपुर हाईकोर्ट ने व्याख्याता पदोन्नति परीक्षा में द्वितीय श्रेणी की बाध्यता को अनिवार्य किए जाने संबंधी आदेश को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने रोके गए परिणाम को घोषित करने के निर्देश दिए हैं।
राज्य शासन ने व्याख्याता के ५६०१ रिक्त पदों को विभागीय पदोन्नति परीक्षा से भरने १० अक्टूबर २००८ को विज्ञापन प्रकाशित कराया था। इसमें १२ वर्ष का अनुभव रखने वाले कोई भी शिक्षक या तीन साल कार्य पूरा करने वाले उच्च श्रेणी शिक्षक को शामिल करने की शर्त रखी गई थी। उन्हें द्वितीय श्रेणी में स्नातकोत्तर एवं बीएड होना अनिवार्य किया गया। इसके बाद १७ अक्टूबर को विज्ञापन में संशोधन कर शासन ने कहा कि उक्त परीक्षा में केवल द्वितीय श्रेणी स्नातकोत्तर ही शामिल हो सकते हैं। शासन के इस आदेश को शिवनाथ लहरे ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उन्होंने कहा था कि उक्त विज्ञापन छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा (भर्ती तथा पदोन्नति नियम २००८) के आधार पर जारी किया गया है। इसके अनुसार श्रेणी बंधनकारी नहीं है। सुनवाई उपरांत हाईकोर्ट की एकलपीठ ने तृतीय श्रेणी वाले याचिकाकर्ता को परीक्षा में बैठने की अनुमति देने का आदेश दिया, लेकिन याचिका को खारिज कर दिया।
इस पर उसने अधिवक्ता अजय श्रीवास्तव के माध्यम से हाईकोर्ट में रिट अपील प्रस्तुत की। इसमें बताया गया कि छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा (भर्ती तथा पदोन्नति नियम २००८) में २८ अगस्त २००८ को एक संशोधन किया गया, जिसके अनुसार व्याख्याता परीक्षा में द्वितीय श्रेणी की बाध्यता समाप्त की गई है। राजपत्र में हुए उक्त संशोधन के बाद भी द्वितीय श्रेणी की बाध्यता को रखा गया है। हाईकोर्ट की युगलपीठ ने याचिका को स्वीकार कर शासन को नोटिस जारी कर परिणम घोषित करने पर रोक लगा दी। शुक्रवार को हाईकोर्ट की युगलपीठ में याचिका पर पुनः सुनवाई हुई। हाईकोर्ट ने द्वितीय श्रेणी की बाध्यता को गलत मानते हुए एकलपीठ के आदेश को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने शासन को रोके गए परिणाम घोषित करने निर्देश दिए हैं।