Jun 20, 2010

वनवासी महिला पहुंची हाईकोर्ट

एक अदद पट्टा के लिए पहले वन विभाग के आला अफसरों ने वनवासी महिला को परेशान किया। बिलासपुर हाईकोर्ट ने उसकी गुहार सुनी और पट्टे की जमीन पर जीवन-यापन करने आदिवासी महिला को हक दे दिया। अब उसी जमीन पर परिजनों की नजर लग गई है। अपने वकील के जरिए वनवासी महिला ने दोबारा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

मामला रायपुर वनमंडल का है। वनग्राम गबोद में रहने वाली शशि बाई प्रधान को वनभूमि की एक अदद जमीन के टुकड़े के लिए पिछले १० वर्ष से संघर्ष करना पड़ रहा है। पहले वह वन विभाग के आला अफसरों के कोपभाजन की शिकार हुई। सन्‌ २००० में वनग्राम गबोद में अन्य वनवासियों की तरह उसे भी पट्टा दिया गया था। इसके ८ साल बाद २२ सितंबर २००८ को मुख्य वनसंरक्षक रायपुर ने नोटिस जारी कर बेदखली का आदेश जारी कर दिया। सीसीएफ के आदेश को चुनौती देते हुए उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने ७ नवंबर २००८ को याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए वनभूमि पर कब्जा को बरकरार रखने तथा यथास्थिति बनाए रखने का फरमान वन विभाग के आला अफसरों को जारी किया था। वनवासी महिला ने अपने वकील के जरिए हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए वन विभाग के आला अधिकारियों को लीगल नोटिस जारी कर जानकारी दी कि पट्टे वाली जमीन पर कृषि कार्य करने में किसी तरह का हस्तक्षेप हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना होगी। इसके बाद चतुर्भुज प्रधान एवं उसके संबंधियों नो कृषि कार्य में लगातार अवरोध उत्पन्न किया और फसल काटकर ले गए। संबंधियों की हरकतों से परेशान याचिकाकर्ता शशि बाई ने अपने वकील शिवकुमार डडसेना के जरिए हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई है। मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने चतुर्भुज प्रधान को नोटिस जारी कर व्यक्तिगत रूप से तलब किया है।

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