Apr 20, 2010

वकीलों ने कहा अब न सहेंगे..

अदालत में वकीलों के आत्मसम्मान की रक्षा के लिए छत्तीसगढ स्टेट बार कौंसिल ने महत्वपूर्ण कदम उठाया है। कौंसिल की विशेषाधिकार समिति ने शनिवार को प्रस्ताव पारित कर वकीलों को अदालत द्वारा बोलने से रोकने, पूरी बात सुने बिना आदेश पारित करने या भरी अदालत में र्दुव्‍यवहार को विशेषाधिकार का हनन माना है। इस संबंध में प्रस्ताव पारित कर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सहित सभी अधीनस्थ अदालतों को इसकी कॉपी भेजी है। स्टेट बार कौंसिल प्रिविलेज कमेटी (विशेषाधिकार समिति) की 17 अप्रैल को कौंसिल के दफ्तर में हुई बैठक कई मायनों में क्रांतिकारी रही। समिति के अध्यक्ष अब्दुल वहाब खान सहित उपस्थित सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से वकीलों की स्थिति बदलने के लिए प्रस्ताव पारित किए। इसमें वकीलों के विशेषाधिकारों पर चर्चा की गई। सदस्यों ने कहा कि राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में वकालत कर रहे वकीलों से यह शिकायत मिली है कि पक्षकारों द्वारा अधिकृत करने के बाद भी अदालतें और संबंधित पीठासीन अधिकारी वकीलों को बिना सुने या पूरी बात सुने बिना आदेश पारित कर देते हैं।

वकीलों द्वारा मामलों में समय न मांगने के बाद भी ‘वकील द्वारा समय चाहा गया’ लिखकर मामले को आगे बढ़ा दिया जाता है। जबकि प्रकरण के आगे बढ़ने का कारण कोर्ट के पास समय न रहना या अन्य वजह होती है। संबंधित अदालतों के पीठासीन अधिकारियों द्वारा वकीलों की पेशी बढ़ाने का कारण बनाने से उनकी छवि खराब होती है। बैठक में चर्चा के दौरान सदस्यों ने कहा यह शिकायत भी मिली है कि अदालतों के पीठासीन अधिकारी पैरवी कर रहे वकीलों से भरी अदालत में इस लहजे में बात करते हैं। दुर्व्यवहार  की श्रेणी में आता है। यहां तक कि वकीलों की फाइल तक फेंक दी जाती है। यह स्थिति राजस्व न्यायालय, सिविल कोर्ट, दंड प्रक्रिया संहिता सहित सभी मामलों से संबंधित अदालतों की है। वकील सहनशीलता और शालीनता का परिचय देते हुए सब कुछ चुपचाप सहन कर लेते हैं। व्यवसाय पर असर न पड़े इसलिए पीठासीन अधिकारी की शिकायत भी नहीं कर पाते। भारत के न्यायालय खुली अदालतें हैं, जहां किसी भी सामान्य व्यक्ति को कोर्ट की कार्रवाई देखने से नहीं रोका जा सकता।

भरी अदालत में न्यायाधीशों या पीठासीन अधिकारियों का व्यवहार यदि वकील के खिलाफ होता है तो उसे पक्षकारों और अन्य लोगों के सामने बेइज्जत होना पड़ता है। इससे वकीलों को मानसिक परेशानी होती है और उनके व्यवहार व कार्यक्षमता पर भी असर पड़ता है। अगर अदालत द्वारा कहे जा रहे शब्दों या लहजे में वकील बोलें तो यह न्यायालय की अवमानना की श्रेणी में आ जाता है। वकील कोर्ट अफसर होता है, पीठासीन अधिकारी या जज को उससे गरिमापूर्ण व्यवहार करना चाहिए। यह प्रस्ताव पारित करने के बाद समिति ने इसकी कापी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस, रजिस्ट्रार जनरल, सभी जिला व सत्र न्यायाधीश, कलेक्टर, राजस्व मंडल अध्यक्ष, कमिश्नर, सभी अनुविभागीय अधिकारी, राज्य उपभोक्ता परिषद, न्याधिकरणों व अन्य अदालतों को भेजने का निर्णय लिया। बैठक में समिति के अध्यक्ष श्री खान, सदस्य लीलाधर सिंह चंद्रा सहित बार कौंसिल सदस्य प्रवीण गुप्ता, सुशील चतुर्वेदी, अरुण कोचर, बादशाह प्रसाद सिंह आदि उपस्थित थे।

समिति ने बैठक में अपने क्षेत्राधिकार पर भी चर्चा की। एडवोकेट एक्ट 1961 की धारा 6 में स्टेट बार कौंसिल के कार्यो का उल्लेख है। एक्ट की धारा 6 (1) (घ) के अनुसार स्टेट बार कौंसिल अपने रजिस्टर्ड वकीलों के अधिकारों, विशेषाधिकारों और हितों की रक्षा करेगी। कौंसिल की विभिन्न समितियों का गठन भी इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया गया है। इस अनुसार समिति का प्रमुख कार्य और क्षेत्राधिकार वकीलों के हितों और विशेषाधिकारों की रक्षा करना है।

"पिछले 10 सालों में इस दिशा में पहल नहीं हुई, जबकि राज्य के वकीलों से इस तरह की शिकायतें लगातार मिल रही हैं। हाईकोर्ट में भी यह समस्या है। इसके मद्देनजर इस पर ध्यान देना और समस्या के समाधान के लिए पहल करना जरूरी था।"  
अब्दुल वहाब खान, अध्यक्ष विशेषाधिकार समिति

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