उषाकिरण जायसवाल, कुसुम सराफ व १३ अन्य आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर महिला बाल विकास विभाग द्वारा सुपरवाइजर के पद पर की जा रही भर्ती प्रक्रिया को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं ने छग महिला बाल विकास नॉन गजेटेड नियम २००८ का हवाला देते हुए कहा था कि इसके अंतर्गत सुपरवाइजर के पद पर पदोन्नति के लिए २५ फीसदी पद आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए आरक्षित रखा गया था। इसके लिए लिखित परीक्षा आयोजित की जानी थी। परीक्षा में पास होने वाली कार्यकर्ताओं को सुपरवाइजर बनाया जाना था। इसके लिए आयु सीमा ४५ वर्ष तय की गई थी। ७५ प्रतिशत पद को सीधी भर्ती के जरिए भरने का प्रावधान रखा गया था। सन् १९९९ में पंचायत विभाग द्वारा बनाए गए नियमों का हवाला देते हुए याचिकाकर्ताओं ने खुलासा किया था कि इसके अंतर्गत सुपरवाइजर पर पद पदोन्नति के लिए ५० फीसदी पद आरक्षित किया गया था। छग बाल विकास विभाग द्वारा सन् २००८ में बनाए गए नियमों में इसे रद्दोबदल करते हुए विभागीय पदोन्नति के लिए ५० की जगह २५ प्रतिशत पद तय कर दिया गया है। याचिकाकर्ताओं ने संवैधानिक पहलुओं का हवाला देते हुए कहा कि पंचायत विभाग द्वारा बनाए गए नियम विधायिका द्वारा पारित किया गया है। महिला बाल विकास विभाग द्वारा आर्टिकल ३०९ के तहत नियम बनाए गए हैं। दोनों नियमों में अंतर्विरोध होने की स्थिति में विधायिका के नियम प्रभावशील माने जाएंगे। इस प्रकरण में महिला बाल विकास विभाग पर नियमों की अनदेखी किए जाने का आरोप याचिकाकर्ताओं ने लगाया था। इस मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को पंचायत विभाग के बजाय महिला बाल विकास विभाग की कर्मचारी माना है। इसके साथ ही इनकी याचिका को खारिज कर दिया है।
महिला बाल विकास विभाग द्वारा सुपरवाइजर की भर्ती के लिए ८८४ पद स्वीकृत किए गए थे। इसके लिए लिखित परीक्षा आयोजित की गई थी। लिखित परीक्षा के साथ ही साक्षात्कार के भी परिणाम विभाग द्वारा घोषित कर दिए गए हैं। हाईकोर्ट के निर्णय के बाद अब इस पद पर नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है।