मंडल संयोजकों की याचिका पर हुई सुनवाई
विकासखंड शिक्षाधिकारी के पद पर पदोन्नति से वंचित मंडल संयोजकों की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की पदोन्नति के लिए डीपीसी की बैठक बुलाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि पदोन्नति के लिए विचारण हर कर्मचारी का अधिकार है।
सुजान सिंह कंवर व अन्य मंडल संयोजकों ने वकील जितेंद्र पाली व मतीन सिद्दीकी के जरिए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर गुहार लगाई थी कि वे सन् १९९० से आदिम जाति कल्याण विभाग में कार्यरत् हैं। सेवा शर्तें आदिम जाति कल्याण व पिछड़ा वर्ग सेवा भर्ती नियम १९६९ के प्रावधानों के अनुसार हैं। वर्ष १९९४ में मप्र सरकार ने नियमों में संशोधन करते हुए यह प्रावधान जोड़ दिया कि प्राचार्यों की पदोन्नति विकासखंड शिक्षाधिकारी के पद पर ६० अनुपात ४० में होगी। संशोधन के बाद मंडल संयोजकों की बीईओ के पद पर पदोन्नति के रास्ते बंद हो गए। प्रदेश सरकार ने उक्त नियमों में वर्ष २००६ में पुनः संशोधन करते हुए बीईओ के पद को पहले संयोजकों से ही भरने का निर्णय लिया। इसी के तहत १३ फरवरी ०८ को विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक हुई। इसमें क्षेत्रीय संयोजकों की पदोन्नति मुख्य कार्यपालन अधिकारी के पद पर करने का निर्णय लिया गया।
याचिकाकर्ताओं ने शिकायत करते हुए कहा कि बैठक में उनके विषय में विचार ही नहीं किया गया। याचिका के अनुसार १८ वर्षों से मंडल संयोजक के पद पर कार्य करने के बाद उन्हें पदोन्नति से वंचित किया जा रहा है। सोमवार को इस मामले की सुनवाई जस्टिस सतीश अग्निहोत्री की सिंगल बेंच में हुई। जस्टिस श्री अग्निहोत्री ने राज्य शासन को निर्देश दिए कि याचिकाकर्ताओं की पदोन्नति के लिए तत्काल डीपीसी की बैठक बुलाएं। उक्त प्रक्रिया चार महीने के भीतर पूर्ण करने का आदेश दिया गया है।