छत्तीसगढ़ प्रदेश के किसी भी पेट्रोल पंप को संचालित करने के लिए पंप संचालक को राज्य सरकार से अनुमति लेनी होती है। इसके लिए राज्य सरकार लाइसेंस जारी करती है और हर साल उसका नवीनीकरण भी कराना होता है। राज्य सरकार ने 20 फरवरी 2006 को अनुस्थापन तथा नियंत्रण आदेश 1980 में संशोधन करते हुए लाइसेंस फीस में 100 गुना की वृद्धि कर दी। पहले यह फीस 1000 रुपए थी, जिसे बढ़ाकर एक लाख रुपए कर दिया गया। इसके अलावा नवीनीकरण, डुप्लीकेट व सुरक्षा निधि की राशि भी इसी हिसाब से बढ़ा दी गई।
संशोधन के खिलाफ छग पेट्रोलियम डीलर्स एसोसिएशन ने बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में कहा गया कि सरकार लाइसेंस फीस के एवज में किसी तरह की सुविधाएं मुहैया नहीं कराती है। सरकार के पास नियंत्रण के लिए अलग से कोई विभाग भी नहीं है। इसके अलावा संशोधन से आम जनता को किसी तरह का फायदा पहुंचे, ऐसा भी नहीं है। याचिका में इस बात का भी जिक्र किया गया कि जब मप्र शासन ने संशोधन कर फीस में वृद्धि की तो सिर्फ 10 फीसदी फीस बढ़ाई गई। याचिका पर उसी समय हाईकोर्ट ने स्थगन दे दिया था। मामले में अंतिम सुनवाई करते हुए सोमवार को हाईकोर्ट ने उक्त संशोधन आदेश को निरस्त कर दिया। इस मामले में एसोसिएशन की ओर से अधिवक्ता जितेंद्र पाली, मतीन सिद्दीकी और वरूण शर्मा ने पैरवी की। इस तरह छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा दो साल पहले लाइसेंस फीस में की गई 100 गुना वृद्धि का संशोधन आदेश हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया है। छग पेट्रोलियम डीलर्स एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सोमवार को संशोधन आदेश को निरस्त किया है।