पर्यावरण संरक्षण में न्यायपालिका की भूमिका पर व्याख्यान
छ.ग.बार एसोसिएशन के ई-लाइब्रेरी तथा वेबसाइट का उद्धाटन
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति के जी बालकृष्णन ने कहा है कि पर्यावरण सरंक्षण के प्रति न्यायालय हमेशा गंभीर रहा है। कोर्ट कभी भी विकास का विरोधी नहीं रहा लेकिन यह पर्यावरण की कीमत पर नहीं होना चाहिए। वनों तथा वन्य प्राणियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए इसका ध्यान रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर दिशा-निर्देश दिए हैं। वे पर्यावरण संरक्षण में न्यायपालिका की भूमिका पर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के परिसर में आज अधिवक्ता स्वर्गीय डी.पी.श्रीवास्तव की स्मृति में आयोजित व्याख्यान माला में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मैं यहां आकर अपने-आप को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। यहां 44 प्रतिशत वन है और इसकी सुरक्षा भी आवश्यक भी है।
उन्होंने कहा कि न्यायालय कभी भी विकास विरोधी नहीं रहा है। मगर सजग जरूर रहा है विकास होना चाहिए। मगर पर्यावरण की सुरक्षा पर भी ध्यान दिया जाए। वन और वन्य प्राणियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। जो लोग व्यापारिक गतिविधियां चलाते हैं उनका उद्देश्य सिर्फ लाभ कमाने का होता है, उन्हें छूट दे दिया जाए तो वे पर्यावरण को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। श्री बालकृष्णन ने कहा कि कोयला और बाक्साइट का भंडार घने जंगलों में ही पाया जाता है। सुप्रीमकोर्ट ने यह निर्देश दे रखा हैं जंगलों की कटाई अगर कोयला और बाक्साइट उत्खनन के लिए किया जाता है तो उसकी भरपाई पेड़ लगाकर किया जाए। इसके लिए नेट परसेंट बैल्यू के तहत नुकसान के अनुपात में राज्य सरकार से धन वसूला जाता है और उसे वनों के विकास के लिए उपलब्ध कराया जाता है। उन्होंने बंबई शहर का उदाहरण देते हुए बताया कि बंबई सिटी का बहुत बड़ा हिस्सा वनों के क्षेत्र में आता है। इसलिए वहां की सरकार से नेट परसेंट बैल्यू के तहत राशि 3 गुना ज्यादा वसूली की जाती है। वनों की सुरक्षा के साथ ही ट्रायवल क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों का विस्थापन किया जाता है तो उनके प्रति भी हमारी जिम्मेदारी है कि उनके लिए रोजगार और शिक्षा पर भी पर्याप्त राशि खर्च हो।
न्यायाधिपति ने मध्यप्रदेश का उदाहरण देते हुए कहा कि मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय राज्यमार्ग वाइल्ड लाईफ से होकर गुजरती है। इस क्षेत्र में रेलवे लाइन भी है जिससे वन्यप्राणियों को हमेशा खतरा बना रहता है। बेहतर होता रेलवे लाईन ऊपर से होकर गुजरती। उन्होंने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट ने कई जनहित याचिकाएं स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा दायर की जाती है, जिनमें अनेक संस्थाएं अच्छे काम कर रही हैं और पर्यावरण संरक्षण को लेकर भरपूर मुद्दे उठा रहे हैं। ऐसे मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिशानिर्देश भी दिया जा रहा है। उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा करते हुए कहा कि आप छत्तीसगढ़ के लोग सौभाग्यशाली हैं यहां का 44 प्रतिशत क्षेत्र वनों से आच्छादित और ग्लोबल वार्मिंग का यहां कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। उन्होंने कहा कि सुप्रीमकोर्ट द्वारा कभी-कभी ऐसे भी फैसले दिए जाते है जिसे तत्कालिक तौर पर लोग पसंद नहीं करते, लेकिन बाद में उसका सकारात्मक पहलू सामने आता है। इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि सुप्रीमकोर्ट ने वर्ष 1998 में एक निर्णय दिया था जिसके तहत दिल्ली में यात्री बसें सीएनजी के तहत चलाने का आदेश दिया गया था। उस निर्णय का फायदा आज दिख रहा है और पर्यावरण प्रदूषण भी कम हुआ है। उन्होंने कहा कि सेटेलाइट में आज जो तस्वीरें आ रही हैं उससे यह पता चल रहा है कि पूरे देश में जंगल के क्षेत्र में विस्तार हुआ है। यह सुप्रीमकोर्ट के सजग रहने का ही परिणाम है।
(देशबंधु से साभार)
(देशबंधु से साभार)