जाति प्रमाण पत्र सत्यापित करने के लिए वर्ष 1950 के दस्तावेज प्रस्तुत करने की बाध्यता के खिलाफ दायर याचिका बिलासपुर हाईकोर्ट ने पिछ्ले बुधवार को खारिज कर दी। याचिकाकर्ता का तर्क था कि राज्य शासन का यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के खिलाफ है। बुद्धिस्ट सोसायटी आफ इंडिया व अन्य ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि राज्य शासन ने 23 जुलाई 2003 और 28 नवंबर 2006 को जो सरकुलर जारी किया है, उसे शून्य घोषित किया जाए। इस सरकुलर में शासन ने कहा था कि जाति के लिए आवेदन के साथ वर्ष 1950 के जमीन व परिवार संबंधी दस्तावेज प्रस्तुत किए जाएं ताकि यह पता चल सके कि व्यक्ति के पूर्वज वास्तव में उल्लेखित जाति के थे और इस आधार पर उसे स्थाई जाति प्रमाणपत्र जारी किया जा सके। हाईपावर स्कूटनी कमेटी इसी सरकुलर के आधार पर किसी भी एडमिशन, नियुक्ति या प्रमोशन के पहले 1950 के जाति संबंधी दस्तावेजों की मांग करती है। यह बाध्यता भी खत्म की जाए। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि शासन का यह सरकुलर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने माधुरी पाटिल व पावेती गरी के मामले में जाति निर्धारित करने के लिए निर्देश तय किए हैं।
इसके आधार पर जो लोग छत्तीसगढ़ बनने की तारीख से प्रदेश में निवास कर रहे हैं, उस दौरान उनकी जो जाति निर्धारित थी, उसी आधार पर जाति सर्टिफिकेट जारी किए जाएं। चीफ जस्टिस राजीव गुप्ता, जस्टिस सुनील सिन्हा की डिवीजन बेंच ने सुनवाई के बाद इसे जनहित का मुद्दा न मानते हुए याचिका खारिज कर दी।