छत्तीसगढ के बिलासपुर सेंट्रल जेल सहित प्रदेश की पांच सेंट्रल जेलों में जल्द ही वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा शुरू हो रही है। राज्य शासन की ओर से हाईकोर्ट में बताया गया कि यह सुविधा शुरू होने के बाद कैदियों को गवाही के लिए अदालत ले जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। चीफ जस्टिस राजीव गुप्ता, जस्टिस एसके सिन्हा की डिवीजन बेंच ने शासन के इस जवाब के बाद कैदियों की पत्र याचिका निराकृत कर दी। अंबिकापुर सेंट्रल जेल में बंद सभी कैदियों ने वर्ष 2007 में एक पत्र हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को भेजा था। इसमें कैदी तोताराम, सोनसाय, महेश मिश्रा, बृजेंद्र कुमार, फिलिप राजेंद्र सिंह सहित सभी कैदियों के हस्ताक्षर थे।
पत्र में कहा गया था कि उन्हें मामले की गवाही के लिए पुलिस वाले हथकड़ी लगाकर जेल से अदालत ले जाते हैं, जबकि एक मामले में अदालती आदेश हैं कि कैदियों को हथकड़ी लगाकर अदालत या अन्य जगह न ले जाया जाए। उन्होंने इसे सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन बताया। हाईकोर्ट ने इस पत्र को जनहित याचिका के तौर पर स्वीकार कर सुनवाई शुरू की और राज्य शासन सहित अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। कोर्ट के नोटिस पर शासन की ओर से कोर्ट के समक्ष बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद अधिकतर कैदियों को हथकड़ी नहीं लगाई जाती।
सिर्फ ऐसे कैदियों को ही हथकड़ी लगाई जाती है, जिनके भागने की आशंका हो या जो खूंखार किस्म के हैं। इसके लिए भी अदालत से अनुमति ली जाती है। शासन की ओर से यह भी बताया गया कि अपराधियों की गवाही अदालत से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए कराने के निर्देश हैं। रायपुर व जगदलपुर सेंट्रल जेल में यह सुविधा उपलब्ध करा दी गई है। अब बिलासपुर, अंबिकापुर, जशपुर, कांकेर और दंतेवाड़ा में भी यह सुविधा जल्द उपलब्ध कराई जा रही है। इसके बाद जेल से ही कैदियों के बयान और गवाही ली जा सकेगी। शासन के इस जवाब के बाद कोर्ट ने याचिका को निराकृत कर दिया। शासन की ओर से यह भी बताया गया कि बाकी पांच जेलों के लिए कंप्यूटर का इंस्टालेशन किया जा रहा है। एक-डेढ़ महीने में यह काम पूरा होने के बाद प्रदेश की सभी जेलों में वाडियो कांफ्रेंसिंग शुरू हो जाएगी। इससे गवाही, बयान के लिए कैदियों को अदालत ले जाने की बाध्यता नहीं रह जाएगी।