Nov 3, 2009

छत्तीसगढ़ स्टेट बार कौंसिल द्वारा व्यावसायिक कदाचरण के आरोप पर तीन वकील निलंबित

छत्तीसगढ़ स्टेट बार कौंसिल ने व्यावसायिक कदाचरण के आरोप सिद्ध होने पर राज्य के तीन वकीलों को निलंबित कर दिया है। स्टेट बार कौंसिल अनुशासन समिति की रविवार को हुई बैठक में वकीलों के व्यावसायिक कदाचरण संबंधी मामले प्रस्तुत किए गए। इसमें समिति के अध्यक्ष पद्म कुमार अग्रवाल, सदस्य कोषराम साहू और सह सदस्य रजनीश निषाद की पीठ ने मामलों की सुनवाई की।

सुनवाई के बाद तीन वकील बिलासपुर के विजयशंकर तिवारी, दुर्ग के वकील नवजीत कुमार रमन और राजनांदगांव के वकील शफीर अहमद को व्यावसायिक कदाचरण का दोषी पाते हुए निलंबित कर दिया गया। इनमें से वकील श्री तिवारी पर अधिवक्ता कल्याण निधि के टिकट के मुद्दे पर वकीलों को गुमराह और भयभीत करने वाले बयान प्रकाशित कराने और बार कौंसिल की छवि धूमिल करने का प्रयास करने का आरोप लगाया गया। कौंसिल ने इसे प्रथम दृष्टया व्यावसायिक कदाचरण मानते हुए स्वप्रेरणा से संज्ञान लेकर अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 35 के तहत मामले को अनुशासन समिति के समक्ष प्रस्तुत किया। समिति ने मामले की छानबीन के बाद श्री तिवारी को व्यावसायिक कदाचरण का दोषी पाते हुए एक नवंबर से पांच साल की अवधि के लिए निलंबित कर दिया।

दूसरे मामले में राजनांदगांव जिले के डोंगरगांव निवासी वकील शफीर अहमद के खिलाफ एक अन्य वकील सुरेंद्र कुमार दुबे ने शिकायत की थी कि श्री अहमद ने डोंगरगांव तहसील में नोटरी की नियुक्ति के लिए फर्जी अनुभव प्रमाणपत्र और अन्य फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत किए। वकील होते हुए भी उन्होंने अपना लाइसेंस निरस्त कराए बिना वर्ष 2001-02 में नगर पंचायत डोंगरगांव के माध्यम से तालाबों का ठेका ले लिया।इस मामले की सुनवाई के बाद कदाचरण समिति ने आरोपों को सही पाते हुए वकील श्री अहमद का सात साल के लिए वकील के तौर पर प्रेक्टिस करने पर प्रतिबंध लगा दिया। तीसरा मामला दुर्ग जिले के वकील नवजीत कुमार रमन का है। दुर्ग निवासी भुवनेश्वर लाल वर्मा व अन्य ने वकील के खिलाफ शिकायत की थी कि वे लोक निर्माण विभाग के बेमेतरा संभाग में श्रमिक के तौर पर कार्यरत हैं।

आवेदक और उसके 35 साथियों ने परिवर्तनशील महंगाई भत्ते के दावे के लिए श्रम न्यायालय दुर्ग में वर्ष 2001 में याचिका प्रस्तुत की। इसमें उन्होंने वकील सत्येंद्रनाथ साधू को वकील नियुक्त किया।वकील नवजीत श्री साधु के सहायक बतौर काम करते थे। उनकी मौत के बाद नवजीत ने खुद को श्री साधु का पुत्र बताया। जिस आधार पर आवेदकों ने उन्हें नए सिरे से अपना वकील नियुक्त किया। इसके बाद से नवजीत कुमार मामले का जल्दी फैसला कराने सहित विभिन्न बहाने से काफी रकम ऐंठ ली। इसकी शिकायत बार कौंसिल से की गई। कौंसिल ने सुनवाई के बाद आरोप सही पाने के बाद वकील को तीन साल के लिए प्रेक्टिस करने पर रोक लगाने का आदेश जारी किया।

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