छत्तीसगढ के माननीय न्यायालय, व्यवहार न्यायाधीश वर्ग 2 दल्लीराजहरा, श्री अनीष दुबे के द्वारा व्यवहार वाद क्रमांक 15/अ/09 कैलाश नाथ यादव विरूद्ध प्रबंन्ध निदेशक भिलाई ईस्पात संयंत्र एवं अन्य के प्रकरण में दिनांक 17.09.2009 को एक अतयन्त महत्वपूर्णं एवं ऐतिहासिक फैसला दिया है, जो कि छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश के न्यायायिक इतिहास में पहला प्रकरण होगा, इसमें मात्र 43 दिनों में इस व्यवहार वाद का गुण दोष के आधार पर अंतिम निराकरण किया गया है। यहां यह भी बताना आवश्यक है, कि उक्त प्रकरण में भिलाई इस्पात संयंत्र के द्वारा अनेक आधारों पर प्रतिवाद किया गया था, इस प्रकरण में एक और विशेषता रही है कि भिलाई ईस्पात संयंत्र के दो पूर्व मुख्य अधिकारी एक दूसरे के आमने सामने थे, जहां एक ओर वादी कर्मचारी की ओर से श्री डी.सी. हैनरी एवं श्री राजकुमार रस्तोगी अधिवक्ता पैरवी कर रहे थे वहीं प्रबंधक भिलाई ईस्पात संयंत्र की ओर से श्री बी.पी.मिश्रा अधिवक्ता के द्वारा पैरवी किया गया था।
इस प्रकरण के मुख्य तथ्य इस प्रकार से है कि वादी कैलाशनाथ यादव भिलाई ईस्पात संयंत्र के दल्ली खदान में सिनियर आपरेटर के पद पर दिनांक 04.08.1987 को नियुक्त हुआ था, इनकी सेवा पुस्तिका में उसकी जन्म तिथि 06.02.1952 अंकित की गई थी, जिसे प्रबंधन के द्वारा स्वीकार कर लिया था, किन्तु कब और किसने उसकी सेवा पुस्तिका में दर्ज जन्म तिथि को काटकर 29.09.1949 दर्ज कर दिया था यह आज तक ज्ञात नहीं हो सका है, उसकी जन्म तिथि में कांट छाट से पूर्व न तो वादी कर्मचारी को कोई सूचना दी गई और न हीं किसी प्रकार की जांच की गई यहां तक के उनके द्वारा प्रस्तुत शाला प्रमाणपत्र को भी प्रबंधन के द्वारा मान्य नहीं किया गया, और इस परिवर्तित तिथि दिनांक 29.09.1949 के आधार पर दिनांक 30.09.2009 को सेवा निवृत्ती का आदेश प्रबंधन के द्वारा जारी कर दिया गया था।
इससे पीड़ित होकर वादी कर्मचारी ने अपने अधिवक्ता राजकुमार रस्तोगी के माध्यम से दिनांक 04.08.2009 को माननीय व्यवहार न्यायाधीश महोदय वर्ग 2 पीठासीन अधिकारी श्री अनीष दुबे के न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर यह घोषणा की मांग की गई की वास्तविक जन्म तिथि 06.02.1952 घोषित किया जाय तथा प्रतिवादी भिलाई ईस्पात संयंत्र के सेवा निवृत्ती आदेश दिनांक 15.05.2009 को शूण्य घोषित करते हुए प्रतिवादी को वादी को सेवा मुक्त करने से स्थाई निषेधाज्ञा के माध्यम से प्रतिबंधित किया जाय, प्रबंधन द्वारा घोर आपत्ति की गई की वादी एक औद्यौगिक श्रमिक है इसलिये जन्म तिथि सम्बंधित विवाद औधोगिक विवाद है ओर उसे श्रम कानूनों के अन्तर्गत अनुतोष लेना चाहिये और सिविल कोर्ट को इस प्रकरण के निराकरण का अधिकार नहीं है, इस आपत्ति को माननीय न्यायालय ने अनेकों न्याय दृष्टांतों के आधार पर पूर्णतः अमान्य कर दिया और यह ठहराया कि सिविल न्यायालय को प्रकरण के निराकरण करने का अधिकार है। माननीय न्यायालय ने प्रकरण की विस्तृत विवेचना करते हुए, तथा कई न्याय दृष्टांतों के आधार पर ठहराया कि वादी की वास्तविक जन्म तिथि 06.02.1952 है तथा उसकी सेवा पुस्तिका में अनाधिकृत कांट छांट की गई है वह अनाधिकृत होने के कारण शूण्य है। माननीय न्यायालय ने प्रबंधक को यह भी निर्देशित किया है कि वह वादी को गलत जन्म तिथि के आधार पर दिनांक 30.09.2009 को सेवा निवृत्त न करे।
माननीय न्यायालय द्वारा पारित यह आदेश निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक फैसला है, जिसका लाभ अन्य कर्मचारियों को भी जिनके साथ जन्म तिथि सम्बंधित अन्याय हुआ है वे भी न्याय प्राप्त कर सकें। यहां यह भी बताना आवश्यक है कि वादी का बड़ा भाई अभी भी भिलाई ईस्पात संयंत्र की स्थाई सेवा में कार्यरत है, और उक्त बड़े भाई की सेवा निवृत्ती से पूर्व हीं छोटे भाई को उसकी सेवा से सेवा निवृत्त किया जाने का प्रयास किया जा रहा था।
प्रबन्ध निदेशक भिलाई ईस्पात संयंत्र के द्वारा माननीय व्यवहार न्यायाधीश महोदय वर्ग 2 दल्ली राजहरा के द्वारा पारित निर्णय डिक्री से संतुष्ट न होने पर एक अपील माननीय अपर जिला न्यायाधीश महोदय बालोद जिला दुर्ग के समक्ष दिनांक 24.09.2009 को प्रस्तुत किया गया और साथ हीं एक आवेदनपत्र माननीय निम्न न्यायालय के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगाये जाने बाबत् स्थगन आदेश प्राप्त करने हेतु प्रस्तुत किया, माननीय अपर जिला न्यायाधीश महोदय के द्वारा भी बी.एस. पी. प्रबंधन की ओर से प्रस्तुत किये गये तर्क को स्वीकार नहीं किये जाते हुए उनकी ओर से प्रस्तुत स्थगन आवेदन को दिनंाक 30.09.2009 को सव्यय निरस्त कर दिया और माननीय निम्न न्यायालय द्वारा पारित निर्णय डिक्री के क्रियान्वयन पर कोई रोक नही लगाया गया। उक्त स्थगन आवेदन के निरस्त होने पर बी.एस.पी. प्रबंधन के द्वारा माननीय निम्न न्यायायल के आदेश को क्रियान्वित करते हुए वादी कैलाश नाथ की सेवा को सतत् जारी रखने का लिखित आदेश जारी कर दिया है और वादी अपनी स्थाई सेवा में पूर्व की तरह से कार्य कर रहा है, वादी की यह जीत एक ऐतिहासिक न्याय की जीत है, और यह प्रदर्शित करती है कि आज भी शीघ्र न्याय प्राप्त किया जा सकता है।
(यह जानकारी हमें अधिवक्ता राजकुमार रस्तोगी नें एक विज्ञप्ति के द्वारा प्रदान की है)