बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक बंदीप्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई करते हुए मानव अधिकार आयोग की रिपोर्ट व सुझाव पर की गई कार्रवाई की जानकारी मांगी है। आयोग ने शासन को नक्सली क्षेत्रों की गुम इंसानों की जानकारी सूचीबद्घ करने सहित अन्य सुझाव दिए हैं। प्रकरण की अगली सुनवाई २० अक्टूबर को होगी। बीहड़ नक्सली क्षेत्र एर्राबोर थाना अंतर्गत ग्राम गरभागुड़ा निवासी बेकोसिन्ना ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि अप्रैल-मई २००८ में १०० से अधिक सलवा जुड़ूम के कार्यकर्ता, एसपीओ सहित पुलिस के जवान उनके गांव को घेर लिया। इस दौरान वे याचिकाकर्ता के पिता व बहन सहित अन्य महिलाओं को पकड़कर अपने साथ ले गए। उनके डर से गांव वाले गांव छोड़कर भाग गए।
याचिका के अनुसार नक्सली क्षेत्र के ग्रामीण नक्सलियों से ज्यादा पुलिस से भयभीत रहते हैं। घटना के कुछ दिन बाद याचिकाकर्ता के पिता की लाश एर्राबोर कैम्प में लाई गई। इसकी सूचना याचिकाकर्ता को भी दी गई। इसी तरह घटना के दौरान पकड़ी गईं महिलाओं को भी छोड़ दिया गया। बेकोसिन्ना अपनी बहन के बारे में वहां पूछताछ करता रहा, लेकिन किसी ने कुछ नहीं बताया। पुलिस के डर से वह दोबारा थाने में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। इसके बाद वह जेल, अस्पताल सहित अन्य जगहों में अपनी बहन की खोज की। उसने २९ दिसंबर २००८ को एसपी को पत्र लिखकर शिकायत कर जांच की मांग की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। उसे थक हार कर हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में गुरूवार को इस मामले की सुनवाई हुई। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को विलंब से आने के कारण परिस्थितियों में बदलाव होने की बात कही।
सुनवाई के दौरान सलवा जुडूम से संबंधित सुप्रीम कोर्ट में नंदिनी सुंदरम् व हाईकोर्ट में लंबित एक प्रकरण में मानव अधिकार आयोग के सुझाव पर चर्चा की गई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मानवाधिकार आयोग ने जांच रिपोर्ट के अलावा सुझाव दिए हैं। इस पर राज्य शासन को अमल करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके तहत गृह सचिव ने पुलिस महानिदेशक को पत्र जारी किया है। इसमें नक्सल प्रभावित क्षेत्र के गुमइंसानों की सभी जानकारियांरखने के निर्देश का हवाला दिया गया है।