एक याचिका पर नौ बार अवसर मिलने के बाद भी जवाब न देने पर छत्तीसगढ हाईकोर्ट ने राज्य शासन पर 9 हजार रुपए जुर्माना किया है। जस्टिस अग्निहोत्री की सिंगल बेंच ने जुर्माने की रकम जवाब न देने के लिए दोषी अधिकारी से वसूल करने के निर्देश दिए हैं। लोक निर्माण विभाग बिलासपुर में सहायक ग्रेड-2 के पद से रिटायर सीएल कौशिक से विभाग ने वसूली के आदेश दिए थे। उनके खिलाफ चार लाख रुपए की रिकवरी का आदेश निकाला गया था। यह राशि उनकी पेंशन, ग्रेच्यूटी व रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले अन्य भुगतान से वसूल करने का आदेश दिया गया था। विभाग का कहना था कि सर्विस में रहने के दौरान श्री कौशिक के कार्यो से विभाग को नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई उनसे की जा रही है।
इस कार्रवाई के खिलाफ श्री कौशिक ने वर्ष 2005 में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इसे प्राकृतिक न्याय सिद्धांत के खिलाफ कहा था। उनका कहना था कि कार्रवाई के पहले न तो उन्हें कोई नोटिस दिया गया और न ही यह बताया कि उनके किन कार्यों से विभाग को नुकसान हुआ है। बिना बतलाये सीधे वसूली की कार्रवाई शुरू कर दी गई। कोर्ट ने सुनवाई के बाद राज्य शासन व लोक निर्माण विभाग को नोटिस जारी कर जवाब देने कहा। कई बार नोटिस देने के बाद भी शासन की ओर से जवाब नहीं दिया गया। सुनवाई के दौरान हर बार शासन की ओर से जवाब के लिए समय ले लिया जाता था। पिछले दिनों कोर्ट में मामला सुनवाई के लिए आया तो शासन की ओर से जवाब के लिए फिर समय मांगा गया।
कोर्ट ने जानना चाहा कि अब तक जवाब क्यों प्रस्तुत नहीं किया गया और कितनी बार जवाब के लिए समय लिया जा चुका है। कोर्ट को बताया गया कि शासन की ओर से जवाब के लिए 9 बार समय लिया गया है। इसे गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने शासन पर 9 हजार रुपए जुर्माना किया है।
इस कार्रवाई के खिलाफ श्री कौशिक ने वर्ष 2005 में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इसे प्राकृतिक न्याय सिद्धांत के खिलाफ कहा था। उनका कहना था कि कार्रवाई के पहले न तो उन्हें कोई नोटिस दिया गया और न ही यह बताया कि उनके किन कार्यों से विभाग को नुकसान हुआ है। बिना बतलाये सीधे वसूली की कार्रवाई शुरू कर दी गई। कोर्ट ने सुनवाई के बाद राज्य शासन व लोक निर्माण विभाग को नोटिस जारी कर जवाब देने कहा। कई बार नोटिस देने के बाद भी शासन की ओर से जवाब नहीं दिया गया। सुनवाई के दौरान हर बार शासन की ओर से जवाब के लिए समय ले लिया जाता था। पिछले दिनों कोर्ट में मामला सुनवाई के लिए आया तो शासन की ओर से जवाब के लिए फिर समय मांगा गया।
कोर्ट ने जानना चाहा कि अब तक जवाब क्यों प्रस्तुत नहीं किया गया और कितनी बार जवाब के लिए समय लिया जा चुका है। कोर्ट को बताया गया कि शासन की ओर से जवाब के लिए 9 बार समय लिया गया है। इसे गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने शासन पर 9 हजार रुपए जुर्माना किया है।