छत्तीसगढ़ शासन द्वारा वर्ष 2006 में बनाए गए फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी गजेटेड सर्विस भर्ती नियम को हाईकोर्ट ने अवैधानिक ठहराया है। जस्टिस धीरेंद्र मिश्रा व आरएन चंद्राकर की डिवीजन बेंच ने आदेश में कहा है कि राज्य शासन ने प्रक्रिया का पालन किए बिना ही नियम बना दिया, जो गलत है।
मध्यप्रदेश शासन ने वर्ष 1993 में फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी गजेटेड सर्विस भर्ती नियम बनाया। इस नियम के अनुसार ही क्राइम ब्रांच में फोरेंसिक व साइंटिफिक आफिसरों की भर्ती की जाती थी। मध्यप्रदेश शासन द्वारा तय नियमों के अनुसार सभी वरिष्ठ पात्र साइंटिफिक अफसर (एसएसओ), जिन्होंने पांच साल तक इस पद पर काम कर लिया उनको विभाग में संयुक्त संचालक (जेडी) के पद पर प्रमोशन के योग्य माना जाएगा। छत्तीसगढ़ बनने के बाद राज्य शासन ने वर्ष 2006 में इस विभाग में भर्ती के लिए अलग सेवा नियम बनाया।
इसके तहत राज्य शासन ने फोरेंसिक लेबोरेटरी में होने वाली भर्ती व प्रमोशन नियमों में परिवर्तन कर दिया। परिवर्तित नियम के अनुसार छत्तीसगढ़ शासन ने तय किया कि सभी साइंटिफिक आफिसर (एसओ) और सीनियर साइंटिफिक आफिसर (एसएसओ) को ज्वाइंट डायरेक्टर के पद पर प्रमोशन का पात्र माना जाएगा। इसके लिए क्षेत्रीय फोरेंसिक लैब में तीन साल काम का अनुभव होना जरूरी है। इस नियम के अनुसार राज्य शासन ने सीन आफ क्राइम विभाग के फोरेंसिक लैब में कार्यरत सीनियर साइंटिफिक आफिसर को इसके योग्य नहीं माना।
इसके खिलाफ दुर्ग में सीनियर साइंटिफिक आफिसर के पद पर कार्यरत बी.पी. मैथिल ने हमारे मित्र वकील अमियकांत तिवारी के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर छत्तीसगढ़ शासन द्वारा तय भर्ती नियम को चुनौती दी। कोर्ट ने सुनवाई के बाद राज्य शासन द्वारा बनाए गए छत्तीसगढ़ राज्य फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी गजेटेड सर्विस रिक्रूटमेंट रूल 2006 को अवैध ठहरा दिया।
केंद्र सरकार की अनुमति के बिना बनाया नियम
याचिकाकर्ता ने राज्य शासन द्वारा नियम बनाने की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। इसके अनुसार नया नियम समान काम करने वालों के बीच भेदभाव करता है। नए नियम से सीनियर अफसरों का प्रमोशन प्रभावित हो रहा था। सबसे महत्वपूर्ण यह था कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत कोई नया नियम बनाने या पुराने नियम में परिवर्तन के पहले छत्तीसगढ़ शासन को केंद्र सरकार से अनुमति लेनी थी, जो इस मामले में नहीं ली गई।