Oct 8, 2008

आतंकवाद के मामलों में विशेष अदालत हो

विधि आयोग की सलाह को ध्यान में रखते हुए केंद्र की ओर से नियुक्त वीरप्पा मोइली पैनल ने आतंकवाद से जुड़े मामलों के त्वरित निबटारे के लिए विशेष अदालतों की स्थापना की सिफारिश की है।


द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की आतंकवाद से मुकाबला पर रिपोर्ट में कहा गया है कि नए समग्र आतंकवाद निरोधी कानून में सिर्फ आतंकवाद संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए विशेष फास्ट ट्रैक अदालतों के गठन का प्रावधान होना चाहिए। आयोग ने इस रिपोर्ट में इंगित किया है कि टाडा में अधिसूचित मामलों की सुनवाई के लिए एक या एक से अधिक विशेष अदालतों के गठन का प्रावधान किया गया था।

टाडा में यह भी प्रावधान किया गया था कि अधिनियम के तहत इस तरह की विशेष अदालत में किसी अपराध की सुनवाई को उसी आरोपी के खिलाफ अन्य अदालतों में चल रहे मामलों में वरीयता मिलेगी और उसे अन्य मामलों के मुकाबले तरजीह दी जाएगी। पोटा तक में विनिर्दिष्ट मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन का प्रावधान किया गया था। अब जब कि टाडा और पोटा को वापस ले लिया गया है 185 पन्नों की मोइली रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा गैरकानूनी गतिविधियां [उन्मूलन] संशोधन अधिनियम में इस तरह की विशेष अदालतों का प्रावधान खत्म कर दिया गया। रिपोर्ट में यह बात रेखांकित की गई है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि अनुचित विलंब से बचने के लिए सरकार को और विनिर्दिष्ट अदालतों का गठन करना चाहिए ताकि विचाराधीन कैदी जेलों में नहीं सड़ें और मामले तेजी से निबटाए जाएं।

आतंकवाद संबंधित अनेक मामलों में सुस्त कार्यवाही से चिंतित केंद्र ने राज्यों से उन मामलों को तेजी से निबटाने के लिए विशेष या अलग से अदालतें गठित करने को कहा है। समझौता एक्सप्रेस पर हमला और वाराणसी संकटमोचन मंदिर विस्फोट जैसे आतंकी हमले के कुछ प्रमुख मामलों के देश की विभिन्न अदालतों में लंबे अरसे लंबित रहने की पृष्ठभूमि में केंद्र ने राज्य सरकारों से कहा है कि वे संबंधित हाई कोर्ट से सलाह कर इस तरह की विशेष अदालतें गठित करें।

साभार - दैनिक जागरण

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