छह से चौदह साल तक के बच्चों को अनिवार्य और मुंफ्त शिक्षा दिलाने का रास्ता साफ हो गया। अब इसके लिए कानून बनाया जाएगा।
बीते लगभग दो साल से तरह-तरह की दिक्कतों में फंसे प्रस्तावित शिक्षा का अधिकार विधेयक को आखिरकार मंत्रियों के समूह ने मंगलवार को हरी झंडी दे दी।
सूत्रों के मुताबिक मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह के आवास पर मंत्रियों के समूह की हुई बैठक में सदस्यों ने शिक्षा का अधिकार विधेयक को मौजूदा स्वरूप में ही लाए जाने पर सहमति जताई है। बताते हैं कि अर्जुन सिंह की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में सदस्यों ने प्रस्तावित विधेयक में कुछ तकनीकी व कानूनी शब्दावली में मामूली फेरबदल की बात तो की, लेकिन उसके मूल स्वरूप में बदलाव को कोई राजी नहीं हुआ। लिहाजा पहले से ही कई बार संशोधित हो चुके इस विधेयक को हरी झंडी मिल गई।
प्रस्तावित विधेयक के मुताबिक छह से चौदह साल तक के बच्चों को सरकार न सिर्फ मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा दिलाएगी, बल्कि उसकी गुणवत्ता भी सुनिश्चित करेगी। एक शिक्षक पर मानक के तहत निश्चित छात्र संख्या, पढ़ाने के तौर-तरीके, स्कूलों में बुनियादी समुचित संसाधनों के साथ ही क्वालिटी के लिए मानीटरिंग कमेटी का प्रावधान किया जाएगा। अभिभावक-शिक्षक एसोसिएशन को भी पढ़ाई पर नजर रखने का अधिकार होगा और वे उसकी समीक्षा भी कर सकेंगे। खासतौर से गरीब तबके के बच्चों को बाकी बच्चों के बराबर लाने के लिए उनका खास खयाल रखा जाएगा। इतना ही नहीं, गरीब बच्चों के लिए निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत आरक्षण का भी प्रावधान किया जाएगा, जबकि बच्चों को दाखिला सुनिश्चित कराना क्षेत्रीय शिक्षा अधिकारी की जिम्मेदारी होगी।
गौरतलब है कि बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा के लिए कानून को अमल कराने में खर्चे को लेकर राज्यों ने हाथ खड़े कर दिए थे। बाद में दूसरी योजनाओं की तरह केंद्र व राज्यों के बीच खर्च के बंटवारे का रास्ता निकालने की बात आई तो वित्त मंत्रालय ने कुछ आपत्तियां उठा दीं। प्रधानमंत्री की दखल के बाद नए सिरे से कार्रवाई के तहत विधेयक का संशोधित मसौदा बना तो कानून मंत्रालय ने कानूनी पचड़े बढ़ने की आशंका जताते हुए कई सवाल उठा दिये। बाद में मामला कैबिनेट में गया और वहां सहमति न बनने पर प्रधानमंत्री ने इसे मुकाम तक पहुंचाने के लिए अर्जुन सिंह की अध्यक्षता में मंत्रियों का समूह गठित कर दिया। समूह ने मंगलवार को उसे हरी झंडी दे दी।
साभार - याहू जागरण
बीते लगभग दो साल से तरह-तरह की दिक्कतों में फंसे प्रस्तावित शिक्षा का अधिकार विधेयक को आखिरकार मंत्रियों के समूह ने मंगलवार को हरी झंडी दे दी।
सूत्रों के मुताबिक मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह के आवास पर मंत्रियों के समूह की हुई बैठक में सदस्यों ने शिक्षा का अधिकार विधेयक को मौजूदा स्वरूप में ही लाए जाने पर सहमति जताई है। बताते हैं कि अर्जुन सिंह की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में सदस्यों ने प्रस्तावित विधेयक में कुछ तकनीकी व कानूनी शब्दावली में मामूली फेरबदल की बात तो की, लेकिन उसके मूल स्वरूप में बदलाव को कोई राजी नहीं हुआ। लिहाजा पहले से ही कई बार संशोधित हो चुके इस विधेयक को हरी झंडी मिल गई।
प्रस्तावित विधेयक के मुताबिक छह से चौदह साल तक के बच्चों को सरकार न सिर्फ मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा दिलाएगी, बल्कि उसकी गुणवत्ता भी सुनिश्चित करेगी। एक शिक्षक पर मानक के तहत निश्चित छात्र संख्या, पढ़ाने के तौर-तरीके, स्कूलों में बुनियादी समुचित संसाधनों के साथ ही क्वालिटी के लिए मानीटरिंग कमेटी का प्रावधान किया जाएगा। अभिभावक-शिक्षक एसोसिएशन को भी पढ़ाई पर नजर रखने का अधिकार होगा और वे उसकी समीक्षा भी कर सकेंगे। खासतौर से गरीब तबके के बच्चों को बाकी बच्चों के बराबर लाने के लिए उनका खास खयाल रखा जाएगा। इतना ही नहीं, गरीब बच्चों के लिए निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत आरक्षण का भी प्रावधान किया जाएगा, जबकि बच्चों को दाखिला सुनिश्चित कराना क्षेत्रीय शिक्षा अधिकारी की जिम्मेदारी होगी।
गौरतलब है कि बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा के लिए कानून को अमल कराने में खर्चे को लेकर राज्यों ने हाथ खड़े कर दिए थे। बाद में दूसरी योजनाओं की तरह केंद्र व राज्यों के बीच खर्च के बंटवारे का रास्ता निकालने की बात आई तो वित्त मंत्रालय ने कुछ आपत्तियां उठा दीं। प्रधानमंत्री की दखल के बाद नए सिरे से कार्रवाई के तहत विधेयक का संशोधित मसौदा बना तो कानून मंत्रालय ने कानूनी पचड़े बढ़ने की आशंका जताते हुए कई सवाल उठा दिये। बाद में मामला कैबिनेट में गया और वहां सहमति न बनने पर प्रधानमंत्री ने इसे मुकाम तक पहुंचाने के लिए अर्जुन सिंह की अध्यक्षता में मंत्रियों का समूह गठित कर दिया। समूह ने मंगलवार को उसे हरी झंडी दे दी।
साभार - याहू जागरण