पार्ट टाइमर यानी अंशकालिक भी कानून की निगाह में कर्मचारी हैं और अदालत में अपने हक का दावा कर सकते हैं। सुप्रीमकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि अंशकालिक कर्मचारी भी औद्योगिक विवाद अधिनियम में 'वर्कमैन' की परिभाषा में आएंगे और अगर कानून में दी गई शर्तें पूरी करते हैं तो इस कानून के तहत नियमित नौकरी व गैरकानूनी ढंग से हटाए जाने पर हक का दावा कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति तरुण चटर्जी व न्यायमूर्ति एचएस बेदी की पीठ ने ये फैसला न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी की याचिका खारिज करते हुए सुनाया है। पीठ ने कहा है कि अंशकालिक कर्मचारी को औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 2 [एस] के तहत वर्कमैन माना जाएगा। वह धारा 25बी में नियमित नौकरी तथा धारा 25एफ का [छंटनी या नौकरी से निकाले जाने से पहले कानून में दी गई निर्धारित प्रक्रिया का पालन] लाभ दिए जाने की मांग कर सकता है। अधिनियम में दी गई धारा 2 [एस] [वर्कमैन] और धारा 25बी की परिभाषा सिर्फ पूर्णकालिक कर्मचारियों तक सीमित नहीं है। बल्कि देखने वाली बात यह है कि जो कर्मचारी लगातार नौकरी में रहने का दावा कर रहे हैं वे इन दोनों धाराओं में दी गई शर्तों व अन्य शर्ताें को पूरा करते हैं कि नहीं, जिससे कि वे धारा 25एफ का लाभ मांग सकें।
इस मामले में ए. शंकरलिंगम को जनवरी 1986 में त्रिवेंद्रम में 130 रुपये प्रतिमाह के वेतन पर न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के क्षेत्रीय प्रबंधक के कार्यालय में सफाई व पानी पिलाने के पद पर नियुक्त किया गया। वह काम करता रहा। उसने कंपनी से नौकरी नियमित करने का अनुरोध किया लेकिन नियमित करने के बजाय कंपनी ने 15 मार्च 1989 को मौखिक आदेश सुना उसे नौकरी से निकाल दिया। जब नौकरी पर वापस लेने की गुहार सरकार ने नहीं सुनी तो मामला औद्योगिक विवाद ट्रिब्युनल पहुंचा। ट्रिब्युनल ने फैसला दिया कि वह धारा 2एस के तहत वर्कमैन की परिभाषा में नहीं आता है क्योंकि वह अंशकालिक या कहा जाए तो तदर्थ सेवा में था। शंकरलिंगम ने ट्रिब्युनल के फैसले को मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट की एकलपीठ ने ट्रिब्युनल का फैसला निरस्त कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 2(एस) की परिभाषा सिर्फ पूर्णकालिक कर्मचारी तक सीमित नहीं है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यहां सवाल शंकरलिंगम की नौकरी नियमित करने का नहीं है बल्कि यह देखा जाएगा कि उसे नौकरी से निकालते समय धारा 25एफ की शर्तों का पालन हुआ है कि नहीं। हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी को गैरकानूनी ठहराते हुए शंकर लिंगम को पूर्ण बकाया लाभों के साथ वापस नौकरी पर रखने का आदेश दिया। हालांकि कोर्ट ने सेवा नियमित करने के मामले में कंपनी को कानून के मुताबिक फैसला लेने की छूट दे दी। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने भी इस फैसले पर मुहर लगा दी जिसके बाद कंपनी सुप्रीमकोर्ट पहुंची थी। सुप्रीमकोर्ट ने उच्च न्यायालयों व सुप्रीमकोर्ट के एक पूर्व फैसले के आधार पर यह फैसला सुनाया है।
साभार - याहू जागरण
न्यायमूर्ति तरुण चटर्जी व न्यायमूर्ति एचएस बेदी की पीठ ने ये फैसला न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी की याचिका खारिज करते हुए सुनाया है। पीठ ने कहा है कि अंशकालिक कर्मचारी को औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 2 [एस] के तहत वर्कमैन माना जाएगा। वह धारा 25बी में नियमित नौकरी तथा धारा 25एफ का [छंटनी या नौकरी से निकाले जाने से पहले कानून में दी गई निर्धारित प्रक्रिया का पालन] लाभ दिए जाने की मांग कर सकता है। अधिनियम में दी गई धारा 2 [एस] [वर्कमैन] और धारा 25बी की परिभाषा सिर्फ पूर्णकालिक कर्मचारियों तक सीमित नहीं है। बल्कि देखने वाली बात यह है कि जो कर्मचारी लगातार नौकरी में रहने का दावा कर रहे हैं वे इन दोनों धाराओं में दी गई शर्तों व अन्य शर्ताें को पूरा करते हैं कि नहीं, जिससे कि वे धारा 25एफ का लाभ मांग सकें।
इस मामले में ए. शंकरलिंगम को जनवरी 1986 में त्रिवेंद्रम में 130 रुपये प्रतिमाह के वेतन पर न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के क्षेत्रीय प्रबंधक के कार्यालय में सफाई व पानी पिलाने के पद पर नियुक्त किया गया। वह काम करता रहा। उसने कंपनी से नौकरी नियमित करने का अनुरोध किया लेकिन नियमित करने के बजाय कंपनी ने 15 मार्च 1989 को मौखिक आदेश सुना उसे नौकरी से निकाल दिया। जब नौकरी पर वापस लेने की गुहार सरकार ने नहीं सुनी तो मामला औद्योगिक विवाद ट्रिब्युनल पहुंचा। ट्रिब्युनल ने फैसला दिया कि वह धारा 2एस के तहत वर्कमैन की परिभाषा में नहीं आता है क्योंकि वह अंशकालिक या कहा जाए तो तदर्थ सेवा में था। शंकरलिंगम ने ट्रिब्युनल के फैसले को मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट की एकलपीठ ने ट्रिब्युनल का फैसला निरस्त कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 2(एस) की परिभाषा सिर्फ पूर्णकालिक कर्मचारी तक सीमित नहीं है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यहां सवाल शंकरलिंगम की नौकरी नियमित करने का नहीं है बल्कि यह देखा जाएगा कि उसे नौकरी से निकालते समय धारा 25एफ की शर्तों का पालन हुआ है कि नहीं। हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी को गैरकानूनी ठहराते हुए शंकर लिंगम को पूर्ण बकाया लाभों के साथ वापस नौकरी पर रखने का आदेश दिया। हालांकि कोर्ट ने सेवा नियमित करने के मामले में कंपनी को कानून के मुताबिक फैसला लेने की छूट दे दी। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने भी इस फैसले पर मुहर लगा दी जिसके बाद कंपनी सुप्रीमकोर्ट पहुंची थी। सुप्रीमकोर्ट ने उच्च न्यायालयों व सुप्रीमकोर्ट के एक पूर्व फैसले के आधार पर यह फैसला सुनाया है।
साभार - याहू जागरण