Oct 22, 2008

संपत्ति अधिकार पर महत्वपूर्ण फैसला

सुप्रीमकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि कानूनी वारिसों के बीच संपत्ति बंटवारे के मामले में मालिक द्वारा मृत्युपूर्व किए गए लेनदेन की भी जांच हो सकती है। ऐसा सिर्फ उन मामलों में होगा जहां संपत्ति की वसीयत नहीं की गई होगी। जिनमें वसीयत होगी, वहां संपत्ति का बंटवारा वसीयत के मुताबिक ही होगा।

सुप्रीमकोर्ट की इस व्यवस्था से कानूनी वारिस को मालिक द्वारा मृत्यु पूर्व किए गए लेनदेन को चुनौती देने के लिए अलग से मुकदमा करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वह संपत्ति पर हक के मुकदमे में अन्य पक्षकारों के साथ उस व्यक्ति को भी पक्षकार बना सकता है जिसने संपत्ति मालिक की मृत्यु के पहले संपत्ति का लेन-देन किया हो।

न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर व न्यायमूर्ति मार्केडेय काटजू की पीठ ने मृत्युपूर्व किए गए लेनदेन के पक्षकार को भी संपत्ति बंटवारे के विवाद में पक्षकार बनाए जाने के फैसले को सही ठहराते हुए यह व्यवस्था दी है। पीठ ने कहा है कि संपत्ति में किसी व्यक्ति के हिस्से पर विचार करते समय कोर्ट मरने वाले की कुल संपत्ति और उस पर उसके हक का आकलन करता है। संपत्ति को कानूनी वारिसों के बीच बांटे जाने पर विचार करते समय मालिक द्वारा मृत्युपूर्व किए गए लेनदेन की भी जांच हो सकती है ताकि पता चल सके कि मरने वाले का संपत्ति पर कितना हक था।
इस मामले में बालकिशन डी संघवी ने अपने पिता द्वारकादास संघवी व मां विमलाबेन संघवी की संपत्ति पर दावे के मामले में संपत्ति के अन्य कानूनी वारिस अपने भाई-बहनों को पक्षकार बनाने की अनुमति मांगी थी। इसके साथ ही उस व्यक्ति व कंपनी को भी पक्षकार बनाने की अनुमति मांगी थी जिसने उसके माता-पिता की मृत्यु के पूर्व संपत्ति का लेन-देन किया था। मुंबई हाईकोर्ट की एकलपीठ ने बालकिशन की अर्जी स्वीकार कर ली थी।
कोर्ट ने बाबूलाल खंडेलवाल व अन्य को पक्षकार बनाने की अनुमति दे दी थी। यही नहीं, हाईकोर्ट से फैसले से द्वारकादास की मृत्यु से पहले खंडेलवाल के साथ हुए लेनदेन पर भी सवाल खड़ा हो गया था।

बाबूलाल खंडेलवाल ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी थी। उसका कहना था कि संपत्ति बंटवारे के इस मामले में वह किसी भी तरह से जुड़ा नहीं है। ऐसे में उसे पक्षकार नहीं बनाया जा सकता है। संपत्ति का जो लेनदेन द्वारकादास की मृत्यु के पहले पूरा हो चुका है, उस पर इस मुकदमे में कैसे विचार हो सकता है। हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट दोनों का यही मानना है कि संपत्ति बंटवारे के मामले में कुल संपत्ति का आकलन करने और उस पर मरने वाले के अधिकार पर विचार करते समय, उस संपत्ति पर भी विचार किया जा सकता है जिसका लेनदेन उसकी मृत्यु के पहले पूरा हो चुका हो।

याहू जागरण 

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