जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार की लगातार बढ़ती शिकायतों के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने निचली अदालतों में कार्यरत संदिग्ध छवि वाले न्यायाधीशों को जबरन रिटायर करने के लिए कहा है। उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस को लिखे पत्र में चीफ जस्टिस ने कहा है कि न्यायाधीशों के कामकाज और कंडक्ट की लगातार समीक्षा की जाए।
चीफ जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन ने कहा है कि नियम 56 (जे) के तहत अगर जजों की नियुक्ति 35 साल की उम्र से पहले हुई है है तो 50 साल की उम्र के बाद उसके कामकाज की समीक्षा की जा सकती है। अगर जज की नियुक्ति 35 साल की उम्र के बाद हुई है तो 55 साल की आयु होने पर उसे रिटायर करने का प्रावधान है। इस नियम को लागू करने का मकसद अयोग्य और अक्षम न्यायिक अधिकारियों को रिटायरमेंट की तयशुदा उम्र से पहले ही सेवानिवृत्ति प्रदान करना है।
सीजेआई ने नियम 56 (जे) के अलावा ऑल इंडिया जज असोसिएशन केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों का भी जिक्र किया है। जज की उम्र 50 साल होने पर उसके कामकाज की समीक्षा की जाए और उसके बाद 55 साल की उम्र होने पर। एक्सटेंशन देने से पहले 58 साल की उम्र पर भी चीफ जस्टिस न्यायिक अधिकारी के जुडीशियल करियर की जांच करे।
सीजेआई ने उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस से कहा है कि अगर उनके राज्य के सर्विस रूल में इस तरह का प्रावधान नहीं हैं तो नियमों में आवश्यक संशोधन कर लिया जाए और इसका सख्ती से पालन किया जाए। सीजेआई ने यह भी स्पष्ट किया कि समय से पूर्व रिटायरमेंट न्यायिक अधिकारी पर किसी तरह का दाग नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के अफसर और कर्मचारियों की भी 50 साल की उम्र के बाद समीक्षा की जाती है और 55 साल की उम्र होने पर हर साल रिव्यू होती है।
गौरतलब है कि सीजेआई ने जिस नियमों के तहत निचली अदालतों के न्यायाधीशों पर कार्रवाई किए जाने के लिए कहा है, वह नियम हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों पर लागू नहीं होते। हायर जुडीशियरी के जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार के सबूत मिलने पर भी उन्हें किसी नियम के तहत हटाया नहीं जा सकता। उन्हें सिर्फ महाभियोग के जरिए ही पद से हटाया जा सकता है।
UK: The Supreme Court on the 'creditor duty' - its existence, content and
engagement
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