आपसी सहमति के आधार पर वयस्कों में समलैंगिक संबंधों को गैर आपराधिक कृत्य घोषित किया जाए या नहीं, इस मुद्दे पर गृह और स्वास्थ्य मंत्रालय के बीच मतभेद बरकरार है। रुख न तय कर पाने पर हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की खिंचाई की है। समलैंगिकता को लेकर कानून के मुद्दे पर सरकार की ओर से दो तरह के विचार सामने आने पर नाराजगी जाहिर करते हुए चीफ जस्टिस एपी शाह व जस्टिस डॉ. एस मुरलीधर की पीठ ने कहा कि दोनों मंत्रालयों ने अब भी अलग-अलग हलफनामा दायर कर दो तरह की बातें कही हैं। आखिरकार, इसके पीछे सरकार का रुख क्या है? पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीपी मल्होत्रा से कहा कि क्या आप केंद्र के रुख को लेकर स्पष्ट हैं? इस पर मल्होत्रा ने साफ जवाब नहीं दिया। पिछली सुनवाई में मल्होत्रा ने कहा था कि दोनों मंत्रालयों में सहमति बनाने के लिए जल्द ही कैबिनेट में फैसला ले लिया जाएगा। हालांकि शुक्रवार को केंद्र की तरफ से पेश हुए पीपी मल्होत्रा ने कहा कि पुरुष-पुरुष या स्त्री-स्त्री में यौन संबंध बनाना आईपीसी में अपराध माना गया है, इसलिए इसे कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती है। मल्होत्रा ने कहा कि याची का यह कहना कि इसे कानूनी मान्यता देने से एड्स की बीमारी खत्म हो जाएगी, गलत है। इससे एड्स और अधिक फैलेगा।
ज्ञात हो कि अदालत इस मामले में कई गैर सरकारी संगठनों की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इनमें निवेदन किया गया है कि आपसी सहमति के आधार पर दो वयस्कों के बीच समलैंगिक संबंध बनें, तो इन्हें अपराध के दायरे से बाहर रखा जाए और इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में संशोधन करने के संबंध में सरकार को निर्देश दिए जाएं। इस धारा के तहत उम्रकैद तक का प्रावधान है। इस मामले में केंद्रीय गृह व स्वास्थ्य मंत्रालय का रुख अलग-अलग है। गृह मंत्रालय जहां सजा का समर्थन कर रहा है, वहीं स्वास्थ्य मंत्रालय दंड का प्रावधान हटाने के पक्ष में है।
साभार - दैनिक जागरण
MEITY to release draft DPDP rules for public consultation after Budget
session
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As reported by CNBC, MeitY is set to release draft rules for the Data
Protection and Privacy (DPDP) Act for public consultation immediately
following the B...
3 months ago