उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रद्रोह के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे छत्तीसगढ़ के मानवाधिकार कार्यकर्ता बिनायक सेन को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति हरजित सिंह बेदी और न्यायमूर्ति चंद्रमौली कुमार प्रसाद की खंडपीठ ने यह स्पष्ट कर दिया कि याचिकाकर्ता की जमानत की अन्य शर्तें छत्तीसगढ़ की निचली अदालत तय करेगी। खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ साक्ष्य निराधार हैं। छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता यू यू ललित ने दलील दी कि याचिकाकर्ता पर नक्सली गतिविधियों में लिप्त होने के अनेक आरोप हैं। याचिकाकर्ता की ओर से कानूनविद राम जेठमलानी की दलील थी कि उनके मुवक्किल के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य मौजूद नहीं होने के बावजूद निचली अदालत द्वारा उन्हें दोषी ठहराया जाना सरासर अनुचित है और राजनीति से प्रेरित हैं। विदित हो कि कि निचली अदालत ने डॉ. सेन को देशद्रोह तथा नक्सलियों से सम्पर्क रखने का दोषी करार देते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जिसे उन्होंने उच्च न्यायालय में चुनौती दी हुई है, जबकि उन्होंने जमानत याचिका रद्द किये जाने के उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।
बिनायक सेन मामले से जुड़ा घटनाक्रम
14 मई, 2007 : व्यापारी पीयूष गुहा और नक्सली नेता नारायण सान्याल के बीच संदशों का आदान-प्रदान करने के आरोप में सेन की गिरफ्तारी।
15 मई, 2007 : सेन को न्यायिक हिरासत में भेजा गया।
25 मई, 2007 : छत्तीसगढ़ सरकार ने दावा किया कि सेन से राज्य की सुरक्षा को खतरा है। उन्हें जमानत नहीं मिली।
3 अगस्त, 2007 : पुलिस ने सेन के खिलाफ छत्तीसगढ़ विशेष सार्वजनिक सुरक्षा कानून और अवैध गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी सत्यभामा दुबे की अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया।
10 दिसम्बर , 2007 : सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों वाली पीठ ने सेन की जमानत याचिका खारिज की।
15 मार्च11, अप्रैल, 2008 : जेल प्रशासन ने सुरक्षा का हवाला देते हुए सेन को एकांत कारावास में रखा।
30 मई, 2008 : सेन मामले में रायपुर में सुनवाई प्रारंभ।
11 अगस्त, 2008 : छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर में दूसरी जमानत याचिका दाखिल की गई।
14 अगस्त, 2008 : सेन की जमानत याचिका पर पहली बार सुनवाई। सुनवाई स्थागित।
2दिसम्बर, 2008 : जमानत याचिका खारिज।
3 दिसम्बर, 2008 : पूरक आरोप दाखिल, इसमें अतिरिक्त 47 गवाहों की सूची शामिल।
4 मई, 2009 : सर्वोच्च न्यायालय ने सेन को हिरासत में रखे जाने को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा। अदालत ने सेन के दिल की तकलीफ को देखते हुए उन्हें बेहतर चिकित्सकीय सुविधा मुहैया कराने को भी कहा।
25 मई, 2009 : सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति मर्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की पीठ के आदेश पर सेन जमानत पर रिहा।
23-26 नवम्बर 2009 : रायपुर सत्र न्यायालय में सुनवाई दोबरा शुरू।
अगस्त के अंतिम सप्ताह और सितम्बर की शुरुआत, 2010 : सर्वोच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ सरकार को सितम्बर के अंत तक सेन के खिलाफ सबूत पेश करने का निर्देश दिया।
28 सितम्बर, 2010 : अभियोजन पक्ष ने सभी सबूत पेश किए।
25-26 नवम्बर, 2010 : बचाव पक्ष ने 12 गवाहों सहित दस्तावेज पेश किए।
24 दिसम्बर, 2010 : रायपुर के सत्र न्यायालय ने सेन, सान्याल और गुहा को राजद्रोह और साजिश के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
24 जनवरी, 2011 : सेन की जमानत याचिका पर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में सुनवाई शुरू। वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी सेन के पक्ष में उतरे और निचली अदालत के फैसले को बिना सबूत के आधार वाला फैसला करार दिया।
25 जनवरी, 2011 : एक अन्य वकील सुरेंद्र सिंह ने सेन का पक्ष लेते हुए कहा, ‘‘छत्तीसगढ़ पुलिस ने सेन के नक्सलियों से सम्बंध होने के दस्तावेज फर्जी तरीके से तैयार किये हैं।’’
9 फरवरी, 2011 : उच्च न्यायालय ने अभियोजन पक्ष के वकील किशोर भादुड़ी की दलील सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रखा।
10 फरवरी, 2011 : न्यायमूर्ति टीपी शर्मा और न्यायमूर्ति आरएल झानवार ने सेन की जमानत याचिका को खारिज किया।
11 अप्रैल, 2011 : सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एचएस बेदी और न्यायमूर्ति सीके प्रसाद की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ ने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा अपनी दलील पेश करने के लिए और समय मांगने पर सुनवाई स्थगित की।
15 अप्रैल, 2011 : सर्वोच्च न्यायालय ने सेन को जमानत दी।
चित्र पत्रिका समाचार पत्र