नागरिक अधिकार कार्यकर्ता डॉ बिनायक सेन को रायपुर अदालत ने देशद्रोह और विश्वासघात का दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई. डॉ सेन, नक्सली नेता नारायण सान्याल और व्यापारी पीयूष गुहा पर माओवादियों की मदद का आरोप साबित हुआ है. 58 वर्षीय डॉ बिनायक सेन पर अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि नारायण सान्याल के संदेश और खत वह भूमिगत माओवादियों तक पहुंचा रहे हैं. पीयूष गुहा को भी माओवादी तंत्र को स्थापित करने में मदद का दोषी पाया गया है. डॉ बिनायक सेन को 14 मई 2007 को बिलासपुर से गिरफ्तार किया गया था. रायपुर के द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बीपी वर्मा की अदालत ने आज सेन, सान्याल और गुहा को भारतीय दंड विधान की धारा 124 (क), सहपठित 120-बी के तहत आजीवन कारावास और पाँच हजार रुपए का अर्थदंड, छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम 2005 की धारा 8 (1) के तहत दो वर्ष का सश्रम कारावास और एक हजार रुपए का अर्थदंड, छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम की धारा 8 (2) के तहत एक वर्ष सश्रम कारावास और एक हजार रुपए अर्थदंड, छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा अधिनियम की धारा 8 (3) के तहत तीन वर्ष सश्रम कारावास और एक हजार रुपए अर्थदंड, छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा अधिनियम की धारा 8 (5) के तहत पाँच वर्ष सश्रम कारावास और एक हजार रुपए अर्थदंड तथा विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम 1967 की धारा 39 (2) के तहत पाँच वर्ष का सश्रम कारावास और एक हजार रुपए अर्थदंड की सजा सुनाई है।
बिनायक सेन मामले का संक्षिप्त ब्योरा
14 मई, 2007 : बिनायक सेन को व्यापारी पीयूष गुहा और नक्सली विचारक, नारायण सान्याल के बीच संदेश पहुंचाने के आरोप में बिलासपुर में गिरफ्तार किया गया।
15 मई, 2007 : सेन को न्यायिक हिरासत में भेजा गया।
25 मई, 2007 : छत्तीसगढ़ सरकार ने दावा किया कि सेन राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। जमानत याचिका रद्द।
मई-जून : सेन के समर्थन में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने देश भर में विरोध प्रदर्शन किया।
तीन अगस्त, 2007 : पुलिस ने सेन के खिलाफ छत्तीसगढ़ विशेष सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम के तहत अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी सत्यभामा दूबे की अदालत में अरोप पत्र दाखिल किया।
10 दिसम्बर, 2007 : सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने सेन को जमानत देने से इंकार कर दिया।
31 दिसम्बर, 2007 : सेन को इंडियन एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज द्वारा उनके कार्यो के लिए आर. आर. कीथान स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया।
15 मार्च-11 अप्रैल, 2008 : सेन को तन्हाई में रखा गया। जेल अधिकारियों ने कहा कि ऐसा उनकी सुरक्षा के लिए किया गया।
21 अप्रैल, 2008 : सेन को वैश्विक स्वास्थ्य एवं मानवाधिकारों के लिए ग्लोबल हेल्थ काउंसिल की ओर से जोनाथन मान पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
30 मई, 2008 : रायपुर में मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई।
11 अगस्त, 2008 : बिलासपुर स्थित छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में दूसरी बार जमानत याचिका दायर की गई।
14 अगस्त, 2008 : जमानत याचिका पर पहली सुनवाई हुई। सुनवाई स्थगित।
दो दिसम्बर, 2008 : जमानत याचिका खारिज।
तीन दिसम्बर, 2008 : 47 अतिरिक्त गवाहों की सूची के साथ पूरक आरोप पत्र दाखिल।
चार मई, 2009 : सेन के हिरासत पर सवाल खड़ा करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस जारी किया और दो सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा। अदालत ने सेन के हृदय के लिए सर्वोत्तम इलाज सुलभ कराने का भी आदेश दिया।
25 मई, 2009 : सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मरक डेय काटजू और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की अवकाशकालीन पीठ ने सेन को जमानत पर रिहा कर दिया।
23-26 नवम्बर, 2009 : रायपुर सत्र न्यायालय में सुनवाई शुरू हुई।
अगस्त अंत और सितम्बर प्रारम्भ, 2010 : सर्वोच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ सरकार को निर्देश दिया कि वह सेन के खिलाफ सभी सबूत सितम्बर के अंत तक पेश करे।
28 सितम्बर, 2010 : अभियोजन पक्ष की सबूत पेश करने की प्रक्रिया पूरी हुई।
25-26 नवम्बर, 2010 : बचाव पक्ष ने दस्तावेजों के साथ 12 गवाह पेश किए।
24 दिसम्बर, 2010 : रायपुर सत्र न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया। बिनायक सेन, नारायण सान्याल और पीयूष गुहा को राजद्रोह व राजिश रचने का दोषी पाया गया। सेन सहित तीनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस। फोटो http://www.binayaksen.net से साभार