गांवों की सांझी जमीनों से अवैध कब्जे तुरंत हटाएं-सुप्रीम कोर्टसर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को गांवों की सांझी जमीन को निजी या व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए स्थानांतरित करने को अवैध घोषित करते हुए, सरकार को तत्काल अतिक्रमण हटाने के आदेश दे दिए। उसने राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वह गांवों की सामुदायिक जमीनों को अवैध कब्जाधारियों से मुक्त कर उन्हें उनके मूल उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करने के लिए नीतियां बनाएं। आदेश में कहा गया कि इस योजना मे अतिक्रमण त्वरित गति से हटाने की व्यवस्था हो। ऐसे अवैध कब्जों का लंबे समय से अस्तित्व, वहां निर्माण कार्य पर किया गया भारी खर्च या राजनीतिक रसूख को इस अवैध कार्य का समर्थन करने, या अवैध कब्जे को नियमित करने के बहाने के रूप में इस्तेमाल ना किया जाए। यह फैसला जस्टिस मार्कंडेय काटजू, और ज्ञान सुधा मिश्र की खंडपीठ ने दिया। पिछले प्रभाव से लागू होने वाला यह आदेश चार साल पहले सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिल्ली में बने अवैध निर्माणों को तोडऩे के आदेश से ज्यादा हलचल मचाएगा। खंडपीठ ने कहा-बहुत से राज्यों में सरकारों ने कुछ पैसों के लिये ग्राम सभा की जमीनों को निजी इस्तेमाल या व्यावसायिक संस्थाओं के लिए देने के आदेश दिए हँ। हमारी राय में ऐसे तमाम सरकारी आदेश अवैध हैं और उनकी अनदेखी की जानी चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
बिलासपुर उच्च न्यायालय ने करोड़ों के चारागाह जमीन की अफरा-तफरी मामले में राजस्व मंडल के निर्णय को पलटते हुए एक अहम फैसला सुनाया है। राजस्व मंडल ने रायपुर के पुरैना की 4 एकड़ जमीन के एक मामले की सुनवाई के बाद सरकारी दस्तावेज से चारागाह शब्द को विलोपित करने का फरमान जारी कर दिया था। इस फैसले के बाद करोड़ों-अरबों की चारागाह जमीन को हड़पने की साजिश की आशंका बढ़ गई थी। राज्य शासन की याचिका पर उच्च न्यायालय ने न केवल राजस्व मण्डल के निर्णय को उलट दिया है बल्कि राजस्व मण्डल के खिलाफ कड़ी टिप्पणी भी की है। प्रदेश के छत्तीसगढ़ अखबार ने प्रदेश की चारागाह की जमीन हड़पने की भूमाफियाओं की साजिश को सबसे पहले उठाया था। राजस्व मण्डल के फैसले जमीन की अफरा-तफरी करने वालों के पक्ष में नजर आ रहे थे।
रायपुर तेलीबांधा की रहने वाली सुहावन बाई ने पुरैना की 1.668 हेक्टेयर जमीन पर अपना दावा ठोंकते हुए कलेक्टर और संभाग आयुक्त के समक्ष आवेदन दिया था। उसकी दलील थी कि यह जमीन उसके पिता स्व. रामप्रसाद के नाम पर दर्ज थी। उसके पिता के दो संतान थे जिसमें से एक की नि:संतान मौत हो गई और दूसरी वे स्वयं हैं। ऐसे में इस जमीन की एकमात्र वारिस वे खुद हैं। इस जमीन पर अपना नाम दर्ज करवाने पटवारी से संपर्क किया तो पता चला कि इस भूमि को राजस्व अभिलेख में चारागाह भूमि दर्ज कर दिया गया है। शिकायतकर्ता ने यह भी कहा कि इस भूमि को चारागाह रिकॉर्ड में शामिल करने के लिए उनसे या भूमि स्वामी से सहमति नहीं ली गई थी। इस मामले में रायपुर संभाग के आयुक्त ने अक्टूबर 2008 में शिकायतकर्ता के आवेदन को यह कहकर खारिज कर दिया था कि उनकी शिकायत के पक्ष में कोई भी तथ्य नहीं पाए गए। इस मामले में चकबंदी का उल्लेख करते हुए यह भी कहा गया कि ऐसी जमीन जिन पर किसी ने मालिकाना हक नहीं जताया, उन जमीनों को कम्युनिटी लैंड (शामिलात भूमि) घोषित कर दिया गया था। इसके लिए गांव वालों की भी सहमति ली गई थी।
शिकायतकर्ता ने इस मामले में राजस्व मण्डल में अपील दाखिल किया। 16 फरवरी 2009 को मण्डल ने शिकायत पर फैसला सुनाते हुए कहा कि प्रकरण में यह तथ्य निर्विवाद है कि अपीलार्थी भूमि स्वामी की एकमात्र जीवित संतान और वारिस है। उसके अनुसार वह वाद भूमि पर प्रारंभ से काबिज है। चकबंदी के निराकरण के जिस प्रकरण का उल्लेख रायपुर कलेक्टर द्वारा किया गया है उस संबंध में कोई भी प्रमाणित दस्तावेज संलग्न नहीं है। बोर्ड ने अपने फैसले में यह भी दलील दी थी कि शामिलात चारागाह में भूमि दर्ज करने का उद्देश्य है कि जानवरों की संख्या अधिक हो और चराई का रकबा कम न हो पाए। लेकिन भूमि स्वामित्व, संबंधित कृषक का ही माना गया है जिसे नकारा नहीं जा सकता। वर्तमान में शामिलात चारागाह की आवश्यकता नहीं के बराबर है ऐसे में उक्त भूमि मूल स्वामी को वापस की जानी चाहिए।
राजस्व मण्डल ने कहा कि अभिलेखों के अवलोकन से यह भी स्पष्ट होता है कि वर्ष 1929-30 के बाद निस्तार पत्रक में चारागाह शब्द का उल्लेख नहीं है और नकल नहीं देने का उल्लेख किया गया है। ऐसी स्थिति में कलेक्टर रायपुर का कथन मान्य किए जाने योग्य नहीं है। उन्होंने कहा कि अन्य पड़ोसी गांव देवपुरी में भी गलत एवं गैरकानूनी तरीके से चारागाह शब्द जोड़ दिया गया। ऐसे में उन प्रकरणों में चारागाह शब्द विलोपित कर उनके स्थान पर संबंधित भूस्वामी का नाम दर्ज किया जाए। मण्डल ने इस मामले में जमीन को शामिलात चारागाह में दर्ज करने को लिपिकीय त्रुटि करार देते हुए शिकायतकर्ता के पक्ष में फैसला दिया था। इस फैसले के खिलाफ राज्य शासन ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। अदालत ने राज्य शासन के पक्ष को मान्य करते हुए राजस्व मण्डल के निर्णय के खिलाफ फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा है कि इस मामले में मण्डल ने रायपुर कलेक्टर की जांच रिपोर्ट का अध्ययन किए बिना ही फैसला सुनाया है। अदालत ने राज्य शासन की इस दलील को भी माना कि शिकायतकर्ता कभी भी सामने नहीं आए। अदालत की नोटिस के बाद भी शिकायतकर्ता कोर्ट में हाजिर नहीं हुए।
हाईकोर्ट ने राज्य शासन के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उक्त भूमि को चारागाह में दर्ज करने का आदेश दिया है। राज्य शासन ने इस तरह के मामले में आधा दर्जन से अधिक याचिकाएं कोर्ट में लगाई है। पुरैना की इस जमीन की कीमत 20 से 25 करोड़ तक की है। राजस्व मंडल के निर्णय के बाद यह आशंका जताई जा रही थी कि चारागाह की जमीन पर कब्जा जमाने भूमाफियाओं ने गहरी साजिश रची थी। ऐसी आशंका जताई जा रही थी कि बिल्डर और भूमाफिया सरकारी चारागाह की जमीन पर कॉलोनियां बनाने के फिराक में थे। राज्य शासन के निर्देश पर एसडीएम तारण सिन्हा व नायब तहसीलदार पुलक भट्टाचार्या के द्वारा राजस्व मण्डल के फैसले के विरूद्ध उच्चन्यायालय में वाद दायर किया गया था। बिलासपुर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश श्री प्रशांत मिश्रा नें शासन के पक्ष में फैसला दिया।