जनहित याचिका (जहिया), भारतीय कानून में, सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए मुकदमे का प्रावधान है। अन्य सामान्य अदालती याचिकाओं से अलग, इसमे यह आवश्यक नहीं की पीड़ित पक्ष स्वयं अदालत में जाए, यह किसी भी नागरिक या स्वयं न्यायालय द्वारा पीडितों के पक्ष में दायर किया जा सकता है। जहिया के अबतक के मामलों ने बहुत व्यापक क्षेत्रों, कारागार और बन्दी, सशस्त्र सेना, बालश्रम, बंधुआ मजदूरी, शहरी विकास, पर्यावरण और संसाधन, ग्राहक मामले, शिक्षा, राजनीति और चुनाव, लोकनीति और जवाबदेही, मानवाधिकार और स्वयं न्यायपालिका को प्रभावित किया है। न्यायिक सक्रियता और जहिया का विस्तार बहुत हद तक समांतर रूप से हुआ है और जनहित याचिका का मध्यम-वर्ग ने सामान्यत: स्वागत और समर्थन किया है। यहां यह ध्यातव्य है कि जनहित याचिका भारतीय संविधान या किसी कानून में परिभाषित नहीं है, यह उच्चतम न्यायालय के संवैधानिक व्याख्या से व्युत्पन्न है।
जनहित याचिका का पहला मुकदमा
जनहित याचिका का पहला प्रमुख मुकदमा 1979 में हुसैनआरा खातून और बिहार राय केस में कारागार और विचाराधीन कैदियों की अमानवीय परिस्थितियों से संबध्द था। यह एक अधिवक्ता द्वारा एक राष्ट्रीय दैनिक में छपे एक खबर, जिसमें बिहार के जेलों में बन्द हजारों विचाराधीन कैदियों का हाल वर्णित था, के आधार पर दायर किया गया था। मुकदमे के नतीजतन 40000 से भी यादा कैदियों को रिहा किया गया था। त्वरित न्याय को एक मौलिक अधिकार माना गया, जो उन कैदियों को नहीं दिया जा रहा था। इस सिध्दांत को बाद के केसों में भी स्वीकार किया गया।
जनहित के कुछ प्रमुख मुकदमे
2001 में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल), राजस्थान ने भोजन के अधिकार को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित चायिका दायर की। यह याचिका उस समय दायर की गई, जब एक ओर देश के सरकारी गोदामों में अनाज का भरपूर भंडार था, वहीं दूसरी ओर देश के विभिन्न हिस्सों में सूखे की स्थिति एवं भूख से मौत के मामले सामने आ रहे थे। इस केस को भोजन के अधिकार केस के नाम से जाना जाता है। भोजन के अधिकार को न्यायिक अधिकार बनाने के लिए देश की विभिन्न संस्थाएं, संगठन और ट्रेड यूनियन ने संघर्ष किया है।
पी.यू.सी.एल. द्वारा दायर की गयी इस याचिका का आधार संविधान का अनुच्छेद 21 है जो व्यक्ति को जीने का अधिकार देता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार जीने के अधिकार को परिभाषित किया है, इसमें इजत से जीवन जीने का अधिकार और रोटी के अधिकार आदि शामिल हैं।
एम सी मेहता और भारतीय संघ और अन्य (1985-2001) - इस लंबे चले केस में अदालत ने आदेश दिया कि दिल्ली मास्टर प्लान के तहत और दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए रिहायशी इलाकों से करीब एक लाख औद्योगिक इकाईयों को बाहर स्थानांतरित किया जाए। इस फैसले ने वर्ष 1999 के अंत में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में औद्योगिक अशांति और सामाजिक अस्थिरता को जन्म दिया था, और इसकी आलोचना भी हुई थी कि न्यायालय द्वारा आम मजदूरों के हितों की अनदेखी पर्यावरण के लिए की जा रही है। इस जहिया ने करीब 20 लाख लोगों को प्रभावित किया था जो उन इकाईयों में सेवारत थे। एक और संबध्द फैसले में उच्चतम न्यायालय ने अक्टूबर 2001 में आदेश दिया कि दिल्ली की सभी सार्वजनिक बसों को चरणबध्द तरीके से सिर्फ सी एन जी ईंधन से चलाया जाए। यह माना गया कि सी एन जी डीजल की अपेक्षा कम प्रदूषणकारी है। अभी हाल में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई है, जिसमें राजनीतिक दलों पर वोट की राजनीति के लिए चुनाव चिन्हों का दुरुपयोग करने और फोटो तथा चित्रों के द्वारा नेताओं का महिमामंडन करने पर रोक लगाने की मांग की गई है। रुचिका गिरहोत्रा मामले में वकील रंजन लखनपाल ने मामले की नए सिरे से जांच के लिए एक जनहित याचिका दायर की थी।
खारिज की गई याचिकाएं
पिछले कुछ वर्षों में उच्चतम न्यायालय में भारत का नाम बदलकर हिंदुस्तान करने, अरब सागर का नाम परिवर्तित कर सिंधु सागर रखने और यहां तक कि राष्ट्रगान को बदलने तक के लिए जनहित याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं। अदालत इन्हें 'हस्तक्षेप करने वालों' की संज्ञा दे चुकी है और कई बार इन याचिकाओं को खारिज करने का डर भी दिखाया जा चुका है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें यूपी की सीएम मायावती को नोटों की माला पहनाए जाने के मामले की सीबीआई से जांच कराए जाने की मांग की गई थी। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने राय के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और उनकी पत्नी के खिलाफ दायर की गई उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसके तहत लोकायुक्त को इनके खिलाफ कथित डंपर (ट्रक) घोटाले की जांच में तेजी लाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। मप्र हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में पूर्व चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन, जस्टिस दीपक वर्मा और जस्टिस बीएस चौहान के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल की गई। याचिका में सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी पर आपत्ति जताई गई है जिसमें लिव इन रिलेशन के मामले में राधा-कृष्ण का जिक्र किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाल में कहा कि निर्वासित जीवन बिता रहे मशहूर पेंटर एम. एफ. हुसैन को अदालत या देश का प्रधानमंत्री भी भारत लौटने पर मजबूर नहीं कर सकता। यह कहते हुए अदालत ने हुसैन के खिलाफ देश में चल रहे आपराधिक मामलों को रद्द करने संबंधी जनहित याचिका भी खारिज कर दी। इंदौर की एमजी रोड स्थित एक लाख वर्गफुट की आवासीय जमीन को मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह व अन्य उच्च अधिकारियों द्वारा कामर्शियल उपयोग के लिए करोड़ों में बेचे जाने का आरोप लगाने वाली लांजी के पूर्व विधायक किशोर समरीते की जनहित याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।
26 जनहित याचिकाओं को हाईकोर्ट ने एक साथ खारिज किया
शिक्षा, स्वास्थ्य, डॉक्टरों की हड़ताल, किसानों को गेहूं का उचित दाम, ट्रैफिक कुप्रबंधन, पानी कुप्रबंधन जैसे जनहित के मुद्दों से जुड़ी 26 जनहित याचिकाओं को हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने एक साथ खारिज कर दिया। कोर्ट ने 72 पेज का फैसला सुनाया है, जिसमें सुप्रीम और मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के कई फैसलों का उल्लेख भी है। सभी याचिकाएं आनंद ट्रस्ट के ट्रस्टी सत्यपाल आनंद ने लगाई थीं।
देशबंधु से साभार
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