आपसी अनुबंधों एवं अन्य दस्तावेजों की प्रामाणिकता हेतु दस्तावेजों के पंजीकरण हेतु बनाये गये कानून भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 के आधार पर ही भूमि एवं भवनों के क्रय-विक्रय संव्यवहारों के दस्तावेजों का पंजीयक एवं उप पंजीयक कार्यालयों में पंजीयन होता है । पंजीकरण के पूर्व पंजीकरण करने वाले अधिकारी को दस्तावेजों में उल्लेखित भूमि व भवन या सम्पत्ति के वास्तविक विवरण का सत्यापन करना होता है । इसी सत्यापन के आधार पर दस्तावेजों में लगाये जाने वाले स्टाम्प व देय शुल्क का आंकलन हो पाता है व पक्षकारों के हक का पोषण भी हो पाता है । भवनों के बढते जंगलों व भूमि सम्पत्ति के बढते हस्तांतरणों के कारण पंजीकरण कार्यालयों के द्वारा भौतिक सत्यापन में ढील बरती जाती है इसी प्रकार दस्तावेजों के संग्रहण एवं दस्तावेजीकरण में बरसों से अपनाई जा रही पद्धति से रिकार्ड दुरूस्ती में भी समस्यायें आ रही है और पंजीकृत दस्तावेजों से संबंधित भू संपदा विवादों में वृद्धि होते जा रही है । इस समस्या के निराकरण के लिए आधुनिक तकनीकि के प्रयोग से भू-दस्तावेजों के आधुनिकीकरण के लिए सरकार ने अपनी प्रतिबद्धता जताई है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा है कि जमीनों के डिजिटल नक्शे तैयार करने और आंकड़ों के कंप्यूटरीकरण से ढेर सारी समस्याएं खत्म हो जाएगी। इससे निचली अदालतों में लंबित मामलों में कमी आएगी। इसके लिए भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 में भी समुचित संशोधन किए जाएंगे। इसके चलते कागजी दस्तावेजों में भारी कमी आएगी।
ग्रामीण विकास मंत्री नें पिछले दिनों एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए योजना का विस्तृत ब्यौरा देते हुए बताया था कि सरकार ने पहले से चल रही दो परियोजनाओं-कंप्यूटराइजेशन आफ लैंड रिकार्ड्स (सीएलआर) और रेवेन्यू एडमिनिस्ट्रेशन एंड अपडेटिंग आफ लैंड रिकार्ड्स को जोड़ दिया है। यह संयुक्त परियोजना नेशनल लैंड रिकार्ड्स माडर्नाइजेशन प्रोग्राम (एनएलआरएमपी) के नाम से जानी जाती है। इसमें भू-दस्तावेजों के तीन स्तरीय आंकड़े तैयार किए जाएंगे। एक-एक गांव को इकाई मानकर अंतरिक्ष से तैयार उच्च स्तरीय कैमरों के माध्यम से डिजिटल नक्शे, वन विभाग व भारतीय सर्वेक्षण विभाग के नक्शे और राजस्व विभाग के आंकड़ों पर आधारित अलग-अलग नक्शे बनाए जाएंगे। इससे जमीन की माप में किसी गड़बड़ी की गुंजाइश नहीं रह जाएगी। (गूगल मैप व सेटेलाईट व्यू की भांति भारतीय 'भुवन' )
परियोजना के बजट के संबंध में में उन्होंने कहा कि दस्तावेजों के कंप्यूटरीकरण में राज्य सरकारों की भूमिका सर्वाधिक होगी। पंचायत और राजस्व विभाग के कर्मचारियों व अधिकारियों को सूचना प्रौद्योगिकी से लैस करने के लिए उन्हें प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस पूरी योजना पर 5 हजार 656 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान है। इसमें केंद्र का हिस्सा 3 हजार 98 करोड़ रुपये होगा। बाकी खर्च राज्यों को वहन करना होगा। योजना पर अमल के लिए क्षेत्रीय तकनीकी सलाहकार समूह का गठन किया जाएगा, जो जिला स्तर पर समुचित सलाह देगा। रजिस्ट्रेशन एक्ट के प्रावधानों में पर्याप्त संशोधन किया जाएगा व इस संबंध में तकनीकि विकसित किये जावेंगें । इससे अनुबंध पत्र और दस्तावेजों का प्रभाव डिजिटल मनी ट्रांसफर की भांति तत्काल किये जा सकेंगें व रकबे आदि के विवाद एवं एक सम्पत्ति को कई लोगों को बेंच दिये जाने के फर्जीवाडे पर तत्काल अंकुश लग सकेगा ।