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न्यायमूर्ति बालाकृष्णन शनिवार को बंबई हाईकोर्ट में अदालती रिपोर्टिग पर आयोजित वर्कशाप को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से लोगों की निजता की रक्षा होनी चाहिए। कभी-कभी जांच के दौरान नुकसान पहुंचाने वाली सूचना जारी कर दी जाती है। इससे निष्पक्ष सुनवाई के लोगों का अधिकार प्रभावित होता है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कभी-कभी मीडिया पीडि़त के यौन दुर्व्यवहार के मामले में इतनी सूचना दे देता है कि नाम नहीं प्रकाशित करने के बावजूद कोई भी पीडि़त की पहचान कर लेता है। उन्होंने जांच के दौरान मीडिया को सूचना देने की पुलिस की प्रवृत्ति की आलोचना करते हुए कहा कि इससे निजता के अधिकार का अतिक्रमण होता है।
अदालत रिपोर्टिग के बारे में मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इन दिनों कई प्रतिभावान युवा रिपोर्टर अदालती मामलों को कवर कर रहे हैं लेकिन उन्हें इस संबंध में प्रशिक्षण की जरूरत है।
इलेक्ट्रानिक मीडिया के बारे में बालाकृष्णन ने कहा कि संपादकीय नियंत्रण का अभाव चिंतनीय पहलू है। उन्होंने कहा कि समाचार पत्र में सामग्रियों का संपादन संभव है। लेकिन जब टेलीविजन पर रिपोर्टर की बातों का सीधा प्रसारण किया जाता है, वहां कोई संपादकीय नियंत्रण नहीं है।
मीडिया की आजादी पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि प्रेस की आजादी आम लोगों का अधिकार है। मीडिया [इस मकसद के लिए] केवल एक एजेंसी है। लोगों को निश्चित तौर पर सही सूचना मिलनी चाहिए। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरिजीत पसायत ने कहा कि शीर्ष अदालत जल्दी ही प्रेस संपंर्क अधिकारी नियुक्त करेगा ताकि रिपोर्टरों को सूचना आसानी से मिल सके। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के स्तर पर भी हम पीआरओ की नियुक्ति पर विचार कर रहे हैं।
बंबई हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार ने कहा कि हाईकोर्ट लीगल रिपोर्टिग से संबंधित विवादास्पद मामलों के संबंध में कोर्ट बार और मीडिया समिति के गठन पर विचार कर रहा है।
उन्होंने कहा कि अदालत रिपोर्टिग के लिए यूनिफार्म कोड [प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया] समय की जरूरत है।