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Apr 3, 2010

मारुति कोलवाशरी को करें कोयला सप्लाई : सुप्रीम कोर्ट

मारुति कोलवाशरी को छत्तीसगढ़ के कटघोरा क्षेत्र में वाशरी स्थापित करने के लिए जमीन आबंटित की गई है, लेकिन अभी तक यहां काम शुरू नहीं हो सका है, जबकि मारुति के पक्ष में न्यायालय से आदेश हो चुका है। इस मामले में दायर याचिका में मारुति ने कहा है कि एसईसीएल द्वारा कोयला उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है, जबकि मारुति ने कोलवाशरी लगाने में करीब १०० करोड़ का विनियोग कर दिया है। साथ ही पर्यावरण मंत्रालय, विद्युत मंडल के कामर्शियल टैक्स विभाग, फैक्ट्री एक्ट सहित सभी संबंधित विभागों से कोलवाशरी प्रारंभ करने के लिए अनुमति प्राप्त कर ली है।

सुप्रीम कोर्ट ने 31 मार्च 2010 को जारी अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया है कि आगे चलकर यदि जमीन के स्वामित्व का फैसला एसईसीएल के पक्ष में होता है, तो भी एसईसीएल को मारुति को कानूनी आधार पर जमीन लीज पर देनी होगी। साथ ही कहा गया है कि कोर्ट में मामला लंबित रहने पर मारुति कोलवाशरी के संचालन को बंद नहीं किया जा सकेगा और इस तरह मारुति को शीघ्र कोलवाशरी शुरू करने का आदेश दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डॉ. केजी बालकृष्णन सहित जस्टिस चौहान व जस्टिस पांचाल की बेंच में हुई। याचिकाकर्ता की तरफ से सीनियर एडवोकेट मुकुल रस्तोगी व रंजीतकुमार ने की। मालूम हो कि छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम (सीएसआईडीसी) ने वर्ष 2002 में मारुति कोलवाशरी को कोरबा जिले के कटघोरा क्षेत्र के ग्राम रतीजा में दस मिलियन टन वार्षिक क्षमता की वाशरी स्थापित करने के लिए 37.91 एकड़ जमीन आबंटित की थी।कंपनी का कहना था कि यह जमीन राज्य शासन ने उसे आवंटित की थी।

सीएसआईडीसी से जमीन आबंटन की प्रक्रिया पूरी होते ही आपत्ति करते हुए हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर की गईं। इन याचिकाओं में कहा गया है कि उक्त जमीन वन विभाग की है। लिहाजा उसे कोलवाशरी के लिए देना अवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए 2006 में फैसला दिया कि मारुति को आबंटित जमीन फारेस्ट लैंड नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं पर एक लाख रूपए जुर्माना भी किया था। इधर, 2004 में एसईसीएल ने भी उक्त जमीन पर अपना हक जताते हुए सिविल सूट फाइल कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस मामले की सुनवाई छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में हुई। हाईकोर्ट ने 5 मार्च 2010 को एसईसीएल के सिविल सूट को खारिज कर दिया।

साबित नहीं कर सका एसईसीएल -  जमीन पर हक जताते हुए एसईसीएल ने कहा था कि उसे शासन द्वारा पहले ही जमीन का आवंटन किया जा चुका है, इसलिए वह उसकी है। शासन द्वारा आवंटन निरस्त न करने पर एसईसीएल ने कटघोरा के सिविल कोर्ट में याचिका दायर की। एसईसीएल का मामला सिविल कोर्ट में प्रकरण लंबित रहने के दौरान मारुति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने मामले के महत्व के मद्देनजर उसे हाईकोर्ट को स्थानांतरित कर कहा था कि उसकी सुनवाई किसी ऐसी बेंच से कराई जाए, जिसमें हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस भी हों। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने तथ्य और प्रमाण देखने के बाद पाया कि एसईसीएल यह साबित करने में विफल रहा कि जमीन उसे मिली है।

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