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Oct 26, 2008

कारपोरेट मुकदमों में ली जाए ज्यादा कोर्ट फीस

संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशों पर अमल हुआ तो कारपोरेट जगत को अपने लाखों-करोड़ों रुपए से संबंधित मुकदमों की सुनवाई के लिए अदालती खर्च का ज्यादा बोझ उठाना होगा। विवाद के मूल्य के मद्देनजर उनसे ज्यादा कोर्ट फीस वसूली जाएगी। खास बात यह है कि सरकारी सांविधिक निकाय भी इसके दायरे में आएंगे। 
उच्चतम न्यायालय [न्यायाधीश संख्या] संशोधन विधेयक-2008 पर विचार करने के बाद ये सिफारिशें कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने की है। समिति के अध्यक्ष व राज्यसभा सदस्य डा. ईएम सुदर्शन नचीयप्पन ने बुधवार को दिल्‍ली में पत्रकारों को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि कारपोरेट क्षेत्र, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ ही केंद्र सरकार के सेबी, ट्राई और प्रतिस्पर्धा आयोग जैसे तमाम निकायों की ओर से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में बड़ी संख्या में करोड़ों रुपए मूल्य के मुकदमे दायर किए जाते हैं। कई अधिनियम तो ऐसे हैं जिनके तहत कंपनियां अपने विवादों के निपटारे के लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकती हैं। उनकी वजह से बड़ी संख्या में मुकदमे लंबित हैं। जबकि इसके लिए वे मामूली कोर्ट फीस देते हैं, जो अभी महज ढाई सौ से दो हजार रुपए तक है। 
समिति का मानना है कि कारपोरेट जगत, सरकारी गैर सरकारी निकायों के मुकदमों की सुनवाई पर अदालतों को ज्यादा समय खर्च होता है। नतीजा आम आदमी व गरीबों को न्याय के लिए वर्षों इंतजार करना पड़ता है। लिहाजा समिति ने ऐसे विवादों के कुल मूल्य के आधार पर उनसे एक से पांच प्रतिशत तक कोर्ट फीस वसूले जाने की सिफारिश की है। फौजदारी व दीवानी मामलों में 250 से दो हजार रुपए की मौजूदा कोर्ट फीस की समीक्षा की भी जरूरत है। समिति ने इसके साथ ही गरीबों, अशिक्षितों और न्याय की पहुंच से बाहर के परिवारों के लिए कोर्ट फीस को पूरी तरह माफ करने की भी सिफारिश की है। 
 
डा. नचीयप्पन ने कहा कि समिति सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की संख्या 25 के बजाय तीस करने पर राजी है। लेकिन उनकी नियुक्ति में कोलेजियम पद्धति को खत्म करके उसके स्थान पर न्यायपालिका, कार्यपालिका, प्रधानमंत्री व संसद प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए एक एम्पावर्ड कमेटी बनाने की सिफारिश की है। समिति का कहना है कि भारत ही एक ऐसा देश है, जहां न्यायाधीश खुद को नियुक्त करते हैं। समिति ने हाईकोर्ट के जजों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष करने की सिफारिश की है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट में अत्यधिक लंबित मुकदमों के मद्देनजर गर्मियों में अवकाश की परिपाटी को खत्म करने की सिफारिश की है।

साभार : याहू जागरण

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