Oct 12, 2008

सलवा जुडूम पर छत्तीसगढ़ को क्लीनचिट

छत्तीसगढ़ में नक्सली, जनजातीय लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी में परेशानियां खड़ी कर रहे हैं। ये लोगों पर ज्यादतियां करने के साथ उन्हें अपने से जुड़ने के लिए भी विवश कर रहे हैं। यह खुलासा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी अपनी रिपोर्ट में किया है।


रिपोर्ट में आत्मरक्षा की खातिर हथियार उठाने के लिए सलवा जुड़ूम आंदोलन और छत्तीसगढ़ सरकार को क्लीनचिट दी गई है। डीआईजी सुधीर चक्रवर्ती की अगुवाई में गठित आयोग के तीन सदस्यीय पैनल ने रिपोर्ट में कहा है कि कानून जब अप्रभावी साबित हों तो जनजातियों को आत्मरक्षा का अधिकार देने से इनकार नहीं किया जा सकता।

झूठे पाए गए आरोप

पैनल ने सलवा जुड़ूम कार्यकर्ताओं की ज्यादती को लेकर मिली 550 शिकायतों में से 168 की जांच की और इन्हें फर्जी पाया। जिन ग्रामीणों को सलवा जुड़ूम कार्यकर्ताओं या सुरक्षा बलों द्वारा मारा बताया गया था, दरअसल वे नक्सलियों की गोली का शिकार बने थे। आयोग ने अहिंसक सलवा जुड़ूम आंदोलन को हिंसक रूप देने के लिए भी नक्सलियों को दोषी माना है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का मानना है कि नक्सली समस्या का संबंध बहुत कुछ सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन से है और राज्य में बेराजगारी बहुत अधिक है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिकाओं में लगे उन आरोपों पर सख्त रुख अपनाया था, जिसमें कहा गया था कि सलवा जुड़ूम कार्यकर्ता हिंसा और ज्यादती में लिप्त हैं।

क्या है सलवा जुडूम

सलवा जुड़ूम आंदोलन नक्सली हिंसा का अहिंसक विरोध करने के लिए शुरू किया गया था। बाद में नक्सलियों की ज्यादतियों के प्रतिकार और आत्मरक्षा के लिए राज्य सरकार ने जनजातीय लोगों को हथियार उपलब्ध कराए।


सलवा जुडूम पर छत्तीसगढ़ को क्लीनचिट


राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने सुप्रीमकोर्ट में सौंपी एक रिपोर्ट में नक्सलियों की गतिविधियों पर काबू पाने के लिए शुरू किए गए सलवा जुडूम को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार को क्लीन चिट दी है।


आयोग के तीन सदस्यीय पैनल ने 118 पृष्ठों की रिपोर्ट में कहा है कि कानून को लागू करने वाले जब स्वयं अप्रभावी हो या मौके पर मौजूद नहीं रहे तो ऐसी स्थिति में जनजातियों को आत्मरक्षा का अधिकार दिए जाने से इंकार नहीं किया जा सकता। उप महानिरीक्षक सुधीर चौधरी के नेतृत्व वाले दल ने नक्सलवाद से निपटने के लिए जनजातियों को हथियार देने पर छत्तीसगढ़ सरकार को क्लीन चिट दी है। रिपोर्ट के अनुसार सलवा जुडूम कार्यकर्ताओं के विरूद्ध 550 शिकायतें मिलीं थी जिनमें से 168 की जांच गई और ये सभी शिकायतें फर्जी पाई गई क्योंकि जिन ग्रामीणों के सलवा जुडूम अभियान के तहत या सुरक्षा बलों द्वारा मारे जाने की शिकायत की गई थी वास्तव में उनकी हत्या नक्सलियों ने की थी।

सलवा जुडूम अभियान के तहत राज्य सरकार ने लोगों को विशेषकर जनजातियों को नक्सलियों के विरूद्ध आत्म रक्षा के लिए हथियार दिए हैं। आयोग के दल ने अपनी रिपोर्ट में अहिंसक सलवा जुडूम आंदोलन को हिंसक बनाने की कोशिशों के लिए नक्सलियों को जिम्मेदार ठहराया है।

रिपोर्ट में सलवा जुडूम की तारीफ करते हुए कहा गया है कि आंदोलन के कार्यकर्ताओं को नक्सली चुन चुन कर मार रहे हैं तथा सलवा जुडूम के नेताओं की रैलियों पर हमले हो रहे हैं। रिपोटोर् के अनुसार अनेक मामलों में दर्ज पुलिस प्राथमिकताओं की जांच करने पर पाया गया है कि जिन लोगों को मृत बताया गया है उनमें अनेक लोग जीवित हैं। बहुत से लोगों की स्वाभाविक मृत्यु भी फर्जी ढग से आंदोलन कार्यकर्ताओं द्वारा हत्या बताई गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका में उन आरोपों पर गंभीर रुख अपनाया था जिनमें कहा गया है कि सलमा जुडूम कार्यकर्ता निर्दोष लोगों पर जुल्म ढा रहे हैं और लोगों से जबरन धन वसूली में लिप्त हैं। मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि नक्सली हिंसा की समस्या का मूल कारण लोगों का बेरोजगारी की वजह से सामाजिक आर्थिक विकास से वंचित रहना है। इस समस्या से निपटने के लिए बहुस्तरीय रणनीति बनाने की आवश्यकता है। आयोग के पैनल ने जनहित याचिका में लगाए गए आरोपों की कडी भ‌र्त्सना की है। अध्ययन के दौरान पैनल के सदस्यों पर नक्सलियों ने तीन बार हमला भी किया था।

समाचार साभार  - दैनिक भास्‍कर, याहू जागरण

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