Apr 7, 2017

चीफ जस्टिस ने कहा- ब्रॉडबैंड सेवा से मैं भी हूं परेशान

बिलासपुर। ब्रॉडबैंड की धीमी रफ्तार को लेकर पेश जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस टीबी राधाकृष्णन ने कहा कि इस सेवा से वे भी परेशान हैं। उन्होंने कहा कि डिजिटल इंडिया के दौर में खराब इंटरनेट सेवा देश को पीछे धकेलने के समान है। इसके अलावा मामले में जवाब के लिए चौथी बार समय मांगने पर केंद्र व राज्य सरकार को फटकार लगाई है। साथ ही कहा कि 15 दिन के अंदर जवाब नहीं आने पर दिल्ली में बैठे अधिकारियों को तलब किया जाएगा। ब्रॉडबैंड की धीमी स्पीड को लेकर बिलासपुर निवासी दिलीप भंडारी ने अधिवक्ता प्रकाश तिवारी, पलास तिवारी, प्रसून अग्रवाल के माध्यम से हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की है। याचिका को सुनवाई के लिए मंगलवार को चीफ जस्टिस टीबी राधाकृष्णन व जस्टिस पी. सेम कोशी की डीबी में रखा गया।
इस दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि ब्रॉडबैंड स्पीड कम होने से मैं भी परेशान हूं। बीएसएनएल की ब्रॉडबैंड सेवा में वीडियो कांफ्रेंसिंग करते समय आवाज साफ सुनाई नहीं देती। उन्होंने कहा कि याचिका में बीएसएनएल को भी एक पक्षकार बनाया जाना था। डिजिटल इंडिया के दौर में खराब इंटरनेट सेवा देश को पीछे धकलने के समान है। सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से जवाब पेश करने चौथी बार समय मांगा गया। इस बात पर कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि इतने महत्वपूर्ण विषय में पेश जनहित याचिका पर सरकार जवाब पेश करने बार-बार समय ले रही है। कोर्ट ने केंद्र व राज्य शासन को फटकार लगाते हुए 15 दिन के अंदर जवाब प्रस्तुत नहीं होने पर दिल्ली में बैठे अधिकारियों को हाईकोर्ट में तलब करने की चेतवानी दी है। कोर्ट ने याचिका को सुनवाई के लिए दो सप्ताह बाद रखने का आदेश दिया है।
याचिका में क्या है 
याचिका में कहा गया है कि ट्राई के निर्देशानुसार ब्रॉडबैंड की स्पीड कम से कम 2 एमबीपीएस होनी चाहिए। इसके विपरीत 512 केवीएस की ही स्पीड मिल रही है। इससे इंटरनेट में काम करने में परेशानी होती है। याचिका में यह भी कहा गया कि श्रीलंका, पाकिस्तान जैसे देश में भी ब्रॉडबैंड की स्पीड भारत से कई गुना अधिक है। नवंबर में प्रस्तुत इस जनहित याचिका में हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार, राज्य सरकार, डिपार्टमेंट ऑफ टेली कम्युनिकेशन, ट्राई सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

Mar 27, 2017

कॉपीराइट अधिनियम द्वारा प्रदत्त कॉपीराइट और अधिकार से संबंधित अपराध

पहले कलाकार, संगीतकार, लेखक जैसे रचनात्मक व्यक्तियों ने जीवन के सामान्य लाभ के बजाय प्रसिद्धि और मान्यता के लिए सृजन किया। तब कॉपीराइट जैसी कोई सोंच नहीं थी। कॉपीराइट का महत्व प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार के बाद पहचाना गया, जो पुस्तकों के लेखन/प्रकाशन को व्यावहारिक तौर पर बौद्धिक अधिकार के रूप में सक्षम करता था।
भारत में अपनी तरह का पहला कानून, भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1914 में पारित किया गया था जो मुख्य रूप से यू.के. कॉपीराइट अधिनियम, 1911 पर आधारित था। तद्कालीन समय के दौरान, प्रसारण, लिथो-फोटोग्राफी, टेलीविज़न इत्यादि संचार के नए माध्यम ने परिणाम के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप किया कि कॉपीराइट के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करना आवश्यक है। तब यह आवश्यक जान पड़ा कि कॉपीराइट कानून को पूरी तरह से संशोधित करने के लिए एक व्यापक कानून पेश किया जा सकता है। परिणामस्वरूप, 1957 का कॉपीराइट विधेयक संसद में पेश किया गया। लेखकों के अधिकारों और दायित्वों की रक्षा के लिए इसे पेश किया गया। इसके प्रावधानों के अनुसार एक सिनेमैटोग्राफ फिल्म में इसके विभिन्न घटकों, अर्थात् कहानी, संगीत, आदि के अलावा एक अलग कॉपीराइट होगा। इस अधिनियम के तहत कलात्मक कार्य एक पेंटिंग, एक मूर्तिकला, एक चित्र (एक चित्र, नक्शा, चार्ट या योजना सहित), एक उत्कीर्णन या एक तस्वीर, वास्तुकला के कार्य और कलात्मक शिल्प कौशल के कोई अन्य कार्य का कॉपीराइट होगा।
इसी प्रकार, "प्रसारण" और "सिनेमाटोग्राफ फिल्म" शब्द परिभाषा खंड में परिभाषित किए गए। धारा 2 में "नाटकीय कार्य", "व्याख्यान", "साहित्यिक कार्य", "संगीत कार्य", "प्रदर्शन", "कलाकार" आदि को परिभाषित किया गया। धारा 2 (वाई) "कार्य" को निम्नानुसार परिभाषित करता है: -
"(वाई)" कार्य "का अर्थ निम्न में से किसी भी कार्य से है, अर्थात्: -
(I) एक साहित्यिक, नाटकीय, संगीत या कलात्मक कार्य;
(Ii) एक सिनेमाटोग्राफ फिल्म;
(Iii) ध्वनि रिकॉर्डिंग। "
कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 63 और 64, जो निम्नानुसार है: -
"63 इस अधिनियम द्वारा कॉपीराइट या अन्य अधिकारों के उल्लंघन का अपराध - कोई भी व्यक्ति जो -
(ए) एक कार्य में कॉपीराइट, या
(बी) इस अधिनियम से संबंधित कोई अन्य अधिकार धारा 53-ए द्वारा प्रदत्त अधिकार को छोड़कर
का जानबूझकर उल्लंघन करता है या उसके उल्लंघन का अपमान करता है। वह उस अवधि के लिए कारावास के साथ दंडनीय होगा, जो छह महीने से कम नहीं होगा, लेकिन जो तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना से जो पचास हज़ार रुपए से कम नहीं होगा, लेकिन जो दो लाख रुपये तक हो सकता है। बशर्ते कि जहां व्यापार या व्यवसाय के दौरान लाभ के लिए उल्लंघन नहीं किया गया है। अदालत निर्णय में उल्लेखनीय और विशेष कारणों का उल्लेख करते हुए छह महीने से कम अवधि के लिए कारावास की सजा या पचास हजार रुपये से कम का जुर्माना भी कर सकता है।
64. उल्लंघनकारी प्रतियों को जब्त करने के लिए पुलिस की शक्ति - (1) कोई भी पुलिस अधिकारी, जो उप निरीक्षक के पद से नीचे नहीं होगा, यदि वह संतुष्ट हो तो कॉपीराइट के उल्लंघन के संबंध में धारा 63 के तहत जो अपराध कारित किया गया हो, उस कार्य की प्रतिलिपि बनाने के उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सभी प्लेटों, वारंट किए बिना जब्त कर जल्द ही मजिस्ट्रेट के सामने पेश करेगा।
(2) उप-धारा (1) के तहत जब्त किसी कार्य या प्लेटों में किसी भी प्रतियों में रुचि रखने वाला कोई व्यक्ति, ऐसे जब्ती के पन्द्रह दिनों के भीतर, मजिस्ट्रेट को ऐसे प्रतियों के लिए आवेदन कर सकता है। आवेदक और शिकायतकर्ता की सुनवाई के बाद और ऐसी जरूरी पूछताछ करवाने के बाद, मजिस्ट्रेट को इस तरह ऑर्डर करना चाहिए, जैसा वह उचित समझे। 
धारा 63 एक दंड प्रावधान है यह कॉपीराइट अधिनियम द्वारा प्रदत्त कॉपीराइट या अन्य अधिकारों से संबंधित अपराधों को निर्धारित करता है जिसे सख्ती से लागू किया जाना होगा।
"कॉपीराइट पर उपरोक्त चर्चा कमल किशोर विरुद्ध एम.पी. राज्य (मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, 14 अक्टूबर 2015) जस्टिस सुजॉय पॉल द्वारा पारित एक आदेश से निकाली गई है। जिसमें उपरोक्त कानूनी प्रावधानों का विश्लेषण करने के बाद अदालत ने कहा कि स्पार्क प्लग को एक कलात्मक कार्य के रूप में नहीं माना जा सकता है, इसलिए, डुप्लिकेट स्पार्क प्लग रखने का आरोप कॉपीराइट अधिनियम के संबंध में कोई उलंघन नहीं है।"
(मूल अंग्रेजी निर्णय के स्व-अर्थान्वयन के अनुसार)

Jan 14, 2017

जयचंद बैद मामले में आरोपी सांसद रामा सिंह बरी, अशोक को आजीवन कारावास





विशेष न्यायाधीश मंसूर अहमद ने जयचंद वैद्य अपहरण कांड में निर्णय देते हुए आरोपी सांसद रामा किशोर सिंह उर्फ रामा को दोषमुक्त करार दिया है। कोर्ट ने अपने नर्णिय में लिखा है कि आरोपी रामा सिंह के विरूद्ध ऐसा कोई साक्ष्य प्रकरण में उपलब्ध नहीं है। जो उसे अपराध से जोड़ता हो। प्रार्थी जयचंद की कार का उपयोग अभियुक्त रामा सिंह के द्वारा किए जाने के संबंध में किसी भी साक्षी ने कोई कथन नहीं दिया है और न ही प्रार्थी की कार अभियुक्त रामा सिंह के आधिपत्य से जब्त की गई है। जहां तक अभियुक्त रामा सिंह के द्वारा अन्य अभियुक्तों को राजनीतिक संरक्षण दिए जाने का सवाल है तो इस प्रकरण में कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। कोर्ट ने माना कि अभियुक्त रामा सिंह के द्वारा प्रार्थी जयचंद वैद्य के परिवार वालों से फिरौती की राशि प्राप्त की गई हो। इस संबंध में भी कोई साक्ष्य नहीं है। परिणाम स्वरूप साक्ष्य के अभाव में अभियुक्त रामा सिंह को दोष मुक्त किया जाता है। जबकि अभियोजन अभियुक्त अशोक सिंह के विरूद्ध अपना मामला प्रमाणित करने में पूर्णत: सफल रहा है। न्यायालय ने अशोक सिंह को धारा 120 बी में 5 साल, 5 हजार अर्थदंड व अर्थदंड नहीं पटाने पर एक वर्ष अतिरक्ति, 364 ए में आजीवन कारावास, अर्थदंड 10 हजार व अर्थदंड नहीं पटाने पर 1 वर्ष अतिरक्ति कारावास, धारा 344 व 346 में एक-एक वर्ष व 2-2 हजार रूपए अर्थदंड, अर्थदंड नहीं पटाने पर 3-3 माह का अतिरक्ति कारावास एवं 395 में 7 वर्ष व 10 हजार रूपए अर्थदंड, अर्थदंड नहीं पटाने पर एक वर्ष अतिरक्ति कारावास की सजा पारित की है। अभियोजन पक्ष की ओर अपर लोक अभियोजक संतोष शर्मा और बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता शिवशंकर सिंह और विनय दुबे ने पैरवी की। आरोपी सांसद के बरी होने की खबर पाकर बिहार से सैकड़ों समर्थक कोर्ट में एकत्रित थे।

भिलाई के बहुचर्चित जयचंद बैद अपहरण कांड में सबूत नहीं मिलने के कारण कोर्ट ने मामले के मुख्य आरोपी वैशाली के सांसद रामा सिंह को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है, लेकिन इसी मामले में एक अन्य आरोपी अशोक सिंह को आजीवन कारावास और 27 हजार रुपए अर्थदंड की सजा सुनाई गई है। जयचंद ने गवाही के दौरान उसे सेवादार बताया था, लेकिन सांसद को पहचानने से इनकार कर दिया था। 29 मार्च 2001 को कुम्हारी पेट्रोल पंप से शैलेंद्र नगर रायपुर स्थित जयचंद बैद घर जाने के लिए निकले थे। भाटागांव के पास उनकी कार को ओवरटेक कर रोका गया। कार से 3 लोग उतरे और मारपीट करते हुए अपनी कार में बिठाकर ले गए। 20 घंटे के बाद उन्हें गुप्त स्थान पर ले जाकर रखा गया। उनके परिजनों से फिरौती की राशि मांगी गई। लंबी सौदेबाजी के बाद 20 लाख में मामला तय हुआ। 30 मार्च को जयचंद के परिजनों ने कुम्हारी पुलिस में उनके गुम होने की शिकायत की। फिरौती की मांग होने पर भिलाई-3 पुलिस ने अपहरण का मामला दर्ज किया था। इसी आधार पर मामले की विवेचना की जाती रही।




इसलिए मिला संदेह का लाभ : कोर्ट में सुनवाई के दौरान जयचंद बैद ने आरोपी को पहचानने से इनकार कर दिया था। फिरौती की रकम और सांसद के निवास पर मिली गाड़ी के संबंध में कोई ठोस बात नहीं कही। इसी आधार पर विशेष न्यायाधीश मंसूर अहमद ने फैसला सुनाया है। फैसले के अनुसार आरोपी को संदेह का लाभ दिया गया है।

किसी भी गवाह ने रामा सिंह के बारे में कुछ भी नहीं बताया : पुलिस ने इस केस में 11 गवाह बनाए थे। इनमें से एक भी गवाह ने रामा सिंह को इस केस में लिप्त नहीं बताया। बल्कि कई गवाहों ने तो यह कहा कि उन्हें पुलिस ने क्यों गवाह बना दिया उन्हें नहीं मालूम। वे इसके बारे में कुछ नहीं जानते। एक गवाह जो जयचंद वैद के पेट्रोल पंप का मैनेजर था, उसे भी पुलिस ने गवाह बनाया था, लेकिन अर्से से लापता है। अभियोजन उसे कोर्ट में प्रस्तुत नहीं कर पाया।
आरोप: जयचंद के अपहरण के बाद ली गई 25 लाख फिरौती में से रामा सिंह को भी हिस्सा मिला था।
साक्ष्य: अभियोजन यह भी साबित नहीं कर पाया। साक्ष्य भी प्रस्तुत नहीं कर पाया। जयचंद उसे पहचान भी नहीं सका।
आरोप : पुलिस की विवेचना में यह बात आई कि अपहरण के प्रयुक्त कार रामा सिंह के निवास के पास से बरामद की गई थी।
साक्ष्य: अभियोजन यह साबित ही नहीं कर पाया कि कार रामा सिंह के घर के पास बरामद हुई।




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